शनिवार, 23 अप्रैल 2011

भागवत २३६: तब कृष्ण ने 16000 स्त्रियों की रक्षा का वचन दिया....

उनकी आठवी पत्नी लक्ष्मणा बनी। भगवान् अपनी रानियों के साथ बैठे हुए विचार कर रहे थे और उसी समय उनको सूचना दी गई कि कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं। विशेष रूप से कुछ स्त्रियां हैं और उनके साथ कुछ पुरूष हैं और वो बहुत परेशान हैं। भगवान् ने कहा-ठीक है। भगवान् की सभा का नाम था सुधर्मा सभा। भगवान् ने कहा उनको भेजा जाए। वो लोग आए। उन्होंने भगवान् को प्रणाम किया। उन स्त्रियों ने भगवान् से कहा आपका उदय हो गया है। हमने सुना है आप सबके रखवाले हैं, आपने कंस का वध किया है। आप बार-बार घोषणा करते हैं कि आप स्त्री शक्ति, मातृ शक्ति के रक्षक हैं। क्या आप जानते हैं कि आज प्राज्ञज्योतिपुर नाम के नगर में एक राजा है नरकासुर। उसने सोलह हजार स्त्रियों को अपनी कैद में कर रखा है। उन सारी स्त्रियों को वो उठा लाया जो किसी की मां हैं, बहन हैं, पत्नी हैं, बेटी हैं और उसने अपने कारावास में उनको बन्दी बना लिया है। उस कारावास में बन्दियों की क्षमता पांच हजार है। उस पांच हजार की क्षमता वाले कारावास में उसने सोलह हजार स्त्रियों को बन्दी करके रखा है। पशु की भांति जीवन बिता रही हैं वो सब। नरकासुर जिस दिन चाहता है कारावास का दरवाजा खोलकर स्त्रियों को उठाकर ले जाता है। उसके वे मंत्री इतने कुटिल, अत्याचारी व कामी हैं कि हमारा कोई रक्षण नहीं है। आज हम आपके पास आए हैं। नरकासुर को कोई जीत नहीं सकता। आज की राजनीति, आज की राज सत्ताएं आपके आसपास हैं। हम कब तक कैद में रहेंगे? यह सुनकर भगवान् के चेहरे पर बल पड़ गए। भगवान् ने कहा-मैं आपकी रक्षा का वचन देता हंू।

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