मंगलवार, 18 जनवरी 2011

यहां दुर्योधन को पूजने की है परंपरा...


द्वापर युग श्रीकृष्ण का युग माना जाता है। इस युग में कई महान और तेजस्वी लोगों ने जन्म लिया। जिनकी आज भी पूजा की जाती है। इन पूजनीय लोगों में श्रीकृष्ण सहित माता यशोदा, राधा, नंद बाबा, पांडव, भीष्म आदि शामिल है। सामान्यत: दैवीय शक्तियों और अच्छाई के प्रतीक लोगों को पूजा जाता है लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां बुराई के प्रतीक दुर्योधन को पूजा जाता है।
महाभारत युद्ध के खलनायक श्रीकृष्ण द्रोही दुर्योधन को सामान्यत: बुराई का प्रतीक माना जाता है। क्योंकि दुर्योधन ने जीवन भर अहं और ईष्र्या के वश में होकर हमेशा अधर्म का साथ दिया। परंतु कुछ लोगों की आस्था का केंद्र है दुर्योधन। वे दुर्योधन को भगवान के समान मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। उन लोगों के लिए सभी देवताओं के पहले दुर्योधन की प्रमुख देवता है।केरल के एक जिले कोल्लम दुर्योधन के भक्त हैं जो सभी देवताओं से पहले दुर्योधन की पूजा करते हैं। उसके बाद वहां श्रीगणेश आदि देवताओं को पूजा जाता है।एक अन्य स्थान है जहां दुर्योधन आराध्य देव है। यह स्थान उत्तराखंड में स्थित है। वहां एक क्षेत्र है हर की दून, जहां के गांव वाले दुर्योधन की पूजा करते हैं। उन लोगों का मानना है कि दुर्योधन ही उनकी सारी मुसीबतों और इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।उत्तरांचल के कुछ गांव ऐसे हैं जहां पांडवों का नाम लेना तक अनुचित समझा जाता है और दुर्योधन को भगवान माना जाता है।

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