शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

...और धृतराष्ट्र बेहोश होकर गिर पड़े

जब विदुरजी हस्तिनापुर से पाण्डव के पास काम्यक वन में चले गए। तब विदुर के जाने के बाद धृतराष्ट्र को बहुत पश्चाताप हुआ। वे विदुर का प्रभाव उसकी नीति को याद करने लगे। उन्हें लगा इससे तो पाण्डवों का फायदा हो सकता है। यह सोचकर धृतराष्ट्र व्याकुल हो गए। भरी सभा में राजाओं के सामने ही मुच्र्छित होकर गिर पड़े।
जब होश आया तो उन्होंने उठकर संजय से कहा-संजय से कहा संजय मेरा प्यारा भाई विदुर मेरा परम हितैषी और धर्म की मुर्ति है। उसके बिना मेरा कलेजा फट रहा है। मैंने ही क्रोधवश होकर अपने निरापराध भाई को निकाल दिया है। तुम जल्दी जाकर उसे ले आओ। विदुर के बिना मैं जी नहीं बना सकता। धृतराष्ट्र की आज्ञा स्वीकार करके संजय ने काम्यक वन की यात्रा की।
काम्यक वन में पहुंचकर संजय ने देखा कि युधिष्ठिर अपने भाई और विदुरजी के साथ हजारों ब्राह्मणों के बीच में बैठे हुए है। संजय ने प्रणाम करके विदुरजी से कहा राजा धृतराष्ट्र आपकी याद कर रहे हैं। आप हस्तिनापुर चलिए वे आप से मिलना चाहते हैं। विदुर से मिलकर धृतराष्ट्र को बहुत खुशी है।उन्होंने कहा मेरे भाई तुम्हारा कोई जाने के बाद नींद नहीं आई। मैंने तुम्हारे साथ जो व्यवहार किया है उसके लिए तुम मुझे क्षमा कर दो। इस तरह विदुर फिर से हस्तिनापुर में रहने लगे।

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