मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

...और ब्राह्मणों ने राजा को राक्षस बनने का दे दिया श्राप

कपटी तपस्वी ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार प्रतापभानु के पुरोहित को उठा ले गया और माया से उसकी बुद्धि भ्रम में डाल दी। अब तपस्वी पुरोहित का रूप बना लिया। सुबह जब राजा ने खुद को राजमहल में देखा तो उसने तपस्वी का उपकार माना।
राजा प्रतापभानु चुपचाप फिर से वन में चला गया और कुछ समय पर पुन: नगर में लौट आया ताकि किसी को शंका न हो। राजा के सकुशल लौट आने पर नगर में काफी खुशियां मनाई गईं। उसी समय पुरोहित के वेश में वह तपस्वी राजा ने मिला और राजा ने उसे पहचान लिया।
राजा ने तपस्वी गुरु की आज्ञा पाकर एक लाख ब्राह्मणों को कुटुंब सहित निमंत्रण दे दिया। पुरोहित ने माया से वेदों के अनुसार भोजन बनाया। भोजन में अनेक प्रकार के पशुओं का मांस भी पकाया जिसमें कपटी तपस्वी ने ब्राह्मणों का मांस मिला दिया। प्रतापभानु इस कपट को समझ नहीं सका।
निमंत्रण पाकर सभी ब्राह्मण वहां आ पहुंचे। राजा ने भोजन परोसना शुरू किया उसी समय मायावी राक्षस कालकेतु ने आकाशवाणी की और बता दिया कि इस भोजन में ब्राह्मणों का मांस मिला हुआ है। यह सुनते ही सभी ब्राह्मण क्रोधित हो गए और राजा प्रतापभानु को श्राप दे दिया कि वह पूरे परिवार सहित राक्षस बन जाएगा।

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