शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

डंडे मारे बैल को...निशान पड़े संत की पीठ पर!

धर्म में एक बड़ी अच्छी बात कही गई है- 'आत्मवत सर्वभूतेषू' यानी कि सभी में चाहे वह पशु-पक्षी हो या मनुष्य हो उनमें अपना ही रूप देखना। अध्यात्म भी यही कहता है कि ऊपर से देखने पर पैड की डालियां भले ही अलग-अलग नज़र आती हों, लेकिन मूल रुप से यानी कि जड़ों से वे एक-दूसरे के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी होती है। ठीक वैसे ही सृष्टि से सभी प्राणी आपस अभिन्न रूप में जुड़े होते हैं।
सभी का सभी के साथ कितना गहरा और अटूट रिश्ता है इस बात को एक उदाहरण के द्वारा और भी आसानी समझने के लिये आइये चलते हैं एक सुंदर कथा की ओर.....
प्रसिद्ध संत केवलराम एक बार बैलगाड़ी में बैठ कर किसी गांव कथा करने क लिये जा रहे थे। वे जिस गांव के लिये बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे उसकी दूरी काफी ज्यादा थी। पूरे 12 घंटों की यात्रा थी इसीलिये केवलराम जी के मन में समय का कुछ सदुपयोग करने का विचार आया। संत ने यात्रा के साथ-साथ गाड़ीवन यानी बैलगाड़ी चलाने वाले को 'श्रीकृष्ण चरित कथामृत' की कथा सुनाने लगे।
कथा इतनी रसभरी थी कि गाड़ीवान पूरी तरह से कथा में खो गया। अचानाक उसका ध्यान गया कि बैल बहुत धीमी गति से चलने लगे हैं। बैलों की धमी चाल को देखकर गाड़ीवान को गुस्सा आ गया और अपने स्वभाव के अनुसार ही उसने एक बैल की पीठ पर जोर-जोर से 2-4 डन्डे जड़ दिये। लेकिन इतने में ही एक अजीब घटना हुई। जैसे ही गाड़ीवान ने बैल की पीठ पर सोटे मारे गाड़ी मे बैठे हुए संत केवलरामजी अपनी जगह से अचानक गिर पड़े और कराहने लगे। अचानक हुई संत की इस हालत को देखकर गाड़ीवान आश्चर्य और घबराहट से भर गया। वह दौड़कर संत के पास पहुंचा तो यह देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई कि बैल को मारे गए डन्डों की चोट के निशान उन संत की पीठ पर भी बन गए हैं। गाड़ीवान का ध्यान गया कि संत केवलराम एकटक उस बैल को ही देखे जा रहे थे।
....सभी को अपना ही रूप मानने की ज्ञान भरी बातें तो गाड़ीवान ने कई बार सुन रखी थी लेकिन उसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखकर संत की अद्भुत करुणा और अपनेपन के आगे उसने बारम्बार प्रणाम किया और अपने कर्म के लिये बेहद दुखी होकर क्षमायाचना भी की।

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