रविवार, 10 अप्रैल 2011

बाघों की बढ़ी संख्या की हकीकत क्या है?

केंद्र सरकार द्वारा की गई बाघों की गिनती को राज्यों के अफसर गलत बता रहे हैं। मध्यप्रदेश के एक प्रमुख वन अफसर डॉ. एचएस पाब्ला कहते हैं कि टाइगर की गणना से मैं बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं। कान्हा में बाघ कम नहीं हुए हैं बल्कि बढ़े हैं।
छत्तीसगढ़ के वन अफसरों का दावा है कि नक्सली समस्या के कारण उनके राज्य में बाघों की गणना की ही नहीं गई। तो राजस्थान के वन अफसर दावा कर रहे हैं कि उनके यहां बाघों की संख्या 13 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि गणना में उसे स्थिर बताया गया है।

जानेमाने बाघ विशेषज्ञ इन दावों को अपनी कमियां ढंकने की कोशिश बता रहे हैं।
पैसों से नहीं बचते टाइगर
जिन राज्यों को प्रोजेक्ट टाइगर के तहत ज्यादा धन दिया था वे ही बाघ बचाने में असफल साबित हुए। मध्यप्रदेश को पिछले तीन सालों में 138 करोड़ रुपए मिले, जबकि बाघों की संख्या 300 से घटकर 257 रह गई।
उत्तराखंड को सिर्फ 9 करोड़ रुपए मिले, पर वहां बाघों की आबादी 178 से बढ़कर 227 हो गई। पॉब्ला कहते हैं हमारे यहां अधिक टाइगर रिजर्व हैं। इसलिए पैसा भी अधिक चाहिए। कनार्टक में बाघों की तादाद बढ़ने पर वहां के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ, बीके सिंह कहते हैं कि हमारे यहां सीमित टूरिज्म के साथ बाघों की रक्षा का उचित इंतजाम है। जिसके कारण बाघ बढ़े हैं।

114 और बाघों के लिए बचे हैं जंगल
इस दौरान बाघों के रिहायशी क्षेत्र में जबरदस्त कमी आई है। पिछली गणना के वक्त देश के 93600 वर्ग किलोमीटर में बाघ रहते थे जो कि अब घटकर 72800 वर्गकिमी रह गया है। सामान्यतौर पर एक बाघ को विचरण के लिए 40 किलोमीटर के जंगल की आवश्यकता पड़ती है।
देश में अभी जितना क्षेत्र बचा है उसमें 1820 बाघ रह सकते हैं। देश में फिलहाल मौजूद 1706 बाघों में से भी 30 फीसदी बाघ टाइगर रिजर्व पार्क के बाहर मौजूद हैं। देश में बाघों की गिनती करने वाली संस्था भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ. वाई वी झाला कहते है कि इससे बाघों की आपस में लड़ाई बढ़ रही है।

तो होते 2101 बाघ
पिछले एक दशक में 395 बाघों का शिकार हुआ है। यदि इन्हें बचा लिया जाता तो देश में बाघों की तादाद आज २१क्१ होती।
घटता इलाका है चिंता की बात
बाघों का इलाका कम होना चिंता की बात है। दक्षिण में बाघ बढ़े हैं पर मैं भारत में बाघों के भविष्य को लेकर अभी भी चिंतित हूं। सरकार को समझना चाहिए कि बाघों को रहने के लिए इलाके की जरूरत होती है।
बेलिंडा राइट, कार्यकारी निदेशक, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया

मध्यप्रदेश में कम बाघ हैं शर्मनाक

मध्यप्रदेश में बाघों की तादाद कम होना शर्मनाक है। पन्ना में बाघ गायब हो रहे थे, लेकिन सरकार बार-बार इसे झुठला रही थी। यदि मध्यप्रदेश सरकार सरकारी आंकड़ों को नहीं मानेगी तो किसे मानेगी?
वाल्मीक थापर,प्रख्यात बाघ विशेषज्ञ,नई दिल्ली

ये आंकड़े हैं सरकारी मार्केटिंग का हिस्सा

ये आंकड़े सरकारी मॉर्केटिंग का हिस्सा हैं। मध्य प्रदेश सरकार का पूरा फोकस टूरिज्म को बढ़ावा देना है। टाइगर रिजर्व के आसपास अंधाधुंध होटल, रिसॉर्ट खुल रहे हैं। इससे भी बाघों का एरिया घट रहा है।
अशोक कुमार, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वाइस चेयरमैन

अफसर भी आमने-सामने

बदल दिए गए हमारे आंकड़े
हमने जो फैक्ट फिगर भेजे थे, वहां जाकर वे बदल गए। बाघ को सबसे अधिक खतरा शिकार और मनुष्य से है, लेकिन हम लगातार निगरानी कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर गांव भी खाली कराए जा रहे हैं।
डॉ. एचएस पाब्ला, मध्यप्रदेश के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ

मध्यप्रदेश के लिए बड़ा झटका

सबसे अधिक नुकसान पन्ना और कान्हा में हुआ है। इससे मध्यप्रदेश को झटका लगा है और वह शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया है। यदि सीमित टूरिज्म के साथ अच्छा मैनेजमेंट किया जाए तो बाघों की संख्या और अधिक बढ़ सकती है।
डॉ.वाईवी झाला, भारतीय वन्यजीव संस्थान

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