सोमवार, 21 मार्च 2011

उद्धव मथुरा पहुंचकर गोपियों की प्रशंसा करने लगे क्योंकि....

हमारी वाणी नित्य-निरन्तर उन्हीं के नामों का उच्चारण करती रहे और शरीर उन्हीं को प्रणाम करने, उन्हीं के आज्ञा-पालन और सेवा में लगा रहे। उद्धवजी! हम सच कहते हैं, हमें मोक्ष की इच्छा बिल्कुल नहीं है। हम भगवान् की इच्छा से अपने कर्मों के अनुसार चाहे जिस योनि में जन्म लें वहां शुभ आचरण करें, दान करें और उसका फल यही पावें कि हमारे अपने ईश्वर श्रीकृष्ण में हमारी प्रीति उत्तरोत्तर बढ़ती है। प्रिय परीक्षित नन्दबाबा आदि गोपों ने इस प्रकार श्रीकृष्ण भक्ति के द्वारा उद्धवजी का सम्मान किया।
अब वे भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा सुरक्षित मथुरा में लौटे आए। वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और उन्हें व्रजवासियों की प्रेममयी भक्ति का उद्रेक, जैसा उन्होंने देखा था, कह सुनाया।मथुरा लौटै-उद्धवजी कृष्ण के पास आए। अन्तरयामी श्रीकृष्ण जानते हैं कि उद्धवजी क्या कहने जा रहे हैं। सो वे कहने लगे-उद्धव जब तुम इधर थे, तो मेरी प्रशंसा करते थे।
अब गोकुल हो आए हो, तो गोपियों की प्रशंसा करने लगे हो। मैं निष्ठुर नहीं हूं। उद्धव का गोकुलागमन प्रसंग ज्ञान और भक्ति के मधुर कलह का चित्रण है।यूं कहा जा सकता है कि गोकुल से लौटकर उद्धवजी की कुण्डलिनी जाग्रत हो गई थी। गोपी भाव योगी भाव एक जैसे हैं एक स्थिति में जाकर।आत्म स्वरूपा शक्ति कुण्डलिनी ब्रम्हा ही है। पंच महाभूतों के माध्यम से यह जब व्यक्त होती है तो जड़ कहलाती है और इन्द्रिय मन, बुद्धि, चित्त अहंकार के माध्यम से व्यक्त होती है, तब चेतन कहलाती है। इसका शक्तिपात में रूपांतरण होता है। चेतनता का गुरु शक्तिपात द्वारा जाग्रत करते हैं।

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