शनिवार, 1 जनवरी 2011

लघुकथा

नालायक कहीं का?
1. मैडम, मैं साब के साथ नहीं जाऊँगा। क्यों क्या हुआ?' 'नहीं मैडम मैं कार 8 0-90 के ऊपर नहीं चला पाऊँगा।' अच्छा मत चलाना। लेकिन वो जिद करते हैं। तुम कार रोककर उतर जाना। मैडम पिछली बार 90-100 के बाद भी उनको चैन नहीं पड़ रहा था। अब रात 1 बजे इत्ती तेज चलाएँगे तो कुछ भी हो सकता है। अच्छा-अच्छा ठीक है। एक्सीडेंट हो गया तो इल्जाम हमारे सिर आएगा, नौकरी हमारी जाएगी, उनका तो कुछ नहीं होगा। बड़े अस्पताल में आराम करेंगे, जनता में पूछ बढ़ जाएगी।
2. क्या हुआ, ये ट्रेन यहाँ तक तो सही आ गई, सिग्नल के बाद लेट क्यों हो रही है? कोई नेता आ रहा है शायद। साब स्टेशन से फोन है ट्रेन रोक ली है आप जल्दी चलें। हाँ-हाँ चल रहे हैं। चलो ड्राइवर फुर्ती से। ट्रेन के जाते ही तमाम अफसरों की साँस में साँस आई। कार ड्राइवर को तो मानो जिंदगी मिल गई। चलो अब 2-4 दिन आराम।
3. साब की ट्रेन 4 बजे स्टेशन आ रही है, तुम पहुँच जाना। हे भगवान, कल सुबह ही तो गए थे। हाँ ड्रायवर 2 घंटे रुककर हमें राजधानी जाना है कल मीटिंग है। बंगले के बाहर खड़े अफसर, अर्दली सारे थक गए। रात 11 बजे- ड्राइवर जल्दी चलो, आप लोग भी जल्दी चलिए। अरे ड्राइवर साब कार चला रहे हो या बैलगाड़ी? जल्दी चलाओ। साब- 90-100पर चल रहे हैं। हाँ तो 20 पर चलाओ। पीछे की कार में- अरे यार ये साब तो मरवा देंगे हमको, चलो ड्राइवर उनकी स्पीड से चलो।
4. आखिर ये एक्सीडेंट हुआ कैसे? ड्राइवर ने पी रखी थी क्या? नालायक कहीं का।

दरवाजे के पार माँ
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से- वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी।
मैं बरामदे में बैठा था। बच्चे ने दरवाजे से झाँका। मैंने मुस्कुराकर पुकारा। वह मेरी गोद में आकर बैठ गया।
उसकी शरारतें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था।
एक चिड़िया फुदकती हुई आई और सामने के सहन में बैठ गई। बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी तरफ लपका। चिड़िया जरा भी न डरी। बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा। चिड़िया उड़ गई, निराश बच्चा रोने लगा। मगर अंदर के दरवाजे की तरफ ताका भी नहीं। दरवाजा खुला हुआ था।
गरम हलवे की मीठी पुकार आई। बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा। खोंचेवाला सामने से गुजरा। बच्चे ने मेरी तरफ याचना की आँखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आँखें रोष में परिवर्तित होती गईं। यहाँ तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आँख से ओझल हो गया तो रोष ने पुरजोर फरियाद की सूरत अख्तियार की।
मगर मैं बाजार की चीजें बच्चों को नहीं खाने देता। बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया। मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया। कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी माँ की अदालत में अपील करने की जरूरत समझी या नहीं। आमतौर पर बच्चे ऐसे हालातों में माँ से अपील करते हैं। शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तवी कर दी हो। उसने दरवाजे की तरफ रुख न किया। दरवाजा खुला हुआ था।
मैंने आँसू पोंछने के ख्याल से अपना फाउंटेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियाँ इस नई समस्या को हल करने में लग गईं। एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बंद हो गया। पट की आवाज बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाजे की तरफ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउंटेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था।

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