शनिवार, 21 मई 2011

किसी के विचारों को बदलना है तो उन्हें प्रेम करना सिखाएं...

पं. विजयशंकर मेहता
दूसरों को अपने साथ जोड़ा जा सकता है। बल्कि जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया भी जा सकता है, लेकिन जब उनके विचारों को परिवर्तन करने का अवसर आता है तो या तो मतभेद हो जाते हैं या आप इसमें असफल हो जाएंगे। यह मामला केवल बाहरी दुनिया का नहीं है।
परिवार में यदि माता-पिता अपने कुल की परंपरानुसार अच्छे विचारों को बच्चों में भी उतारना चाहते हैं तो यही परेशानी आती है। बच्चे आपका कहना मान लेंगे, आपके अनुसार दिनचर्या भी कर लेंगे, लेकिन विचार बदलने को तैयार नहीं होते।
किसी का दृष्टिकोण बदलना है तो प्रेम को जीवन में उतारना होगा। दबाव में आप किसी की जीवनशैली बदल सकते हैं, चिंतनशैली नहीं बदल सकते। इसके लिए प्रेम की ही जरूरत पड़ेगी। अपने प्रेम को इतना विस्तार दिया जाए, बढ़ाया जाए कि फिर उसमें अपनेआप अहंकार गलने लगता है।
जैसे ही प्रेम में से अहंकार गया, भक्ति का प्रवेश शुरू हो जाता है। प्रेम जैस-जैसे ऊंचा उठेगा, भक्ति का रूप लेता जाएगा। इसलिए परिवारों में बच्चों को भक्ति करना सिखाएं। आप उन्हें जो भी बनाना चाहें जरूर बनाएं, पर भक्त वे बनें ऐसा अवश्य करें। भक्त देना जानता है, लेना नहीं जानता। जैसे प्रेम मांगने लग जाए तो वासना हो जाती है।
इसी तरह भक्ति यदि मांगने लग जाए तो मात्र कर्मकाण्ड बन जाएगी। भक्ति जितनी जागेगी, परमात्मा पर भरोसा उतना बढ़ेगा। इसीलिए भक्तों के पास जाकर लोग आसानी से अपने विचार बदल लेते हैं और सद्विचार यदि सुपात्र में उतर जाएं तो ऐसे लोग परिवार, समाज और राष्ट्र को हित ही पहुंचाएंगे। भक्ति जगाने के लिए एक सरल तरीका है जरा मुस्कराइए...
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