सोमवार, 14 मार्च 2011

पानी पर तैरती आस्था

क्या पत्थर की सात किलो वजनी प्रतिमा पानी पर तैर सकती है?..क्या प्रतिमा के तैरने या न तैरने से आने वाले अच्छे या बुरे समय का पता लगाया जा सकता है? आइए चलते हैं आस्था या अंधविश्वास की इस बार की कड़ी में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने...
मध्यप्रदेश के देवास जिले से 45 किमी दूर हाटपीपल्या गाँव के नृसिंह मंदिर की प्रतिमा प्रतिवर्ष नदी में तैरती है। आखिर कैसे घटित होता है यह चमत्कार यह जानने के लिए हमने इस दृश्य को बाकायदा हमारे कैमरे में कैद किया।
प्रतिवर्ष भादवा सुदी 11 (डोल ग्यारस) पर सेंधला नदी पर पूजा-अर्चना कर पूरे सम्मान के बाद प्रतिमा तैराई जाती है। इस चमत्कार को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुट जाती है, परंतु आज के इस आधुनिक युग में यह बात आश्चर्यजनक लगती है।

नृसिंह मंदिर के प्रमुख पुजारी गोपाल वैष्णव ने कहा कि यदि भगवान की प्रतिमा एक बार तैरती है तो साल के चार माह अच्छे माने जाते हैं और यदि तीन बार तैरे तो पूरा साल अच्छा बीतता है।
यहाँ के निवासी सोहनलाल कारपेंटर का कहना है कि वे भगवान नृसिंह की प्रतिमा के तैरने के चमत्कार को पिछले 20-25 वर्षों से देख रहे हैं और ग्रामवासियों की इस प्रतिमा में अटूट आस्था है।

मंदिर के एक अन्य पुजारी ने कहा कि भगवान का यह चमत्कार हमने अपनी आँखों से देखा है और हम मंदिर के पुजारी ही उक्त प्रतिमा को पानी में तैरने के लिए उतारते है। उस दौरान लाखों लोगों की भीड़ रहती है।
हर डोल ग्यारस पर हाटपीपल्या के स्थानीय नृसिंह मंदिर से ढोल-ढमाके के साथ शाम चार बजे से मंदिर की नृसिंह भगवान की प्रतिमा को लेकर जुलूस शुरू होता है। इस दिन पूरे नगर में हर घर में लौंग का प्रसाद वितरित किया जाता है और नगरवासियों का सम्मान करते हैं। यहाँ पर इस प्रतिमा पर हार चढ़ाने की बोली लगाई जाती है। इसी दिन महिलाएँ इस डोल की पूजा-अर्चना करती हैं। रात को करीब तीन बजे ये डोल पुन: नृसिंह मंदिर में पहुँच जाते हैं।

शाम को ही जुलूस नृसिंह घाट पर पहुँचता है। नृसिंह घाट पर डोल को स्नान कराया जाता है। फिर पानी की पूजा-अर्चना की जाती है। तत्पश्चात्य मुख्य पुजारी गोपालदास वैष्णव, रमेशदास और विष्णुदास वैष्णव पानी का बहाव जाल फेंककर देखते हैं। जाल इसलिए कि एक निश्चित सीमा तक मूर्ति के तैरने के बाद यह यदि डूबने लगे तो जाल से उसकी रक्षा हो।
फिर नृसिंह मंदिर के पुजारी द्वारा मंत्रोच्चार के साथ इस साढ़े सात किलो की प्रतिमा को नदी में छोड़ा जाता है। यह सब नजारा देखकर श्रृद्धालुओं द्वारा गगनभेदी जयकारे लगाए जाते हैं। प्रतिमा को सिर्फ तीन बार ही पानी में छोड़ा जाता है। पिछले साल यह प्रतिमा दो बार तैरी थी, लेकिन इस वर्ष यह केवल एक ही बार तैरी।
कई वर्षों पहले तत्कालीन होलकर महाराज की जिद पर पाषाण प्रतिमा को जब चौथी बार पानी में तैराया गया तो यह प्रतिमा पानी में गायब हो गई थी। फिर मंदिर के पंडित को सपना आया कि अमुक जगह पानी में प्रतिमा है, तब बड़ी मशक्कत के बाद वह प्रतिमा मिली। ऐसे अनेक चमत्कार जुड़े हैं इस प्रतिमा से।
मंदिर में स्थापित नृसिंह भगवान की प्रतिमा नृसिंह पहाड़ से लाई गई है। पहले यह प्रतिमा नृसिंह गढ़ी में खेड़ापति मंदिर में स्थापित थी, लेकिन पिछले लगभग 85 वर्षों से इस प्रतिमा के लिए अलग मंदिर का निर्माण कर विधिवत नृसिंह प्रतिमा स्थापित की गई।

यहाँ के लोगों का मानना है कि अगर नदी में गर्मी के दिनों में पानी पूरा भी सूख जाता है, तब भी डोल ग्यारस आने के पूर्व नदी में बारिश के कारण पानी पुन: भर जाता है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि प्रतिमा तैराने वाले दिन नदी में पानी नहीं रहा हो।
आखिर क्या कारण हो सकता है प्रतिमा के तैरने का...क्या प्रतिमा जिस पत्थर से बनी है, उसका स्वरूप ही ऐसा है या वाकई यह कोई दैवीय चमत्कार है, फैसला आपको करना है.. अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराएँ...

रेल मार्ग : इंदौर से देवास तक रेल मार्ग द्वारा पहुँचकर वहाँ से बस सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग : देवास से 45 किमी दूर तहसील हाटपीपल्या पहुँचने के लिए बस और टैक्सी सुविधा उपलब्ध है।
वायु मार्ग : हाटपीपल्या के सबके पास स्थित है इंदौर का एयरपोर्ट।

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