गुरुवार, 7 जुलाई 2011

ऐसे हुए राजा को एक साथ साठ हजार पुत्र....

युधिष्ठिर ने लोमेश मुनि से पूछा कि समुद्र भरने में भागीरथ के पूर्व पुरुष किस प्रकार कारण हुए, भागीरथ ने उसे किस प्रकार भरा यह प्रसंग में आपसे सुनना चाहता हूं। लोमेश मुनि ने कहा इक्ष्वाकुवंश में सगर नाम के एक राजा थे। वे बड़े ही सुंदर थे। उनकी विदर्भी और शैब्या नाम की दो पत्निया थी। उन्हें साथ लेकर वे कै लास पर्वत पर गए। तपस्या करने लगे। कुछ कला तपस्या करने पर उन्हें भगवान शंकर के दर्शन हुए। महाराज सागर ने दोनों रानियों के सहित भगवान के चरणों में प्रणाम किया और पुत्र के लिए प्रार्थना की। तब शिवजी ने राजा व रानियों को कहा तुमने जिस मुहूर्त में वर मांगा है। उसके प्रभाव से तुम्हारी एक रानी को तो बहुत शूरवीर साठ हजार पुत्र होंगे। वे सब एक साथ ही नष्ट हो जाएंगे।
दूसरी रानी से वंश को चलाने वाला केवल एक ही शूरवीर पुत्र होगा। ऐसा कहकर भगवान शंकर अंर्तध्यान हो गए। शिवजी के आर्शीवाद से दोनों ही रानियों ने शीघ्र ही गर्भ धारण किया। समय आने पर वैदर्भी के गर्भ से एक तुंबी उत्पन्न हुई। शैव्या के के गर्भ से एक देवरूपी बालक ने जन्म लिया।राजा ने उस तुंबी को फेंकवाने का विचार किया तो आकाशवाणी हुई। तुम इस तरह अपने पुत्रों का त्याग नहीं कर सकते हो। एक तुंबी में जितने बीज हैं सभी निकालकर उन्हें कुछ-कुछ गरम किए हुए घी से भरे घड़ों में रख दो। इससे तुम्हे साठ हजार पुत्र होंगे। उसने ऐसा ही किया और हर एक घड़े की रक्षा के लिए एक दासी नियुक्त कर दी। समय बीतने के बाद उन घड़ों से साठ हजार पुत्र हुए। वे सभी क्रुर कर्म करने वाले थे। सगर ने अश्वमेघ यज्ञ की दीक्षा ली।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें