बुधवार, 19 जनवरी 2011

काले धन पर टालमटोल

विदेशों में जमा पैसे को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अभी तक सरकार का जो रुख दिखा है, उसमें कुछ बातें चिंताजनक हैं। जर्मनी की सरकार ने काले धन के खिलाफ चलाई गई अपनी मुहिम में लीख्टेंस्टाइन के एलटीजी बैंक में भारतीय खाते होने की जानकारी भारत सरकार को 2008 में ही दे दी थी। सरकार ने अदालत को बताया है कि वहां पाए गए 18 खातों में कुल 43 करोड़ 83 लाख रुपये जमा हैं, जिनके खातेदारों से 24 करोड़ 26 लाख रुपया टैक्स वसूलने के लिए वह दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में कार्रवाई शुरू कर चुकी है। यह पहाड़ खोदने पर चींटी निकलने जैसी बात है। जितनी वसूली का आश्वासन सरकार ने अदालत को दिया है, उससे ज्यादा पैसे तो अफसरों की आवाजाही और मुकदमेबाजी में निकल जाएंगे। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सरकार के पास इस मामले में कुल 21 दस्तावेज हैं, जिनमें 16 को अति गोपनीय बताते हुए उनके बारे में वह कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में अदालत ने उससे ठीक ही पूछा है कि आखिर किस हक से वह अपने पास मौजूद कुछ नामों को गोपनीय रखना चाहती है? सरकार कहती है कि पिछले साल स्विट्जरलैंड के साथ डबल टैक्सेशन एवॉयडेंस एग्रीमेंट पर दस्तखत हो जाने से वह अब काले धन से जुड़ी और भी सूचनाओं तक अपनी पहुंच बना सकती है। लेकिन लीख्टेंस्टाइन में जमा पैसे पर उसका जो रवैया अब तक नजर आया है, उससे लगता नहीं कि स्विट्जरलैंड में वह कोई बहुत बड़ा तीर मार लेगी। यह आश्चर्यजनक है कि देश का पैसा विदेशों में जमा करने का मसला सरकार के लिए यूं ही सिर खुजा लेने जैसा सहज है। टैक्स बचाने के लिए कुछ लोगों ने अपना पैसा बाहर जमा कर रखा है, इसका पता चलते ही उनसे टैक्स जमा करने को कह दिया गया! सरकार को यह याद दिलाने के लिए कि यह मामला सिर्फ टैक्स बचाने का नहीं है, सुप्रीम कोर्ट को उसे डांटना पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के लगभग 70 लाख करोड़ रुपये, यानी इसके जीडीपी से भी ज्यादा रकम विदेश में जमा है। लेकिन सरकार इस मद में मात्र 43 करोड़ रुपये की जानकारी होने की बात कह कर राई की ओट में पहाड़ छिपाने जैसा करतब कर रही है। अमेरिका के लिए टैक्स हैवन्स से अपना पैसा वापस लाना अपने विशाल जहाज में एक छोटा छेद बंद करने जैसा है, लेकिन भारत के लिए तो यह अपनी वास्तविक अर्थव्यवस्था से भी बड़ी एक समानांतर काली अर्थव्यवस्था से निपटने का मामला है। यूपीए सरकार को यह सोचना चाहिए कि 2जी स्पेक्ट्रम या कॉमनवेल्थ जैसे घपलों-घोटालों से इसकी कोई तुलना नहीं है। इस मामले में वह जितनी गोपनीयता बरतेगी या इसे टरकाने का प्रयास करेगी, उतनी ही उसकी स्थिति संदिग्ध होती जाएगी। इसलिए बेहतर होगा कि वह न सिर्फ अदालत को, बल्कि पूरे देश को बताए कि इस सिलसिले में अब तक उसने क्या किया है, आगे क्या करने वाली है, और अगर कुछ बातें यदि वह अभी बताना नहीं चाहती, तो इसके पीछे कारण क्या है।

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