सोमवार, 27 जून 2011

हर काम में सफलता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है यह बात

दृढ़ निश्चय कार्य की सफलता के लिए जरूरी है। इस निश्चय में निश्चलता और जोड़ देना चाहिए। यानी हम कार्य को पूरा करने के लिए जितने अनुशासित रहेंगे उतने ही विनम्र भी होंगे। निश्चय मतलब अपने ही प्रति अनुशासन हेतु कठोर होना और निश्चल यानी दूसरों के मामले में कुटिल भावना न रखना।
अपने ही द्वारा बनाए गए नियमों का अपने ही द्वारा पालन करना कोई आसान काम नहीं है। बड़े-बड़े इसमें चूक जाते हैं। अपने अनुशासन का पालन करने के लिए हमें सतत् स्वयं के गुण-दोषों की पहचान और आंकलन करना होगी। इसके लिए एक सरल तरीका है सत्संग करते रहना।
सत्संग में या तो हम किसी महापुरुष को सुन रहे होते हैं, देख रहे होते हैं और उन्हीं के द्वारा पहले बीत गए कुछ अवतारों, फकीरों की जीवनी सुन रहे होते हैं। जीवन का जो भी श्रेष्ठ होता है वह सत्संग में उस समय उतर रहा होता है। लिहाजा कोई चूक न हो जाए इसलिए आत्म अनुशासन काम आता है।
अपने व्यक्तित्व में दृढ़ता लाने के लिए सत्संग के माध्यम से महान हस्तियों की जीवन शैली को ऐसे सुना जाए जैसे पहले उन लोगों ने जीवन जिया है। चाहे राम हों या कृष्ण, जीसस हों या महावीर, बुद्ध हों। इन सबका जीवन बिल्कुल ऐसा था जैसे बांसुरी। बंसी अपनी आकृति और कृति से एक बड़ा सुंदर संदेश देती है। उसके अपने पेट में कुछ नहीं होता।
जैसी फूंक मारी गई और उंगलियां चलाई गई वह मधुर संगीत संसार में फेंक देती है। इसी प्रकार हम सब परमात्मा की अंधरों की बंसी बन जाएं। स्वर हमारा होगा, क्रिया उसकी होगी। यही आत्म अनुशासन का एक स्वरूप है। इस अनुभूति में हम दृढ़ भी होंगे और निश्चल भी।www.bhaskar.com

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