शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

किससे डरते थे युधिष्ठिर?

पाण्डवों ने आगे बढ़कर वेदव्यासजी का स्वागत किया। उन्होंने व्यासजी को आसन पर बैठाकर विधिपूर्वक उनकी पूजा की। वेदव्यास जी ने युधिष्ठिर से कहा कि प्रिय युधिष्ठिर- मैं तुम्हारे मन की सब बात जानता हूं। इसीलिए इस समय तुम्हारे पास आया हूं। तुम्हारे मन में भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण का जो भय है उसका मैं रीति से विनाश करूंगा। तुम मेरा बतलाया हुआ उपाय करो। तुम्हारे मन से सारा दुख अपने आप मिट जाएगा।
यह कहकर वेदव्यास युधिष्ठिर को एकांत में ले गए और बोले युधिष्ठिर तुम मेरे शिष्य हो, इसलिए मैं तुम्हे यह मूर्तिमान सिद्धि के समान प्रतिस्मृति नाम की विद्या सिखा देता हूं। तुम यह विद्या अर्जुन को सिखा देना, इसके बल से वह तुम्हारा राज्य शत्रुओं के हाथ से छीन लेगा। अर्जुन तपस्या तथा पराक्रम के द्वारा देवताओं के दर्शन की योग्यता रखता है। इसे कोई जीत नहीं सकता।
इसलिए तुम इसको अस्त्रविद्या प्राप्त करने के लिए भगवान शंकर, देवराज इन्द्र, वरूण, कुबेर और धर्मराज के पास भेजो। यह उनसे अस्त्र प्राप्त करके बड़ा पराक्रम करेगा। अब तुम लोगों को किसी दूसरे वन में जाना चाहिए क्योंकि किसी तपस्वी का लंबे समय तक एक स्थान पर रहना दुखदायी होता है। ऐसा कहकर वेदव्यास वहां से चले गए। युधिष्ठिर व्यासजी के उपदेश अनुसार मन्त्र का जप करने लगे। उनके मन में बहुत खुशी हुई।

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