पं. विजयशंकर मेहता
संसारभर के काम करते हुए एक इरादा और रखें कि हम ईश्वर को प्यारे लगने वाले काम भी करते रहें। कबीर कह गए हैं- 'तेरा जन एकाध है कोई' करोड़ों-करोड़ों लोग हैं दुनिया में। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च हैं। कई लोग पूजा-अर्चना कर रहे हैं, लेकिन परमात्मा यदि सवाल पूछे तो कुछ ही लोगों के लिए यह जवाब आएगा कि 'तेरा जन एकाध है कोई'। उस मालिक का कोई एक हो पाएगा और वह वो होगा जो उस चयन के दायित्व को पूरा कर सकेगा, जिसके लिए मालिक ने उसे चुना है। दुनिया का मार्ग बड़ा कांटों से भरा हुआ है।
बहुत प्रलोभन है मार्ग में। जगह-जगह रुकने की संभावना है। एक-एक कदम उठाना श्रम मांगता है। भक्ति ऐसे ही दुर्गम मार्ग पर चलकर की जा सकती है। जो भक्ति सही स्वरूप में कर जाएगा वह निजी और सांसारिक दोनों जीवन में सफल हो जाएगा। भीड़ में सिर्फ एक चेहरा होना तो बहुत आसान है, लेकिन भीड़ का सामना करना बहुत मुश्किल काम है।
भक्त जब सेवा करता है तो उसकी सेवा के अर्थ बदल जाते हैं। जरूरी नहीं है कि सेवा हमेशा धर्म बन जाए। धार्मिक व्यक्ति में सेवा हो सकती है, लेकिन सेवक धार्मिक होगा इसमें थोड़ा अंतर है। जो लोग सेवा करने निकले हैं उनकी जिंदगी में भक्ति आ जाएगी यह बिल्कुल जरूरी नहीं है। हां, लेकिन जिस व्यक्ति के चित्त भक्तिमय है, उसकी जिंदगी में सेवा अवश्य हो सकती है।
जिस व्यक्ति का चित्त शांत हो गया, आनंदित हो गया, भक्ति से परिपूर्ण हो गया, उसकी सारी जिंदगी सेवा बन जाती है। लेकिन अगर कोई यह सोचे कि मैं सेवा करने निकला हूं तो मेरा चित्त आनंदित हो जाएगा और भक्ति से भर जाएगा तो ऐसा जरूरी नहीं है, बल्कि ऐसी सेवा अहंकार को पोषित कर देगी।
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संसारभर के काम करते हुए एक इरादा और रखें कि हम ईश्वर को प्यारे लगने वाले काम भी करते रहें। कबीर कह गए हैं- 'तेरा जन एकाध है कोई' करोड़ों-करोड़ों लोग हैं दुनिया में। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च हैं। कई लोग पूजा-अर्चना कर रहे हैं, लेकिन परमात्मा यदि सवाल पूछे तो कुछ ही लोगों के लिए यह जवाब आएगा कि 'तेरा जन एकाध है कोई'। उस मालिक का कोई एक हो पाएगा और वह वो होगा जो उस चयन के दायित्व को पूरा कर सकेगा, जिसके लिए मालिक ने उसे चुना है। दुनिया का मार्ग बड़ा कांटों से भरा हुआ है।
बहुत प्रलोभन है मार्ग में। जगह-जगह रुकने की संभावना है। एक-एक कदम उठाना श्रम मांगता है। भक्ति ऐसे ही दुर्गम मार्ग पर चलकर की जा सकती है। जो भक्ति सही स्वरूप में कर जाएगा वह निजी और सांसारिक दोनों जीवन में सफल हो जाएगा। भीड़ में सिर्फ एक चेहरा होना तो बहुत आसान है, लेकिन भीड़ का सामना करना बहुत मुश्किल काम है।
भक्त जब सेवा करता है तो उसकी सेवा के अर्थ बदल जाते हैं। जरूरी नहीं है कि सेवा हमेशा धर्म बन जाए। धार्मिक व्यक्ति में सेवा हो सकती है, लेकिन सेवक धार्मिक होगा इसमें थोड़ा अंतर है। जो लोग सेवा करने निकले हैं उनकी जिंदगी में भक्ति आ जाएगी यह बिल्कुल जरूरी नहीं है। हां, लेकिन जिस व्यक्ति के चित्त भक्तिमय है, उसकी जिंदगी में सेवा अवश्य हो सकती है।
जिस व्यक्ति का चित्त शांत हो गया, आनंदित हो गया, भक्ति से परिपूर्ण हो गया, उसकी सारी जिंदगी सेवा बन जाती है। लेकिन अगर कोई यह सोचे कि मैं सेवा करने निकला हूं तो मेरा चित्त आनंदित हो जाएगा और भक्ति से भर जाएगा तो ऐसा जरूरी नहीं है, बल्कि ऐसी सेवा अहंकार को पोषित कर देगी।
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