रविवार, 26 जून 2011

हथिनी का प्यार

रामू धोबी के पास एक बड़ा ही सुंदर गधा था, जिसका नाम ही उसने सुंदर रख दिया था। दिभर वह उससे खूब काम लेता था, शाम को खुला छोड़ देता ताकि वह जंगल में तथा खेतों में जाकर हरी-हरी घास खाकर अपना पेट भर सके।
ईश्वर ने कुछ ऐसे भी जानवर बनाए हैं, जो मालिक के सबसे अधिक वफादार होते हैं। मालिक का दिन-रात काम करते हैं परंतु उससे खाना तक नहीं मांगते, उनमें सबसे प्रमुख इस गधे का ही नाम आता है। सुंदर गधा शाम के समय अपनी आज़ादी से खाता-पीता, घूमता। वह बेचारा इस क्षेत्र में अकेला ही था, कोई संगी-साथी भी नहीं था, जिससे बात कर लेता। कभी-कभी उसके मन से आवाज़ उठती- ‘काश! अपना भी कोई दोस्त होता।’
लेकिन ऐसा भाग्य हर किसी का नहीं होता कि उसकी दिल की भावनाएं पूरी हो सकें, फिर भी आशा के सहारे प्राणी जीवित रहते हैं। यही हाल इस गधे का था। उसे आशा थी कि कभी न कभी तो उसका कोई दोस्त आएगा, जिसके साथ बैठकर वो अपने मन की बातें कर सकेगा।

अचानक एक दिन जंगल सोए गीदड़ निकलकर इन खेतों की ओर चला आया। उसने सामने ही एक गधे को घास चरते देखा, तो में बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि वह भी अकेला घूमते-घूमते तंग आ गया था। उसे भी एक दोस्त की तलाश थी। गधे के बारे में उसे यह तो पता था कि इससे सच्च दोस्त और कोई नहीं। यह तो एक ऐसा जानवर है, जो असली दरवेश है, इससे मित्रता करके कोई नुकसान होने वाला नहीं है।
गीदड़ ने आगे बढ़कर उस गधे से कहा, ‘हैलो, बड़े भाई..’ गधे ने उसे बड़े ध्यान से देखा और सोच में पड़ गया कि मुझ जैसे बदनसीब को प्रणाम करने वाला कौन हो सकता है। ‘बड़े भइया, क्या सोच रहे हो, क्या हमारे साथ दोस्ती नहीं करोगे?’
‘क्यों नहीं..क्यों नहीं..मैं तो आज बहुत ही खुश हूं कि इस जगह में मुझे राम-राम कहने वाला तो कोई मिला, नहीं अपना तो हाल यह था कि इस घास और खेती से ही हाय-हैलो कर लेते थे।’ गधे की बात सुनकर गीदड़ को हंसी आ गई, उसे हंसता देखकर गधा भी हंसने लगा..बस यहीं से उनकी दोस्ती का आगाज़ हो गया था। दूसरे दिन दोनों दोस्त फिर वहीं मिले तो उस समय गधा घास खा रहा था, गीदड़ ने अपने मित्र को कहा, ‘दोस्त, यह क्या तुम हर रोज़ घास ही खाते रहते हो?’
‘भाई, अपने को पेट ही तो भरना है। यह घास ही तो अपना साथी है।’
‘तुम मेरे दोस्त हो, आज मैं तुम्हें बढ़िया खाना खिलाऊंगा। देखो, कुछ ही दूर एक खेत में बढ़िया खरबूजे हैं, उन खरबूज़ों को खाकर हम दोनों मज़े लेंगे।’
‘खरबूजे..वाह।’ गधे के मुंह में पानी भर आया, कभी एक बार उसके मालिक ने उसे किसी त्योहार पर एक खरबूजा खिलाया था। कितना मज़ेदार था, एकदम स्वादिष्ट। गधा उसी समय अपने दोस्त गीदड़ के साथ खरबूजों के खेत में चला गया, दोनों मित्रों ने बड़े आनंद से खरबूजे खाए। साथ-साथ बातें भी करते रहे।
गधा कुछ ज्यादा ही खुश था, वैसे भी प्राणी की यह आदत है कि वह खुश होकर खूब नाचता है, झूमता है। कभी-कभी गाने भी लग जाता है, यही हाल उस गधे का हुआ। जब उसका पेट अधिक भर गया तो वह भी नाचता हुआ गाना गाने लगा। गीदड़ ने गधे की ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ें सुनीं तो उससे बोला, ‘दोस्त, इस तरह शोर मत करो वरना खेत का मालिक आ जाएगा।’ ‘मैं शोर नहीं कर रहा हूं, राग गा रहा हूं। तुम जंगल में रहने वाले राग की खासियत को क्या जानों, गीत तो जीवन का हिस्सा है। जब भी प्राणी का पेट भर जाता है, तो वह नाचता है, गाता है, झूमता है। आज मैं भी बहुत खुश हूं, मेरा मन करता है कि मैं गाता चला जाऊं।’ ‘बस..बस..बड़े भाई, अब इस गाने को यहीं बंद करो, योंकि तुम बेसुरे गीत गा रहे हो। ऐसे गीत सुनकर किसान की नींद खुल जाएगी वह आते ही हम दोनों का बाजा बजा देगा।’
‘गीदड़ तुम वास्तव में बुजदिल हो।’
‘मैं बुजदिल नहीं, मौके को देखकर चलता हूं, किसी ज्ञानी ने कहा है बेवत की रागिनी अच्छी नहीं होती।’
‘अरे भाई, तुम सात स्वर, उनचास ताल, नवरस, छत्तीस राग, चालीस भाव आदि, यह सारे भेद प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। यह संगीत ही संसार में सबसे उत्तम है।’
‘देखो भाई, यदि तुम अपनी ज़िद पर अड़े रहोगे, तो मैं खेत से बाहर किनारे पर खड़ा इसे सुनता रहूंगा। इस गाने के लिए मैं अपने जान को खतरे में नहीं डाल सकता।’ यह कहते हुए गीदड़ उस खेत से बाहर जाकर खड़ा हो गया, परंतु गधा तो अपनी धुन में मस्त था। खरबूजे खाकर उसका पेट भर चुका था तो गाने गाता फिर रहा था। गधे का गाना सुनकर किससी आंखें न खुलें?
खेत के मालिक की आंख भी खुल गई। उसने देखा गधा उसके खेत में घुस आया है और पके हुए खरबूजों को खाकर खेत को भी उजाड़ दिया है। उसने झट से अपनी लाठी उठाई और उस गधे पर लट्ठ बरसाने शुरू किए..गधा बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर भागा, उसके शरीर के कई भागों से खून निकल रहा था। रास्ते में खड़े गीदड़ ने उससे कहा, ‘यों दोस्त, आया गाने का मज़ा..’
‘गाने की बात छोड़ा यार मेरे तो शरीर के सारे तार टूट गए हैं, स्वर मेरे खून में डूब गए हैं।’
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