मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

जब कुंती ने पाण्डु को बताया मंत्र का रहस्य


ऋषि किंदम के श्राप के कारण पाण्डु वानप्रस्थाश्रम के अनुसार कुंती व माद्री के साथ गंदमादन पर्वत पर रहने लगे। पाण्डु वहां रहते हुए प्रतिदिन तप किया करते और कुंती व माद्री उनकी सेवा करती थी। एक बार पाण्डु ने देखा कि बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि कहीं जा रहे थे। पाण्डु के पूछने पर उन्होंने बताया कि वे ब्रह्माजी के दर्शन के लिए ब्रह्मलोक की यात्रा कर रहे हैं। यह बात जानकर पाण्डु भी अपनी पत्नियों के साथ उनके पीछे चलने लगे। लेकिन फिर पाण्डु ने सोचा कि संतानहीन के लिए तो स्वर्ग के द्वार बंद है। यह सोचकर वे सोच में पड़ गए।
तब ऋषियों ने दिव्य दृष्टि से देखकर बताया कि पाण्डु आपके देवताओं के समान पुत्र होंगे और तब आप स्वर्ग जा सकेंगे। किंतु पाण्डु यह जानते थे कि किंदम ऋषि के श्राप के कारण वे सहवास नहीं कर सकते। इसी सोच में पाण्डु एक दिन बैठे थे तभी कुंती वहां आई और उसने पाण्डु से परेशानी का कारण पूछा। पाण्डु ने सारी बात कुंती को बता दी। तब कुंती ने पाण्डु को बताया कि बालपन में मैंने दुर्वासा ऋषि की खूब सेवा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे एक मंत्र दिया था जिसके स्मरण से मैं किसी भी देवता का आवाहन कर सकती हूं और उसी की कृपा से मुझे संतान उत्पन्न होगी। यह बात सुनकर पाण्डु अत्यंत प्रसन्न हुए।

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