मंगलवार, 19 जुलाई 2011

क्यों पड़ गई रानी कौशल्या धर्मसंकट में?

कैकयी दुखी हो रही है वे अपनी सखियों को दुख और शोक के कारण जवाब नहीं दे रही है। नगर में सारे स्त्री पुरूष इस तरह विलाप कर रहे हैं। सभी दुख की आग में जल रहे हैं। रामजी माता कौसल्या के पास गए। उनका मन प्रसन्न है क्योंकि रामजी को राजतिलक की बात सुनकर विषाद हुआ था कि सब भाइयों को छोड़कर बड़े भाई को ही राजतिलक क्यों किया जाता है?
अब माता कैकयी की आज्ञा पाकर और पिता की मौन सहमति से वह सोच मिट गई। रामजी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर माता के चरणों में सिर नवाया। माता ने आशीर्वाद दिया, उसे अपने गले से लगा लिया और उन पर गहने और कपड़े न्यौछावर किए। रामजी ने इसे अपना धर्म जानकर माता से बहुत कोमल वाणी में कहा पिताजी मुझको वन का राज्य दिया है, जहां सब तरह से मेरा बड़ा काम बनने वाला है।
चौदह वर्ष वन में रहकर पिताजी के वचन को प्रमाणित करके। तेरे चरणों के दर्शन करूंगा। उस प्रसंग को देखकर वे गूंगी जैसी रह गई। उनकी दशा का वर्णन नहीं किया जा सकता। धर्म और स्नेह दोनों ने ही कौसल्याजी को बुद्धि से घेर लिया। वे सोचने लगी अगर मैं पुत्र को रख लेती हूं और भाइयों का विरोध होता है। यदि वन को जाने को कहती हूं तो बड़ी हानि होती है। इस तरह सोचकर रानी धर्म संकट में पड़ गई।

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