पं. विजयशंकर मेहता
भगवान को पाने के लिए भक्ति करना पड़ती है। यह एक सामान्य विचार है। अधिकांश लोगों का मकसद भी यही होता है कि भगवान मिल जाए। संत-महात्माओं से कई लोग यही प्रश्र पूछते हैं क्या आपने कभी भगवान को देखा है?
कई लोग तो अपनी जिंदगी ऐसे व्यक्तियों की तलाश में गुजार देते हैं जिन्हें कभी भगवान मिला हो। दरअसल भगवान को पाना और भक्ति करना दो अलग-अलग बातें हैं। यदि किसी की दृष्टि चली जाए और वह अंधा हो जाए तब उसे प्रकाश की जगह आंख खोजना चाहिए। भक्ति एक तरह की आंख है जिससे भगवान देखा जा सकता है।
भक्ति करने का अर्थ है अपनी आंख को खोजना। जो अंधे लोग सीधे प्रकाश खोजने के चक्कर में रहेंगे उन्हें जीवनभर अंधकार ही हाथ लगेगा। पहले आंख खोजी जाए। देखा गया है कि जिन्होंने सीधे भगवान को खोजने की कोशिश की उन्होंने जीवनभर कर्मकाण्ड ही किया और इसमें निराशा हाथ लग जाती है। केवल कर्मकाण्ड का अर्थ है एक चौराहे पर ही चक्कर काटना।
इसीलिए केवल पूजा करने वाले लोग उदास और खिन्न भी पाए जाते हैं। अब पूजा को भक्ति में बदलना होगा। भक्ति जीवन में आते ही भीतर से रूपांतरण होना आरंभ हो जाता है। फिर भगवान दिखना और मिलना सुनिश्चित है। तो महत्वपूर्ण यह है कि जीवन में भक्ति को लाया जाए। कर्मकाण्ड इसका आरंभ हो सकता है। कर्मकाण्ड करते हुए अपने भीतर के प्रेम को धीरे-धीरे बढ़ाएं।
जितना प्रेम बढ़ेगा, कर्मकाण्ड के भक्ति में बदलने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाएगी। क्योंकि प्रेम की अधिकता में अहंकार को गलना पड़ता है। क्रिया निरहंकारी होते ही भक्ति बन जाती है और भक्ति की आंख से परमात्मा को दिखना ही पड़ता है।
भगवान को पाने के लिए भक्ति करना पड़ती है। यह एक सामान्य विचार है। अधिकांश लोगों का मकसद भी यही होता है कि भगवान मिल जाए। संत-महात्माओं से कई लोग यही प्रश्र पूछते हैं क्या आपने कभी भगवान को देखा है?
कई लोग तो अपनी जिंदगी ऐसे व्यक्तियों की तलाश में गुजार देते हैं जिन्हें कभी भगवान मिला हो। दरअसल भगवान को पाना और भक्ति करना दो अलग-अलग बातें हैं। यदि किसी की दृष्टि चली जाए और वह अंधा हो जाए तब उसे प्रकाश की जगह आंख खोजना चाहिए। भक्ति एक तरह की आंख है जिससे भगवान देखा जा सकता है।
भक्ति करने का अर्थ है अपनी आंख को खोजना। जो अंधे लोग सीधे प्रकाश खोजने के चक्कर में रहेंगे उन्हें जीवनभर अंधकार ही हाथ लगेगा। पहले आंख खोजी जाए। देखा गया है कि जिन्होंने सीधे भगवान को खोजने की कोशिश की उन्होंने जीवनभर कर्मकाण्ड ही किया और इसमें निराशा हाथ लग जाती है। केवल कर्मकाण्ड का अर्थ है एक चौराहे पर ही चक्कर काटना।
इसीलिए केवल पूजा करने वाले लोग उदास और खिन्न भी पाए जाते हैं। अब पूजा को भक्ति में बदलना होगा। भक्ति जीवन में आते ही भीतर से रूपांतरण होना आरंभ हो जाता है। फिर भगवान दिखना और मिलना सुनिश्चित है। तो महत्वपूर्ण यह है कि जीवन में भक्ति को लाया जाए। कर्मकाण्ड इसका आरंभ हो सकता है। कर्मकाण्ड करते हुए अपने भीतर के प्रेम को धीरे-धीरे बढ़ाएं।
जितना प्रेम बढ़ेगा, कर्मकाण्ड के भक्ति में बदलने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाएगी। क्योंकि प्रेम की अधिकता में अहंकार को गलना पड़ता है। क्रिया निरहंकारी होते ही भक्ति बन जाती है और भक्ति की आंख से परमात्मा को दिखना ही पड़ता है।
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