बुधवार, 13 अप्रैल 2011

ये कैसा वरदान मिला राजा को?

अब वह तपस्वी राजा को अपनी पुरानी कहानी कहने लगा। कर्म, धर्म आदि की कहानियां कहकर अपने ज्ञान का बखान करने लगा। राजा सुनकर उस तपस्वी के वश में हो गया और तब वह उसे अपना नाम बताने लगा। तपस्वी ने कहा राजन् मैं तुम को जानता हूं। तुमने कपट किया, वह मुझे अच्छा लगा। तुम्हारी चतुराई से मुझे बड़ा प्रेम हो गया है। तुम्हारा नाम प्रतापभानु है, महाराज सत्यकेतु तुम्हारे पिता थे। गुरू की कृपा से मैं सब जानता हूं। तुम्हारे स्वभाव के सीधेपन व प्रेम से मेरे मन में तुम्हारे ऊपर बड़ी ममता उत्पन्न हो गयी है, इसीलिए मैं तुम्हारे पूछने पर अपनी कहानी सुनाता हूं। अब मैं प्रसन्न हूं तुम इसमें अपने मन में कोई संशय मत रखना। तब राजा ने कहा- मुनि सिर्फ आपके दर्शन से ही धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मेरी मुठ्ठी में आ गए तो भी आपको खुश देखकर यह वर मांगना चाहता हूं कि मेरा शरीर वृद्धवस्था मृत्यु और दुख से रहित हो जाए और मुझेे युद्ध में कोई ना जीत पाए। तब तपस्वी ने कहा राजन ऐसा ही हो पर एक बात कठिन है उसे भी सुन लो। केवल ब्राह्मण कुल को छोड़कर काल भी तुम्हारे चरणों में सिर झुकाएगा एवमस्तु। कपटी मुनि फिर बोला- तुम मेरे मिलने की या राह भूल जाने की बात किसी से कह दोगे, तो हमारा दोष नहीं। अगर यह बात किसी और के कान में पड़ गई तो तुम्हारा नाश हो जाएगा।

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