शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

इसलिए अष्टावक्र का शरीर टेड़ा हो गया...

उशीनर तीर्थ के बाद मुनि लोमेश ने कहा उद्दालक के पुत्र वेतकेतु इस पृथ्वी में मंत्रशास्त्र में पारंगत समझे जाते हैं। ये जो यह फल-फूलों से सम्पन्न आश्रम उन्ही का है। आप इसके दर्शन कीजिए। इस आश्रम में महर्षि वेतकेतु को साक्षात सरस्वती देवी के दर्शन हुए थे। उद्दालक मुनि का कहोड नाम से प्रसिद्ध एक शिष्य था। उसने अपने गुरू देव की बहुत सेवा की। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने बहुत जल्द सब वेद पढ़ा दिए। अपनी कन्या सुजाता का उसके साथ विवाह कर दिया। कुछ समय बीतने के बाद सुजाता गर्भवती हुई। वह गर्भ इंद्र के समान तेजस्वी था। एक दिन कहोड वेदपाठ कर रहे थे। उस समय वह बोला पिताजी आप रातभर वेद पाठ करते हैं लेकिन ठीक-ठाक नहीं होता।
शिष्यों के बीच में ही इस प्रकार का आक्षेप करने से पिता को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसे शाप दिया कि तू पेट से ही टेढ़ी-टेढ़ी बातें करता है। इसीलिए तू आठ जगह से टेढ़ा पैदा होगा। जब अष्टावक्र पेट में बढऩे लगे तो सुजाता को बहुत दुख हुआ। उसन एकान्त में अपने धनहीन पति को धन लाने की प्रार्थना की। तब अष्टावक्र से इसके विषय में कुछ मत कहना इसी कारण अष्टावक्र को पैदा होने के बाद कुछ भी पता न चला।
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