सोमवार, 18 अप्रैल 2011

भागवत २३०: करें हर मुश्किल परिस्थिति का सामना, कुछ इस तरह...

पं.विजयशंकर मेहता
मायावती रति ने इस प्रकार कहकर परमशक्तिशाली प्रद्युम्न को महामाया नाम की विद्या सिखायी। यह विद्या ऐसी है, जो सब प्रकार की मायाओं का नाश कर देती है। अब प्रद्युम्नजी शम्बरासुर के पास जाकर उस पर बड़े कटु-कटु आक्षेप करने लगे। शम्बरासुर की आंखें क्रोध से लाल हो गईं। वह हाथ में गदा लेकर बाहर निकला। उसने अपनी गदा बड़े जोर से आकाश में घुमाई और इसके बाद प्रद्युम्नजी पर चला दी।
प्रद्युम्न ने एक तीक्ष्ण तलवार उठाई और शम्बरासुर का किरीट एवं कुण्डल से सुशोभित सिर जो लाल-लाल दाढ़ी, मूंछों से बड़ा भयंकर लग रहा था, काटकर धड़ से अलग कर दिया। देवता लोग पुष्पों की वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे और इसके बाद मायावती रति, जो आकाश में चलना जानती थीं, अपने पति प्रद्युम्नजी को आकाश मार्ग से द्वारकापुरी में ले गईं।
पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीकृष्ण अपने माता-पिता देवकी-वसुदेवजी के साथ वहां पधारे। भगवान् श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे, परन्तु वे कुछ न बोले, चुपचाप खड़े रहे। यहां भगवान स्थितप्रज्ञ, मौन जैसे गुणों को सिखा रहे हैं। खोया बेटा लौट आया, दस दिन का था तब गुम हुआ था, अब जवान होकर लौट आया। विधि का विधान है, भगवान कृष्ण सब जानकर भी एक दम चुप खड़े हैं। न ज्यादा आश्चर्य जताया, नहीं खुशी दिखाई।

जैसी दशा द्वारिका के वासियों और अंत:पुर की स्त्रियों की हो रही है, उससे एकदम अलग, बिल्कुल निश्चिंत खड़े हैं भगवान। ज्ञानी पुरुष ऐसा ही होता है, हर परिस्थिति को परमात्मा जनित मानकर अपना लेता है। जब बेटा खो गया तब भी कृष्ण विचलित न थे और अब पुत्र के लौट आने पर भी बिल्कुल शांत हैं। हमें जीवन में इस घटना को गहराई से उतारना चाहिए।
इतने में ही नारदजी वहां आ पहुंचे और उन्होंने प्रद्युम्नजी को शम्बरासुर का हर ले जाना, समुद्र में फेंक देना आदि जितनी भी घटनाएं घटित हुई थीं, वे सब कह सुनाई। नारदजी के द्वारा यह महान आश्चर्यमयी घटना सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण के अन्त:पुर की स्त्रियां चकित हो गईं और बहुत वर्शों तक खोए रहने के बाद लौटे हुए प्रद्युम्नजी का इस प्रकार अभिनंदन करने लगीं, मानो कोई मरकर जी उठा हो।
देवकीजी, वसुदेवजी, भगवान श्रीकृष्ण, बलरामजी, रुक्मिणीजी और स्त्रियां सब उस नवदम्पत्ति को हृदय से लगाकर बहुत ही आनन्दित हुए। जब द्वारकावासी नर-नारियों को यह मालूम हुआ कि खोए हुए प्रद्युम्नजी लौट आए हैं, तब वे परस्पर कहने लगे-अहो, कैसे सौभाग्य की बात है कि यह बालक मानो मरकर फिर लौट आया।इस प्रसंग के माध्यम से हम मन की स्थिति पर एक बार फिर चिंतन कर लें।

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