शुक्रवार, 18 मार्च 2011

मैं तो मर गया

बात पांच साल पुरानी है। होली के दिन देवरजी को उनके दोस्तों ने काफी ज्यादा भांग पिला दी। भांग पीते ही और उनके मुंह से पहला शब्द फूट पड़ा- ‘बाप रे, मैं तो मर गया।’ कहते हैं कि भांग पीने के बाद जो पहला शब्द मुंह से निकलता है, व्यक्ति बार-बार वही शब्द बोलता है। शाम को वे सभी नशे में धुत, लड़खड़ाते हुए घर आए।

घर में चारपाई में बैठे देवर जी बोले जा रहे थे, ‘ए विजु (देवरानी का नाम), मुझे मरना है और मैं मरने जा रहा हूं।’ वे खूब ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे। देखते-देखते घर और आंगन में भीड़ जमा हो गई। छोटे बच्चों को मज़ा आ रहा था। वहीं बड़े-बुज़ुर्ग समझा रहे थे कि ‘कुछ नहीं हुआ है तुझे, भांग पीने से भी कोई मरता है क्या? शोर मत मचा।’
लेकिन देवर जी थे कि बार-बार चिल्लाए जा रहे थे, ‘बाप रे, मैं तो मर गया। मैं तो मरने जा रहा हूं।’ इतना सुन देवरानी भी रोने लगी और कहने लगी, ‘आप चले गए, तो मेरा क्या होगा?’ इस पर देवरजी ने कहा, ‘विजु, पहले पेन और कागज़ ले आ। मैं अभी के अभी सारी ज़ायदाद और ज़मीन तेरे नाम कर देता हूं। मेरी नौकरी भी तुझे मिल जाएगी, फिर आराम से अपनी ज़िंदगी बिताना। जल्दी कर मेरे पास टाइम नहीं है। मुझे मरने जाना है।’
विजु भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, ‘आग लगे इन चीज़ों को। आपके बिना इन चीज़ों का क्या करूंगी? मैं आपके बिना ज़िंदा नहीं रह सकती।’ इस पर देवर जी ने कहा, ‘ठीक है, तू भी चल मेरे साथ मरने के लिए। ये देख मैं तो चला ऊपर को मरने। अरे विजु, ये क्या हुआ. मैं तो छत में अटक गया। जल्दी आ और छत को तोड़ दे। इसके कारण मैं ऊपर मरने को नहीं जा पा रहा।’
डर के मारे देवरानी भगवान से प्रार्थना करने लगी, ‘हे प्रभु, मेरे पति के प्राणों की रक्षा करना। मैं सत्यनारायण की कथा कराऊंगी, नंगे पैर दर्शन को आऊंगी। इनको कभी भांग नहीं पीने दूंगी।’ तभी एक आदमी जामफल के पत्तों का रस निकाल लाया। रस पीते ही देवरजी को उल्टी हुई और नींद आ गई। आज भी होली आती है, तो उस दिन को याद कर हम सबका हंस-हंसकर बुरा हाल होता है। बच्चे देवरजी को चिढ़ाते हुए कहते हैं, ‘काका मरने के लिए चलना है क्या?’

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