सोमवार, 11 जुलाई 2011

सुख व समृद्धि प्रदान करता है मंगल प्रदोष व्रत

हिंदू धर्म शास्त्रों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रतों का उल्लेख है। ऐसा ही एक व्रत है प्रदोष व्रत। इस व्रत की महिमा अनेक पुराणों में बताई गई है। यह व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 12 जुलाई, मंगलवार को है। मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत होने से इस व्रत मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष कहा जाता है। इस शास्त्रों में इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
व्रत कथा
एक नगर में एक वृद्ध महिला रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची। हनुमानजी साधु वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज। साधु वेशधारी हनुमान बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा। तू थोड़ी जमीन लीप दे। वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली-महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। यह सुनकर वृद्धा घबरा गई परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया। साधुवेषधारी हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई । इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।
इस पर वृद्धा बोली-उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ। लेकिन जब साधु नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों मे गिर पड़ी। हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया। सूतजी के अनुसार मंगल प्रदोष व्रत से शंकर (हनुमान भी शंकर के ही अवतार हैं) और पार्वतीजी इसी तरह भक्तों को साक्षात दर्शन देकर कल्याण करते हैं।
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