सोमवार, 20 जून 2011

ऐसी थी श्रीराम की बारात....

राजा ने भरतजी को बुला लिया और कहा कि जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ, जल्दी रामजी की बारात में चलो। यह सुनते ही दोनों भाई खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। भरतजी ने घोड़े तैयार करने का आदेश दिया। सब घोड़े बहुत ही सुंदर और चंचल के हैं। वे धरती पर ऐसे पैर रखते हैं जैसे जलते हुए लोहे पर रखते हों। उन सभी की चाल हवा से भी तेज है। उन सभी घोड़ों पर भरतजी के समान अवस्था वाले सभी राजकुमार सवार हुए। वे सभी सुंदर है और सब आभुषण धारण किए हुए हैं। सभी के कमर पर भारी तरकश बंधे हुए हैं। सारथियों ने ध्वजा, पताका, मणि और आभुषणों को लगाकर रथों को बहुत विलक्षण बना दिया है। ,
रथों पर चढ़-चढ़कर बारात नगर के बाहर जुटने लगी। जो जिस काम के लिए जाता है, सभी के साथ कोई ना कोई शुभ शकुन हो रहा है। ब्राह्मण, वैश्य, मागध, सूत, भाट, और गुण गाने वाले सभी जो जिस योग्य थे, वैसी ही सवारी पर चढ़कर चले। राजा दशरथ भी उनके लिए सजाए गए रथ पर चढ़ गए। उन्होंने पहले वशिष्ठजी को पहले रथ पर चढ़ाया और फिर खुद शिव, गौरी व गणेश का ध्यान करके रथ पर चढ़े। बारात देखकर देवता प्रसन्न हुए और फूलों की वर्षा करने लगे। जब बारात जनकपुरी के करीब पहुंची ढोल-नगाड़ों की आवाज सुनकर राजा जनक हाथी रथ व पैदल यात्री लेकर बारात लेने चले।

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