जब भाग्य साथ होता है या कहे भगवान साथ होता है तो कोई कितना ही षडयंत्र कर ले। आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है क्योंकि जाको राखे साइया मार सके ना कोए। जो आपकी किस्मत में लिखा है उसे परमात्मा के अलावा कोई नहीं बदल सकता है। लाक्ष्यग्रह में कौरवों के पूरे षडयंत्र के बाद भी पांडवों का जीवित रहना इस ही बात का इशारा करता है सभी राजाओं को अपने गुप्तचरों से मालूम हो गया कि द्रोपदी का विवाह पांडवों के साथ हुआ है। लक्ष्य वेदन करने वाला और कोई नही बल्कि अर्जुन है।
जब दुर्योधन को यह समाचार मिला तो उसे बड़ा दुख हुआ। दुर्योधन से धीमे स्वर में दु:शासन बोला भाई जी अब मुझे समझ आ गया है कि भाग्य ही बलवान है। उनके हस्तिनापुर पहुंचने पर वहां का सब समाचार सुनकर विदुरजी को बड़ी प्रसन्नता हुई।वे उसी समय धृतराष्ट्र के पास जाकर बोले महाराज धन्य है धन्य। कुरूवंश की वृद्धि हो रही है। यह सुनकर धृतराष्ट्र को लगा कि द्रोपदी मेरे पुत्र दुर्योधन को मिल गई। विदुर ने उन्हे बताया कि उसका विवाह पांडवों से हुआ है। तब धृतराष्ट्र ने कहा पाण्डवों को तो मैं अपने पुत्रों से अधिक स्नेह करता हूं। उनका विवाह हो गया इससे अधिक प्रसन्नता का विषय मेरे लिए क्या हो सकता है।
जब विदुर वहां से चले गये तब दुर्योधन और कर्ण ने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा विदुर के सामने हम आप से कुछ भी नहीं कह सकते हैं। आप उन शत्रुओं की विजय पर हर्ष कैसे जता सकते हैं। दुर्योधन ने कहा पिताजी मेरा विचार है कि कुछ विश्वासी गुप्तचर और ब्राह्मणों को भेजकर पाण्डव पुत्रों में फूट डलवा दी जाए। हमें द्रुपद को भी अपने साथ मिला लेना चाहिए। कर्ण ने कहा दुर्योधन तुम्हारी क्या राय है कर्ण ने कहा मुझे तो तुम्हारे द्वारा बतलाए गए उपायों से पाण्डवों का वश में होना सम्भव नहीं लगता।
और पांडवों का हस्तिनापुर आगमन।
जब दुर्योधन को यह समाचार मिला तो उसे बड़ा दुख हुआ। दुर्योधन से धीमे स्वर में दु:शासन बोला भाई जी अब मुझे समझ आ गया है कि भाग्य ही बलवान है। उनके हस्तिनापुर पहुंचने पर वहां का सब समाचार सुनकर विदुरजी को बड़ी प्रसन्नता हुई।वे उसी समय धृतराष्ट्र के पास जाकर बोले महाराज धन्य है धन्य। कुरूवंश की वृद्धि हो रही है। यह सुनकर धृतराष्ट्र को लगा कि द्रोपदी मेरे पुत्र दुर्योधन को मिल गई। विदुर ने उन्हे बताया कि उसका विवाह पांडवों से हुआ है। तब धृतराष्ट्र ने कहा पाण्डवों को तो मैं अपने पुत्रों से अधिक स्नेह करता हूं। उनका विवाह हो गया इससे अधिक प्रसन्नता का विषय मेरे लिए क्या हो सकता है।
जब विदुर वहां से चले गये तब दुर्योधन और कर्ण ने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा विदुर के सामने हम आप से कुछ भी नहीं कह सकते हैं। आप उन शत्रुओं की विजय पर हर्ष कैसे जता सकते हैं। दुर्योधन ने कहा पिताजी मेरा विचार है कि कुछ विश्वासी गुप्तचर और ब्राह्मणों को भेजकर पाण्डव पुत्रों में फूट डलवा दी जाए। हमें द्रुपद को भी अपने साथ मिला लेना चाहिए। कर्ण ने कहा दुर्योधन तुम्हारी क्या राय है कर्ण ने कहा मुझे तो तुम्हारे द्वारा बतलाए गए उपायों से पाण्डवों का वश में होना सम्भव नहीं लगता।
और पांडवों का हस्तिनापुर आगमन।
अरुण बंछोर जी!
जवाब देंहटाएंआपका यह कार्य बहुत ही सराहनीय है। कथाओं के माध्यम से संस्कार बहुत आवश्यक है।
आपके द्वारा संस्कृति एवम् समाज की ऐसी सेवा अनुकरणीय एवं स्पृहणीय है।
कथायें बालमन में सदाचरण, सद्विचार विकसित करने का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।