बुधवार, 5 जनवरी 2011

भागवत १५८

पूतना कौन थी पिछले जन्म में?
पं. विजयशंकर मेहता
कंस के कहने पर पूतना गोकुल आई। उसने एक सुंदर स्त्री का रूप धरा। उसको किसी ने रोका नहीं और वह सीधे नंद बाबा के घर में घुस गई। भागवत में पूतना के पूर्वजन्म का वर्णन भी है। उसी के अनुसार-राजा बलि और रानी विंध्याचल की पुत्री का नाम रत्नमाला था। जब वामन अवतार में बलि राजा से भगवान यज्ञ में भिक्षा मांगने आए थे, तब उनके स्वरूप को देखकर रत्नमाला के हृदय में स्नेह उमड़ आया और उसके मन में आया कि कितना अच्छा होता, अगर मैं इस बालक को पुत्र के रूप में पा सकती । मैं उसे पयपान कराकर उसका लालन-पालन करके धन्य हो जाती।

वामन के तेजस्वी स्वरूप को देखकर रत्नमाला के हृदय में पुत्र स्नेह उमड़ आया था। किंतु जब रत्नमाला ने देखा कि भगवान वामन ने भिक्षा के रूप में उसके पिता की सारी संपत्ति छीन ली है तो यह देखकर उसके मन में शत्रु भाव भी उमड़ आया और उसके मन में इच्छा हुई कि इस बालक को दूध में विष मिलाकर पीला दूं। भगवान वामन ने रत्नमाला की दोनों इच्छाओं को मन ही मन जान लिया और स्वीकार भी कर लिया।यही रत्नमाला दूसरे जन्म में पूतना के रूप में जन्मी। पूतना बालकृष्ण को मारने के लिए गोकुल पहुंच गई। पूतना ने जैसे ही कृष्ण को गोद में लेकर दूध पिलाने के लिए सीने से लगाया।
उसे भयंकर पीड़ा होने लगी। दर्द से छटपटाई, अपने असली रूप में आ गई। दर्द जब और असहनीय हो गया तो कृष्ण को लेकर आकाश में उडऩे लगी। कृष्ण ने दूध के साथ ही उसके प्राण भी शरीर से खींच लिए। बेहाल पूतना का शरीर धरती पर गिर गया और उसके प्राण पखेरु उड़ गए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें