रविवार, 17 जुलाई 2011

भागवत 314

इस कहानी में छुपे हैं जिंदगी के सारे राज क्योंकि....
सुभद्रा और अर्जुन का विवाह हो गया। भगवान ने फिर इस सुंदर प्रसंग के जरिए हमें जीवन का सार सिखाया। कृष्ण के जीवन प्रसंग महज सुनने के लिए नहीं हैं, उन्हें जीवन में उतारिए। उसे गौर से देखिए, समझिए उसमें हमारे जीवन के लिए क्या संदेश, संकेत छिपे हैं। उन्हें पकडऩे का प्रयास कीजिए। अवतारों का उद्देश्य भी यही होता है। वे केवल अधर्म या धर्म की लड़ाई के लिए धरती पर नहीं आते।
उनके आने के बड़े उद्देश्य होते हैं। सबसे बड़ा उद्देश्य मानवों को प्रेरणा देना होता है। राम हो या कृष्ण सभी अवतारों ने जीवन में बहुत संघर्ष किया। कृष्ण का अवतार मानव में देवत्व जगाने का प्रयास है। कृष्ण ने पूर्ण अवतार होने के बाद भी साधारण मनुष्यों की तरह ही सारे कर्म किए लेकिन उसके पीछे उद्देश्य था मानवों में देवत्व कैसे जगाया जाए, हम कैसे अपने कर्मों से महान बन सकते हैं, किस तरह अपनी इन्द्रियों को संचालित किया जाए कि सारे कार्य हमारे अनुकूल हों। सुभद्रा-अर्जुन प्रसंग से कृष्ण ने कई संकेत किए हैं।
यह संकेत वे हैं जो आज हमारे बड़े उपयोग के हैं। इन्हीं को साधकर भी हम अपने लिए जिन्दगी की राहें आसान कर सकते हैं। समझिए कृष्ण ने अपने बड़े भाई की इच्छा के विरूद्ध बहन का विवाह अर्जुन से करवा दिया। आखिर क्यों? इसके कारणों में झाकेंगे तो बड़ी सुन्दर नीतियां मिलेंगी। मानवीय रिश्तों की ऐसी मिसाल जो हमारे जीवन में हमेशा ही उपयोगी होगी। बलराम सुभद्रा के लिए दुर्योधन को पसंद कर चुके थे। लगभग निर्णय ही ले लिया था सुभद्रा की इच्छा के विरूद्ध। हमारे देश की रूढिय़ों में यह कुप्रथा सदियों से है, अपनी बेटियों का विवाह आज भी कई लोग बिना उसकी इच्छा के अपने अनुसार तय कर देते हैं।
बेटी हमारी जिम्मेदारी है लेकिन ध्यान रखें कि वह भावी मां और संस्कृति को विस्तार करने वाली भी है। उसे अपनी मर्जी से किसी को न सौपें। उसका जीवन साथी कैसा हो, यह तय करने का अधिकार भी उसे दें। उससे पूछें। बलराम ने यह नहीं किया, सीधा निर्णय ही सुना दिया। कई लोग आज भी यही कर रहे हैं। बलराम ने दुर्योधन में केवल दो बातें ही देखी, एक उसका योद्धा होना और दूसरा उसका राजपुत्र होना।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें