मंगलवार, 24 मई 2011

भागवत २५९

कैसी थी कृष्ण की दिनचर्या?
पं.विजयशंकर मेहता
वे विधिपूर्वक निर्मल और पवित्र जल में स्नान करते। फिर शुद्ध धोती पहनकर, दुपट्टा ओढ़कर यथाविधि नित्यकर्म संध्या-वन्दन आदि करते।
इसके बाद हवन करते और मौन होकर गायत्री का जप करते। क्यों न हो, वे सत्पुरुषों के पात्र आदर्शं जो हैं। इसके बाद सूर्योदय होने के समय सूर्योपस्थान करते और अपने कालास्वरूप देवता, ऋषि तथा पितरों का तर्पण करते। फिल कुल के बड़े-बूढ़ों और ब्राम्हणों की विधि पूर्वक पूजा करते। इसके बाद परम मनस्वी श्रीकृष्ण दुधार, पहले-पहल ब्याही हुई, बछड़ों वाली, सीधी-शांत गौओं का दान करते।
भगवान् के योग और ध्यान पर प्रकाश डाला गया है। नियमित प्राणायाम करते थे भगवान्। शक्ति का संचरण कैसे करना, प्राण से अपने जीवन को कैसे ऊंचा उठाना, बकायदा पूरी क्रिया करने के बाद भगवान् मार्निंग वॉक पर जाते थे। लोग उनसे पूछते कि आपको घूमने की जरुरत क्या है! भगवान् कहते हैं कि द्वारका की व्यवस्था देखने हेतु घूमना आवष्यक है। भगवान् लौटकर आते, उसके बाद भगवान् का स्नान, ध्यान, पूजन के बाद भगवान् का दान का सत्र शुरू होता। प्रतिदिन दान का एक सत्र हुआ करता था उस सत्र में वो सबको वांछित दान दिया करते। उसी समय लोग अपनी छोटी-मोटी समस्याएं भगवान् को बता देते फिर भगवान् जलपान करने आते थे।यह भगवान का इन्द्रिय यज्ञ था। कर्म सम्पादन में सुनना, छूना, देखना, रस लेना, सूंघना, पांचों इन्द्रियों (कर्ण, त्वचा, आंखें, रसना और नासिका) की संयम रूपी अग्नि में आहुति देते हैं अर्थात् इन्द्रिय-संयम वर्तते हैं। यह वर्तना राग-द्वेश से रहित इन्द्रियों द्वारा प्रतिपादित भोग भोगते हुए जीवन यज्ञ पूरा करते हैं। ऐसे जीवन में कर्म गलत हो ही नहीं सकते।
भगवान् श्रीकृष्ण ने इन्द्रिय यज्ञ की संज्ञा इन्द्रियों के संयमित जीवन को दी है। महाभारत में अर्जुन को ब्राम्हण और उसकी पत्नी के साथ संवाद के रूप में इस तत्व की गूढ़ व्याख्या श्रीकृष्ण ने की है। संक्षेप में मन इन्द्रियों के माध्यम से विषयों को भोगता है, कर्म करता है। कर्म के विषय में वर्णन किया गया है।संसार में जो ग्रहण करने योग्य दीक्षा और व्रत आदि हैं तथा आंखों से दिखाई देने वाले स्थूल कर्म हैं उन्हें ही कर्म माना जाता है। कर्मठ लोग ऐसे ही कर्म को कर्म के नाम से पुकारते हैं और जो अकर्मठ जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है वे लोग कर्म के द्वारा मोह का ही नियंत्रण करते हैं।
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