शनिवार, 7 मई 2011

बिन बुलाई मेहमान होती हैं परेशानियां, इस तरह निपटें इनसे

पं. विजयशंकर मेहता
परेशानियां सूचना देकर नहीं आती और न ही उनके पैर होते हैं, न ही उनको आने के लिए कोई वाहन पकडऩा पड़ता है। जीवन में वे कब प्रकट हो जाएं, पता नहीं चलता। जब बहुत सारी परेशानियां एकसाथ आ जाएं तो उसे संकट कहते हैं।
बाहर संकटों से लड़ते-लड़ते मनुष्य के भीतर पीड़ा का जन्म हो जाता है। हनुमानजी अपने भक्तों की इस स्थिति से परिचित हैं। इसलिए हनुमानचालीसा की ३६वीं चौपाई में लिखा है-
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जो लोग हनुमानजी का स्मरण करते हैं उनके संकट दूर होते हैं, पीड़ा मिट जाती है। तुलसीदासजी ने संकट कटने और पीड़ा मिटने के साथ सुमिरन शब्द लिखा है। इसके पीछे अनोखा दर्शन है। ध्यान और सुमिरन के अंतर को समझा जाए। अधिकांश लोगों को ध्यान में सबसे बड़ी बाधा मन की रहती है। मन ध्यान को जमने नहीं देता।
संसार में एक बड़ा संकट है मन का अनियंत्रित होना तथा पीड़ा है उसका अत्यधिक गतिशील रहना। आरंभ करने के लिए ध्यान से सुमिरन आसान है। सुमिरन करते हुए हम मन की गतिविधि को देख सकते हैं। जब यह प्रक्रिया सध जाए, तो ध्यान लगाने में आसानी होगी। संकट और पीड़ा के समय व्यक्ति तुरंत निराकरण चाहता है। फटाफट और हड़बड़ाहट का अंतर समझते हुए समस्या का त्वरित हल निकालना भी श्रेष्ठ प्रबंधन का प्रमाण है।
कहा जाता है कि वायु की गति तेज होती है, उससे तेज ध्वनि की गति, उससे तेज प्रकाश की गति और इन सबसे तेज मन की गति होती है, किन्तु मन से भी अधिक तेज गति होती है प्रभु की कृपा की। और इस कृपा को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम है सुमिरन। हमारे भीतर सुमिरन चल रहा है इसका प्रमाण देखना हो तो जरा मुस्कराइए...

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