शुक्रवार, 18 मार्च 2011

नारद मुनि को क्यों हो गया अभिमान?

कामदेव की कोई कला नारदमुनि पर असर नहीं कर सकी। अप्सराओं की सुन्दरता भी नारदजी को रिझा नहीं पाई। नारदजी को कामदेव के इतना करने पर भी गुस्सा नहीं आया। कामदेव को उनकी भूल का अहसास हुआ तब उन्होंने नारदजी से माफी मांगी। उसके बाद इन्द्र की सभा में जाकर कामदेव ने इन्द्र को सारी बात बताई। सभी ने कामदेव की बात सुनकर नारदजी के सामने सिर नवाया।
तब नारदजी शिवजी के पास गए। उनके मन में इस बात का घमंड हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया। तब शिवजी से जाकर उन्होंने कहा जिस तरह ये जो सारी बात आपने मुझे सुनाई। उस तरह शिवजी को कभी मत सुनाना। शिवजी ने यह शिक्षा नारदजी को उनके भले के लिए ही दी लेकिन उन्हें शिवजी की यह बात अच्छी नहीं लगी। एक बार नारदजी घुमते हुए विष्णु भगवान के लोक पहुंचे। विष्णु जी ने बड़े ही आदर से उन्हें आसन पर बिठाया। नारदजी ने शिवजी के मना करने के बाद भी विष्णु जी को अपने साथ घटित हुई सारी कथा सुनाई।
तब भगवान समझ गए कि नारदजी के मन में घमंड का अंकुर पैदा हो गया है। भगवान ने सोचा मुझे इनके मन से ये अंकुर तुरंत उखाड़ फेंकना चाहिए। तब विष्णुजी ने अपनी माया से एक नगर रचा। वह नगर विष्णु भगवान के नगर से ज्यादा सुन्दर था। उस नगर में कई सुन्दर पुरुष और स्त्रियां रहते थे। उस नगर का वैभव इन्द्र की नगरी की तरह था। उस नगर में एक रूपवती कन्या थी।जिसके रूप को देखकर लक्ष्मी जी भी मोहित हो जाए। वह राजकुमारी सब गुणों की खान थी। उसके स्वयंवर के लिए दूर-दूर से कई राजकुमार आए हुए थे। नारदजी जी उस समय नगर में गये।
(www.bhaskar.com)

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