शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

लाक्षाभवन से निकलने के बाद पाण्डवों ने क्या किया?

लाक्षाभवन से निकलने के बाद पाण्डव गंगा नदी के तट पर पहुंच गए। तभी वहां विदुरजी द्वारा भेजा हुआ सेवक भी आ गया । उसने नौका से पाण्डवों को गंगा के पार पहुंचा दिया। पाण्डव बड़ी शीघ्रता से आगे बढऩे लगे। सुबह जब वारणावतवासियों ने जले हुए महल को देखा तो उन्हें पता चल गया कि महल लाख का बना हुआ था। वे तुरंत समझ गए कि यह सब दुर्योधन की ही चाल थी जिसके कारण पाण्डव इस महल में जल कर मर गए। आग बुझने पर जब महल की राख को हटाया तो उसमें से भीलनी तथा उसके पांच पुत्रों के साथ ही पुरोचन का भी शव निकला। लोगों ने समझा कि यह माता कुंती तथा पाण्डवों के ही शव हैं। तब सभी दुर्योधन को धिककारने लगे।
यह खबर जब धृतराष्ट्र को लगी तो झूठ-मूठ का विलाप करने लगा। उन्होंने कौरवों को आज्ञा दी कि शीघ्र ही वारणावत जाओ और पाण्डवों का अंत्येष्टि संस्कार करो। इस प्रकार सभी लोग यह समझने लगे की पाण्डव सचमुच मर चुके हैं। विदुर सब कुछ जानते हुए भी अनजाने बने रहे।
इधर पाण्डव तेजी से दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे। माता कुंती तथा पाण्डव काफी थक चुके थे। इसलिए वे चलने में असमर्थ थे तब भीम ने माता कुंती को कंधे पर, नकुल व सहदेव को गोद में तथा युधिष्ठिर तथा अर्जुन को अपने दोनों हाथों पर बैठा लिया और तेजी से चलने लगे। थोड़ी देर बाद कुंती को प्यास लगी तो भीम ने सभी को नीचे उतार दिया और स्वयं पानी लेने के लिए चले गए। जब भीम वापस लौटे तो माता कुंती व भाइयों को इस अवस्था में देख बहुत दु:खी हुए। वह रात पाण्डवों ने वहीं वन में बिताई।

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