मंगलवार, 22 मार्च 2011

आदत बुरी सुधार लो

किसी भी व्यक्ति के पास कितनी ही धनसमृद्धि या पराक्रम क्यों ना हो?लेकिन एक भी बुरी आदत किसी की सारी अच्छाईयों पर भारी पड़ सकती है और दुख का कारण बन सकती हैं। युघिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता है उनके सभी भाई उनका सम्मान करते हैं सभी धर्म के अनुसार कार्य करते हैं लेकिन किसी भी तरह का व्यसन इंसान के सुखी जीवन को दुखी बना सकता है।
महाभारत में अब तक आपने पढ़ा...सभी पांडवों द्वारा दुर्योधन की हंसी उड़ाना अब आगे...दुर्योधन जब वापस लौटकर आया तो पाण्डवों की हंसी जैसे उसके कानों में गुंज रही थी। उसका मन गुस्से से भरा हुआ था मन भयंकर संकल्पों से भर गया। शकुनि ने उसका गुस्सा भाप लिया और बोला भानजे तुम्हारी सांसे लंबी क्यों चल रही है? दुर्योधन बोला मामाजी धर्मराज युधिष्ठिर ने अर्जुन के शस्त्र कौशल से सारी पृथ्वी अपने अधीन कर ली है। उन्होंने राजसूय यज्ञ करके सब कुछ जीत लिया है। उनका यह ऐश्वर्य देखकर मेरा मन जलता है।
कृष्ण ने सबके सामने ही शिशुपाल को मार गिराया। लेकिन किसी राजा ने कुछ नहीं किया। समस्या तो यह है कि मैं अकेला तो कुछ नहीं कर सकता और मुझे कोई सहायक नहीं देता है। अब मैं सोच रहा हूं कि मैं मौत को गले लगा लूं। मैने पहले भी पांडवों के अस्तित्व को मिटाने कि कोशिश की लेकिन वो बच गए और अब तरक्की करते जा रहे हैं। अब आप मुझ दुखी को प्राण त्यागने की आज्ञा दीजिए क्योंकि मैं गुस्से की आग मैं झुलस रहा हूं। आप पिताजी को जाकर यह समाचार सुना दीजिएगा।
तब शकुनि ने कहा पाण्डव अपने भाग्य के अनुसार भाग्य का भोग कर रहे हैं। तुम्हे उनसे द्वेष नहीं करना चाहिए। तुम्हारे सभी भाई तुम्हारे अधीन और अनुयायी है। तुम इनकी सहायता से चाहो तो पूरी दुनिया जीत सकते हो। दुर्योधन बोला मामा श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीमसेन, नकुल, सहदेव, द्रुपद, आदि को युद्ध में जीतना मेरी शक्ति से बाहर है। लेकिन युधिष्ठिर को जीतने का उपाय बतलाता हूं। युधिष्ठिर को जूए का शौक तो बहुत है लेकिन उन्हें खेलना नहीं आता है। अगर उन्हें जूए के लिए बुलाया जाए तो वे मना नहीं कर पाएंगे। इस तरह उनकी शक्ति को पराजित करने का सबसे आसान तरीका है कि मैं उन्हें जूए मैं हरा दूं।

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