हिन्दू धर्म पंचाग का वैशाख माह विष्णु भक्ति का पुण्य काल माना गया है। भगवान विष्णु का स्वरूप शांत, सौम्य, सत्वगुणी, आनंदमयी माना गया है। किंतु विष्णु अवतार से जुडें पौराणिक प्रसंग साफ करते हैं कि धर्म रक्षा और धर्म आचरण की सीख देने के लिए लिए युग और काल के मुताबिक भगवान विष्णु अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट हुए।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (16 मई) भी भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पुण्य घड़ी मानी जाती है। यहां हम भगवान नृसिंह की कथा में छुपे उन छुपे संदेशों का बता रहे हैं, जो जीवन में सफलता की चाहत रखने वाले हर इंसान के लिए सटीक उपाय भी साबित हो सकते हैं -
नृसिंह अवतार की कथा है कि धर्म और ईश्वर विरोधी हिरण्यकशिपु द्वारा जब अपने ही विष्णु भक्त पुत्र को ईश्वर भक्ति से रोकने के लिए घोर अत्याचार किए गए, तब धर्म और भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु, नृसिंह यानी आधे सिंह और आधे मानव शरीर के असाधारण व उग्र स्वरुप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का अंत कर दिया।
इस नृसिंह कथा में तीन प्रमुख पात्र हैं - हिरण्यकशिपु, भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह। जिनसे जीवन को सही दिशा में ले जाने और लक्ष्य पाने के 3 गुर सीखे जा सकते हैं -
हिरण्यकशिपु - यह सबल, सक्षम होकर भी दंभ और अहंकार का प्रतीक है। घमण्ड ही सभी बुराईयों की जड़ माना गया है। जिससे कर्म, विचार और व्यवहार भी बदतर हो जाते हैं। संकेत है कि अगर आप जीवन को बेहतर और सफल बनाना है तो अहं को छोड़ सहज, सरल बन बडप्पन के साथ जीना सीखें।
भक्त प्रह्लाद - प्रह्लाद भक्ति, समर्पण, आत्मविश्वास और पुरुषार्थ का प्रतीक। संकेत है कि मकसद को पाने के लिए भक्ति की तरह ही मनोयोग जरूरी है। तमाम मुश्किल हालातों के बाद भी भक्त प्रह्लाद की तरह पूरे आत्मविश्वास और जज्बे के साथ लक्ष्य को पाने के लिए कटिबद्ध रहें। तभी भगवान नृसिंह कृपा की भांति सफलता की ऊंचाईयों और लक्ष्य को पाया जा सकता है।
भगवान नृसिंह - भगवान नृसिंह स्वरूप यही सिखाता है कि तन, मन और कर्म से हिरण्युकशिपु रूपी बुराईयों और कमजोरियों को निकालकर कर भक्त प्रह्लाद की तरह निडर बन जीवन को सफल बनाने के लिए अच्छाई की राह न छोड़े। बल्कि गुणी बन, मजबूत इच्छाशक्ति और भरोसे के साथ आगे बढते रहें। यहीं नहीं नृसिंह के असाधारण स्वरूप की तरह ही असाधारण कोशिशों से नामुमकिन लक्ष्य भी पाने को दृढ़ संकल्पित रहें।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (16 मई) भी भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पुण्य घड़ी मानी जाती है। यहां हम भगवान नृसिंह की कथा में छुपे उन छुपे संदेशों का बता रहे हैं, जो जीवन में सफलता की चाहत रखने वाले हर इंसान के लिए सटीक उपाय भी साबित हो सकते हैं -
नृसिंह अवतार की कथा है कि धर्म और ईश्वर विरोधी हिरण्यकशिपु द्वारा जब अपने ही विष्णु भक्त पुत्र को ईश्वर भक्ति से रोकने के लिए घोर अत्याचार किए गए, तब धर्म और भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु, नृसिंह यानी आधे सिंह और आधे मानव शरीर के असाधारण व उग्र स्वरुप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का अंत कर दिया।
इस नृसिंह कथा में तीन प्रमुख पात्र हैं - हिरण्यकशिपु, भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह। जिनसे जीवन को सही दिशा में ले जाने और लक्ष्य पाने के 3 गुर सीखे जा सकते हैं -
हिरण्यकशिपु - यह सबल, सक्षम होकर भी दंभ और अहंकार का प्रतीक है। घमण्ड ही सभी बुराईयों की जड़ माना गया है। जिससे कर्म, विचार और व्यवहार भी बदतर हो जाते हैं। संकेत है कि अगर आप जीवन को बेहतर और सफल बनाना है तो अहं को छोड़ सहज, सरल बन बडप्पन के साथ जीना सीखें।
भक्त प्रह्लाद - प्रह्लाद भक्ति, समर्पण, आत्मविश्वास और पुरुषार्थ का प्रतीक। संकेत है कि मकसद को पाने के लिए भक्ति की तरह ही मनोयोग जरूरी है। तमाम मुश्किल हालातों के बाद भी भक्त प्रह्लाद की तरह पूरे आत्मविश्वास और जज्बे के साथ लक्ष्य को पाने के लिए कटिबद्ध रहें। तभी भगवान नृसिंह कृपा की भांति सफलता की ऊंचाईयों और लक्ष्य को पाया जा सकता है।
भगवान नृसिंह - भगवान नृसिंह स्वरूप यही सिखाता है कि तन, मन और कर्म से हिरण्युकशिपु रूपी बुराईयों और कमजोरियों को निकालकर कर भक्त प्रह्लाद की तरह निडर बन जीवन को सफल बनाने के लिए अच्छाई की राह न छोड़े। बल्कि गुणी बन, मजबूत इच्छाशक्ति और भरोसे के साथ आगे बढते रहें। यहीं नहीं नृसिंह के असाधारण स्वरूप की तरह ही असाधारण कोशिशों से नामुमकिन लक्ष्य भी पाने को दृढ़ संकल्पित रहें।
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