शुक्रवार, 18 मार्च 2011

जब गोपियों ने उद्धव को देखा तो उन्हें लगा....

जब भगवान् भुवन भास्कर का उदय हुआ, तब व्रजांगनाओं ने देखा कि नन्दबाबा के दरवाजे पर एक सोने का रथ खड़ा है। वे एक-दूसरे से पूछने लगीं यह किसका रथ है? किसी गोपी ने कहा कंस का प्रयोजन सिद्ध करने वाला अक्रूर ही तो कहीं फिर नहीं आ गया है? जो कमलनयन प्यारे श्यामसुंदर को यहां से मथुरा ले गया था। किसी दूसरी गोपी ने कहा- क्या अब वह हमें ले जाकर अपने मरे हुए स्वामी कंस का पिण्डदान करेगा ? अब यहां उसके आने का और क्या प्रयोजन हो सकता है? व्रजवासिनी स्त्रियां इसी प्रकार आपस में बातचीत कर रही थीं कि उसी समय नित्यकर्म से निवृत्त होकर उद्धवजी आ पहुंचे।गोपी प्रेम देखा-उद्धवजी यशोदा की आज्ञा से यमुना स्नान को चले। सखियों को भी कन्हैया का सन्देश देना था।
गोपियों का कृष्ण कीर्तन सुना, तो उन्होंने सोचा कि जिनके कण्ठ इतने मधुर हैं, वे कैसी अद्भुतस्वरूपा होंगी। उन्होंने अब तक किसी भी गोपी का दर्शन पाया नहीं था।ब्रह्म मुहूर्त में कृष्ण कीर्तन करने वाले ये गोप धन्य हैं। कृष्ण के स्मरण मात्र से इनके हृदय द्रवित होते हैं। उद्धवजी का ज्ञानमार्ग धीरे-धीरे मिट रहा था। उद्धव भये सुद्धव। उद्धव का ज्ञान भक्ति रहित था, सो कृष्ण ने उनको ब्रज भेजा। उद्धवजी नन्द-यशोदा की प्रेम मूर्ति को देखकर आनन्दित हो गए।नन्द के आंगन में गोपियां प्रणाम करने आईं। गोपियों ने देखा कि वहां रथ खड़ा है। उनको अक्रूर प्रसंग याद आ गया। हमारे कन्हैया को ले जाने वाला अक्रूर लगता है फिर आया, क्यों आया होगा ?
ललिता नाम की सखी कहने लगी-मैं कृष्ण को ज्यों-ज्यों भूलने का प्रयत्न करती हूं वे उतने ही याद आते हैं। कल मैं कुंए पर जल भरने गई थी तो बांसुरी का स्वर सुनाई दिया। एक गोपी कहती है लोग चाहे कुछ भी कहें किन्तु मुझे तो कृष्ण यहीं दिखाई देता है मथुरा गया ही नहीं।उद्धवजी ने गोपियों को अपना परिचय देते हुए कहा-मैं तुम्हारे मथुरावासी श्रीकृष्ण का अन्तरंग सखा उद्धव हूं और आपके लिए उनका सन्देश लाया हूं। गोपियां बोलीं-तुम थोथे पण्डित ही हो। क्या श्रीकृष्ण केवल मथुरा में ही बसते हैं। वे तो सर्वत्र हैं, तुम्हें मात्र मथुरा में ही भगवान दिखाई देते हैं और हमको तो यहां कण-कण में उनका दर्शन हो रहा है

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