रविवार, 23 जनवरी 2011

प्रेम की पहचान तो ऐसे ही होती है

कहते हैं प्रेम की पहचान के लिए कोई शब्द और साक्ष्य की जरूरत नहीं होती। प्रेम आंखों से ही झलक जाता है। पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका, वे प्रेम की भावनाओं को आंखों से ही समझ जाते हैं। विद्वान कहते हैं कि वो रिश्ता प्रेम का हो ही नहीं सकता, जिसमें भावनाओं को शब्दों से बताया जाए। प्रेम तो वह होता है जिसमें बिना कुछ बोले और बिना कुछ सुनें हम अपनों की बात समझ जाएं।

पुराणों में नल-दयमंती की प्रेम कहानी ऐसी ही है। दयमंती एक सुंदर राजकुमारी थी। उसके राज्य से बहुत दूर किसी दूसरे राज्य में नल नाम का राजा था। नल बहुत पराक्रमी और सुंदर था। नल के राज उद्यान में दो हंस थे। उन्होंने नल को दयमंती की सुंदरता के बारे में बताया और उससे आग्रह किया कि वो दयमंती को अपनी रानी बना ले। दोनों हंसों ने दयमंती को भी जाकर नल की सुंदरता और वीरता का बखान कर दिया। दयमंती ने नल को मन ही मन अपना पति मान लिया। नल ने भी दयमंती को अपना मान लिया। दोनों में संदेशों का आदान-प्रदान होने लगा। कुछ समय के बाद दयमंती का स्वयंवर रखा गया। जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी आ गए। नल भी स्वयंवर में जा रहा था। देवताओं ने उसे रोककर कहा कि वो स्वयंवर में न जाए।
उन्हें यह बात पहले से पता थी कि दयमंती नल को ही चुनेगी। सभी देवताओं ने भी नल का रूप धर लिया। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दयमंती जरा भी विचलित नहीं हुई, उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। इस तरह आंखों में झलकते भावों से ही दयमंती ने असली नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया।

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