सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

क्या कहा कुबेर की प्रेमिका ने अर्जुन से?

वीरवर अर्जुन वहां से चलकर समुद्र के किनारे-किनारे अगस्त्यतीर्थ, सौभाग्यतीर्थ, पौलोमतीर्थ, कारन्धमतीर्थ, और भारद्वाज तीर्थ में गये। उन तीर्थो के पास ऋषि-मुनि गंगा में स्नान नहीं करते थे। अर्जुन के पूछने पर मालुम हुआ कि गंगा में बड़े-बड़े ग्राह रहते हैं, जो ऋषियों को निगल जाते हैं। तपस्वीयों के रोकने पर भी अर्जुन ने सौभाग्यतीर्थ में जाकर स्नान किया। जब वहां मगर ने अर्जुन का पैर पकड़ा, तब वे उसे उठाकर ऊपर ले आये । लेकिन उस समय यह बड़ी विचित्र घटना घटी कि वह मगर तत्क्षण एक सुन्दरी अप्सरा के रूप में परिणित हो गए। अर्जुन के पुछने पर अप्सरा ने बतालाया कि मैं कुबेर की प्रेयसीवर्गा नाम की अप्सरा हूं। एक बार मैं अपनी चार सहेलियों के साथ कुबेर जी के पास जा रही थी। रास्ते में एक तपस्वी के तप में हम लोगों ने विघ्र डालना चाहा। तपस्वी के मन में काम का भाव उत्पन्न नहीं हुआ लेकिन क्रोधवश उन्होने शाप दे दिया कि तुम पांचों मगर होकर सौ वर्ष तक पानी रहोगे। नारद से यह जानकर कि पाण्डव अर्जुन यहां आकर थोड़े ही दिनों में हमारा उद्धार कर देंगे। हम लोगों इन तीर्थो में मगर होकर रह रही हैं। आप हमारा उद्धार कर दिजिए। उलूपी के वरदान के कारण अर्जुन को जलचरों से कोई भय नहीं उन्होंने सब अप्सराओं का उद्धार भी कर दिया और उनके प्रयत्न से अधिक वहां के सब तीर्थ बाधाहीन भी हो गये।

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