गुरुवार, 14 जुलाई 2011

जब रामजी दशरथ के बुलावे पर महल पहुंचे तो...

मैंने आपसे जो वर मांगा है वो मुझे दीजिए या अपयश ले लीजिए। राम साधु हैं। राम की माता भी बहुत भली हैं। मैंने सबको पहचान लिया है। सबेरा होते ही मुनिका वेष धारण कर यदि राम वन नहीं जाते हैं तो मैं अपने आप को खत्म कर लुंगी। ऐसा कहकर कैकयी खड़ी हो गई। राजा समझ गए कि कैकयी नहीं मानने वाली है। राजा व्याकुल हो गए। उनका सारा शरीर शिथिल पड़ गया।
कैकयी की बात सुनकर राजा ने यह कहा तू चाहे जो बोल या कर पर राम को वनवास भेजने की बात मत कर। मैं हाथ जोड़कर तुझसे विनती करता हूं। राजा को विलाप करते-करते सवेरा हो गया। राजद्वार पर भीड़ लग गई। वे सब सूर्य को उदय हुआ देखकर कहते हैं कि ऐसा कौन सा विशेष कारण हैं कि अवधपति दशरथ अभी तक नहीं जागे। राजा रोज ही रात के पहले ही पहर में ही जाग जाया करते हैं लेकिन आज हमें बहुत
आश्चर्य हो रहा है। जाओ जाकर राजा को जगाओ। तब सुमन्त राजमहल में गए। जहां राजा और कैकयी थे। सुमन्त ने देखा कि राजमहल में बहुत सन्नाटा है। पूछने पर कोई जवाब नहीं देता। राजा के चेहरे पर व्याकुलता है वे जमीन पर पड़े हैं।
मंत्री से डर के मारे कुछ नहीं पूछ सकते। तब कैकयी बोली। राजा को रातभर नींद नहीं आई। तुम जल्दी राम को बुलाकर लाओ। फिर कुछ पूछना। राजा का रूख जानकर सुमंतजी समझ गए कि वे रानी की किसी बात से दुखी हैं। जब सुमंतजी रामजी को बुलाने पहुचे तो वे तुरंत ही उनके साथ चल दिए। जब श्रीरामजी ने जाकर देखा कि राजा बहुत बुरी हालत में पड़े हैं। उनके ओंठ सुख रहे हैं। उनके पास ही उन्होंने गुस्से में बैठी कैकयी को देखा।

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