शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

औरतों के बारे में सोच बदलने का समय है

समाज भले ही आधुनिकता का दावा भरते हों लेकिन महिलाओं के लिए सोच अभी भी दोयम ही है। महिलाओं की क्षमता और चरित्र को लेकर हमेशा संशय के भाव से ही देखा जाता रहा है। आज की नारी भले ही आधुनिका है लेकिन उसके पीछे पुरुष वर्ग की हीन सोच आज भी वैसी ही है।
सचमुच औरत के लिए जमाना कभी नहीं बदला। सत्यनारायण व्रत कथा में साधु नामक वैश्य अपने दामाद के साथ जब व्यापार करने जाता है तो वहां उसे जेल हो जाती है। इस प्रसंग में गांव में रह गई उन दोनों की पत्नियों ने जो गतिविधि की थी उसमें जीवन के संघर्ष का एक नया रूप सामने आता है। एक तो दोनों स्त्रियां गांव में अकेली थीं। उधर उनके पति जेल में थे। अत: समाज ने भी इनकी ओर से मुंह मोड़ लिया। स्त्रियां यदि अकेली हों तो समाज में उनका संघर्ष और बढ़ जाता है। मां-बेटी बहुत परेशान थीं किंतु बेटी के मन में समस्या के समाधान की ललक बनी हुई थी। जिंदगी का कायदा है कि हमें ऐसे सत्य और शक्ति की तलाश करते रहना चाहिए जिन्हें दूसरे नजरअंदाज कर रहे हैं।
दूसरों के द्वारा छोड़े गए अवसरों को तुरंत लपक लें।बेटी कलावती एक दिन एक कथा में पहुंच गई। वह लगातार प्रयासरत थी। जिन व्यक्तियों में चरित्र होता है, दृढ़ता होती है उनका व्यक्तित्व कठिनाई में विशेष आकर्षक रूप ले लेता है। बेटी के मुंह से कथा वाला प्रसंग सुनकर मां के मन में आया और दोनों ने स्वयं व्रत तथा पूजन किया।यहां एक बड़े सूत्र की बात सामने आई है। वैश्य और उसका दामाद कारागृह से इसलिए मुक्त हुए थे कि उन दोनों की पत्नियों ने पूजन और व्रत के माध्यम से उनकी मुक्ति का प्रयास किया था। भारत में नारियां तब भी और अब भी देहरी भीतर और देहरी बाहर दोहरा दायित्व निर्वाह कर रही हैं। इसलिए मातृ शक्ति के संघर्ष को पूरा सम्मान दिया जाए। अपना सबकुछ न्यौछावर करने के बाद माताओं और बहनों की एक ही मांग रहती है कि कुछ पल का सम्मान, कुछ क्षण का स्नेह और समाज का पुरुष वर्ग इन्हें देने में चूक ही जाता है।

प्रकृति की गोद में मिलेगा परमात्मा
डर कर भी पा सकते हैं परमात्मा को
चंचल चित्त में नहीं बनता परमात्मा का चित्र
अगर सीधे पहुंचना हो परमात्मा तक
परमात्मा चाहिए तो माया से ऊपर उठिए
तस्वीरें बढ़ाएगीं परिवार में खुशियां
....इसलिए टूट जाते हैं परिवार
गृहस्थी में जरूरी है मन की शांति और शालीनता
भागवत-3: गृहस्थी का ग्रंथ है भागवत
वासना है गृहस्थी में अशांति का मूल
गृहस्थी के ग्रंथ के रूप में अब रोजाना पढ़ें भागवत
सफल गृहस्थी के सूत्र सीखें कृष्ण से
..तो गृहस्थी वैकुंठ होगी, जंजाल नहीं

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