शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कि जिंदगी हल्की हो जाए...

रिश्तों की जान संवेदना में होती है लेकिन आज रिश्ते भी बोझ बन गए हैं। दुनियाभर का वजन लादे हम लोग रिश्तों का बोझ उठाने में थके-थके से हो जाते हैं और जीवन बोझिल हो जाता है। मुस्लिम फकीर अबुल हसन खिरकानी जिन्दगी में छोटी-छोटी चीजों को अलग ही नजरिए से देखते थे। उनकी बात ठीक से समझ लें तो जिन्दगी के लिए बहुत बड़ा संदेश बन जाएगी। उनकी बीवी बड़ी तुनक मिजाज थीं।
एक दफा एक शख्स अबुल हसन के घर उनसे मिलने गए। उनकी बीवी से पूछा शेख कहा हैं। मोहतरमा पलट कर बोलीं - तू ऐसे नाकाबिल और बुरे आदमी को शेख कहता है, हाँ, मेरा शौहर जरूर जंगल में लकड़ी लेने गया है। वो जनाब पति-पत्नी के रिश्ते की गरमाहट और बोझ को समझ गए और जंगल पहुँचे। देखा तो ताज्जुब में आ गए। अबुल हसन चले आ रहे हैं उनके साथ एक शेर है और उस पर लकडिय़ों का बोझ रखा है। उन शख्स ने फरमाया आपकी बीवी आपके बारे में कुछ और ही अल्फाज कह रही है और आप ये करिश्मा किए जा रहे हैं। इसके जवाब में हसन ने मुस्कुराकर बड़ी गहरी बात कह दी- च्च्सुनो मेरे भाई यदि मैं अपनी बीवी की तुनक मिजाजी का बोझ न उठाऊं तो ये शेर मेरा बोझ क्यों उठाएगा?ज्ज् यदि बोझ ही बन जाएं, जो बन ही जाते हैं तो फिर उन्हें ऐसे उठाएं कि कम से कम जिन्दगी थोड़ी हल्की हो जाए।
हमारा जीवन भी इन बातों की सच्चाई से जुड़ा है। अगर हम रिश्तों के वजन को संवेदनशीलता से लें तो आसानी से जिया जा सकता है। अबुल हसन का जीवन ऐसे ही संदेश देता है, बस हमें इसे समझना है।

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