दुनिया में अगर रोशनी न हो तो इंसान का जीना मुश्किल हो जाए। बगैर उजाले के एक कदम बढ़ाना भी कठिन हो जाता है तो फिर लंबा रास्ता तय करके अपनी मंजिल तक पहुंचना तो लगभग असंभव ही लगता है। बाहर का प्रकाश तो मायने रखता ही है लेकिन अंदर का प्रकाश जिसे विवेक यानी सद्ज्ञान कहते हैं, वह तो और भी ज्यादा कीमती चीज है। बात की गहराई को आसानी से समझने के लिये आइये चलते हैं एक सुन्दर व रोचक घटना की ओर...
एक बहुत बड़ा राजा था। रात का समय था। राजा अपने महल के शयन कक्ष में सोया हुआ है। सोए हुए थोड़ा ही वक्त बीता था कि राजा एकदम से चोंक कर उठ बैठा। राजा को कुछ अजीब सी आवाजें आ रही थीं। वह ध्यान लगाकर सुनने लगा। मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। राजा को लगा कि शायद महल में चोर घुस आए हैं। धीरे-धीरे वह आवाज राजा के शयन कक्ष के ठीक ऊपर से आने लगी। राजा को पक्का यकीन हो गया कि अवश्य ही महल में चोर घुस आए हैं और अब उसके कक्ष में घुसने का प्रयास कर रहें हैं। राजा ने चिल्लाकर पूछा कि ऊपर छत पर कौन है? महल में चोरी करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? लेकिन ऊपर से जो उत्तर मिला उसे सुनकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ऊपर से किसी ने आवाज लगाकर कहा कि- महाराज मैं चोर नहीं हूं, मैं तो किसान हूं मेरा ऊंट खो गया है इसीलिये आपके महल की छत पर खोज रहा हूं। जैसे ही मेरा ऊंट महल की छत पर से कहीं मिल जाएगा में तुरंत चला जाऊंगा। उसका जवाब सुनकर राजा को आश्चर्य तो हुआ ही साथ ही बड़ा गुस्सा भी आया। राजा ने कहा कि तुम पागल तो नहीं हो गए? महल की छतों पर भी कहीं ऊंट ढूंढे जाते है? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है या नहीं?
राजा द्वारा गुस्सा करने और एक साथ कई सवाल पूछे जाने पर भी उस व्यक्ति के चेहरे पर शांति और मुस्कुराहट बनी रही।
वह राजा से बोला कि जब खजाने में अधिक धन-सम्पत्ति होने से तुम्हें सुख मिल सकता है, अपने राज्य की सीमाएं और ज्यादा बढ़ जाने से तुम्हें सुख मिल सकता है, सोने का सिंहासन, सोने का मुकुट और रास-रंग में डूबने से तुम्हे सच्चा सुख मिल सकता है, तो फिर महल की छत पर से ऊंट भी मिल सकता है। जब महलों में सुख मिल सकता है, संगीत, सुरा और सौन्दर्य में सुख मिल सकता है तो महल की छत पर ऊंट क्यों नहीं मिल सकता? उस आदमी की ऐसी गहरी बातों को सुनकर राजा चोंका, उसे लगा कि यह कोई सामान्य आदमी नहीं है अवश्य कोई पहुंचा हुआ संत या देव पुरुष है जो मेरी आंखें खोलने और सचेत करने आया है। राजा दोड़कर छत पर गया लेकिन तब तक वह अज्ञात पुरुष जा चुका था। राजा ने उसकी बातों का अर्थ बड़े-बड़े विद्वानों, संतों और पंडितों से पूछा और अंत में उसे यही समझ में आया कि किसी भी सांसारिक सुख-भोग में कभी भी स्थाई और वास्तविक सुख-शांति नहीं मिल सकती।
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एक बहुत बड़ा राजा था। रात का समय था। राजा अपने महल के शयन कक्ष में सोया हुआ है। सोए हुए थोड़ा ही वक्त बीता था कि राजा एकदम से चोंक कर उठ बैठा। राजा को कुछ अजीब सी आवाजें आ रही थीं। वह ध्यान लगाकर सुनने लगा। मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। राजा को लगा कि शायद महल में चोर घुस आए हैं। धीरे-धीरे वह आवाज राजा के शयन कक्ष के ठीक ऊपर से आने लगी। राजा को पक्का यकीन हो गया कि अवश्य ही महल में चोर घुस आए हैं और अब उसके कक्ष में घुसने का प्रयास कर रहें हैं। राजा ने चिल्लाकर पूछा कि ऊपर छत पर कौन है? महल में चोरी करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? लेकिन ऊपर से जो उत्तर मिला उसे सुनकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ऊपर से किसी ने आवाज लगाकर कहा कि- महाराज मैं चोर नहीं हूं, मैं तो किसान हूं मेरा ऊंट खो गया है इसीलिये आपके महल की छत पर खोज रहा हूं। जैसे ही मेरा ऊंट महल की छत पर से कहीं मिल जाएगा में तुरंत चला जाऊंगा। उसका जवाब सुनकर राजा को आश्चर्य तो हुआ ही साथ ही बड़ा गुस्सा भी आया। राजा ने कहा कि तुम पागल तो नहीं हो गए? महल की छतों पर भी कहीं ऊंट ढूंढे जाते है? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है या नहीं?
राजा द्वारा गुस्सा करने और एक साथ कई सवाल पूछे जाने पर भी उस व्यक्ति के चेहरे पर शांति और मुस्कुराहट बनी रही।
वह राजा से बोला कि जब खजाने में अधिक धन-सम्पत्ति होने से तुम्हें सुख मिल सकता है, अपने राज्य की सीमाएं और ज्यादा बढ़ जाने से तुम्हें सुख मिल सकता है, सोने का सिंहासन, सोने का मुकुट और रास-रंग में डूबने से तुम्हे सच्चा सुख मिल सकता है, तो फिर महल की छत पर से ऊंट भी मिल सकता है। जब महलों में सुख मिल सकता है, संगीत, सुरा और सौन्दर्य में सुख मिल सकता है तो महल की छत पर ऊंट क्यों नहीं मिल सकता? उस आदमी की ऐसी गहरी बातों को सुनकर राजा चोंका, उसे लगा कि यह कोई सामान्य आदमी नहीं है अवश्य कोई पहुंचा हुआ संत या देव पुरुष है जो मेरी आंखें खोलने और सचेत करने आया है। राजा दोड़कर छत पर गया लेकिन तब तक वह अज्ञात पुरुष जा चुका था। राजा ने उसकी बातों का अर्थ बड़े-बड़े विद्वानों, संतों और पंडितों से पूछा और अंत में उसे यही समझ में आया कि किसी भी सांसारिक सुख-भोग में कभी भी स्थाई और वास्तविक सुख-शांति नहीं मिल सकती।
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