शनिवार, 31 जुलाई 2010

मित्रता : सुनहरे वचन

* प्रकृति पशुओं तक को अपने मित्र पहचानने की समझ देती है। -कॉर्नील
* मित्रों के बिना कोई भी जीना पसंद नहीं करेगा, चाहे उसके पास बाकी सब अच्छी चीजें क्यों न हो। -अरस्तू
* जो तुम्हें बुराई से बचाता है, नेक राह पर चलाता है और जो मुसीबत के समय तुम्हारा साथ देता है, बस वही मित्र है। -तिरुवल्लुवर
* मैत्री परिस्थितियों का विचार नहीं करती, अगर यह विचार बना रहे तो समझ लो मैत्री नहीं है। -मुंशी प्रेमचंद
* दुनिया की किसी चीज का आनंद परिपूर्ण नहीं होता, जब तक कि वह किसी मित्र के साथ न लिया जाए। -लैटिन
* विवेकी मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। -यूरीपिडीज
* नेक सबके प्रति रहो, मित्र सर्वोत्तम को ही बनाओ। -इसोक्रेटस
* मित्र दुःख में राहत है, कठिनाई में पथ-प्रदर्शक है, जीवन की खुशी है, जमीन का खजाना है, मनुष्य के रूप में नेक फरिश्ता है। -जोसेफ हॉल
* जो छिद्रान्वेषण किया करता है और मित्रता टूट जाने के भय से सावधानी बरतता है, वह मित्र नहीं है। -गौतम बुद्ध
* मित्रता दो तत्वों से बनी है, एक सच्चाई और दूसरा कोमलता। -एमर्सन
* मित्रता की परीक्षा विपत्ति में दी गई मदद से होती है और वह मदद बिना शर्त होनी चाहिए। -महात्मा गाँधी
* सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है, ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक को करना चाहिए। -रामचंद्र शुक्ल
* जीवन में मित्रता से बढ़कर सुख नहीं। -जॉन्सन

निस्वार्थ भाव से होती है दोस्ती

यादों को खास बना देती हैं दोस्ती
फ्रेंडशिप डे के लिए एक दिन मुकर्रर करना तो उनके लिए है जो अब अपने स्कूल के दोस्तों को ऑरकुट या फेसबुक से ढूँढते हैं।
मूवी का पहला शो देखना है पर जेब तो खाली है। फिर पैसों का मिलकर जुगाड़ करना, बस में बिना टिकट के सवारी करना और चेकर के पकड़ने पर रौब से कहना स्टाफ है, घरवालों से झूठ बोलना और गलत बातों के लिए भी उनसे भिड़ जाना, घर में बिना बताए नाइट शो देखना, भूख लगी है तो नए कपड़े पहनकर किसी की शादी में लड़के या लड़की वालों की तरफ से चले जाना और वापिस लौटकर पेट पकड़-पकड़ कर हँसना, ऐसी अनगिनत स्मृतियाँ हैं जो दोस्ती के नाम पर याद आती हैं।

दोस्त ही वह शख्स होता है जो आपके जीवन के सभी राज जानता है। दोस्ती की कसम देने की देर होती थी की काम हो जाता था। फिर सब एक-दूसरे की कमजोरी भी जानते थे। दोस्ती में बिना शब्दों के अभिव्यक्तियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं। आखिर ये सब दोस्ती में ही तो चलता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो मामूली घटनाओं और यादों को भी खास बना देता है। हमारे जहन में ऐसे बहुत से पलों को ताउम्र के लिए कैद कर देता है। ये पल वापिस तो कभी नहीं आते पर हाँ आज भी जब आप अपने पुराने दोस्तों से मिलते हैं तो अब उन बातों को याद कर जरूर हँसी आती होगी।
इस बारे में लीना सिंह कहती हैं कि मैं दोस्तों से आज भी उतनी ही शिद्दत से मिलती हूँ जैसे पहले मिलती थी। मैं अभी भी अपनी स्कूल की दोस्तों के साथ जब मिलती हूँ तो हम सब पुरानी बातों को याद कर हँस पड़ते हैं। किस तरह मैं क्लास के बीच में छुप-छुपकर पूरा टिफिन खा लेती थी और पीटी के समय पीटी से बचने के लिए अपने दोस्तों के साथ पेड़ के पीछे छुप जाती थी।
बेशक अब 'बिजी लाइफ' के चलते रोज मुलाकात नहीं हो पाती, फोन पर बात नहीं हो पाती पर इतना जरूर है कि जब भी बात होती है फिर सबकुछ भूलाकर बस दोस्ती की ही बातें चलती रहती हैं।
दोस्ती के लिए कोई दिन तय कर उसे फ्रेंडशिप डे का नाम दे देना कितना सही है यह कहना थोड़ा मुश्किल है। पर इतना जरूर है कि जिस दिन पुराने यार सब मिल बैठ जाएँ उनके लिए वही फ्रेंडशिप डे हो जाता है।
डॉक्टर हरीश भल्ला कहते हैं कि मेरे दोस्त आज भी मेरे लिए उतने ही खास हैं जितने पहले थे। बेशक समय नहीं मिल पाता लेकिन फिर भी महीने में एक बार हम सब मिलने का प्लान बना लेते हैं और मिलकर फिर से बच्चे बन जाते हैं। मेरी दोस्ती अपने स्कूल तक के दोस्तों के साथ कायम है। उन दिनों जब मैं कॉलेज में था तो कॉलेज में कविता पाठ जैसे बहुत से कार्यक्रम होते रहते थे। उस दौरान मेरा एक दोस्त बना निखिल कौशिक। वह भी कवि सम्मेलन में भाग लेता रहता था।

अब वह लंदन चला गया और आज वह विदेश में आँखों का बहुत बड़ा डॉक्टर बना गया है। कुछ दिन पहले मेरे घर पर पार्सल आया जिसमें एक वीडियो सीडी मुझे मिली। उसे जब मैंने देखा तो मेरी आँखों से आँसू गिरने लगे। उसमें मेरे उस दौर के सभी फोटो थे जिसे निखिल ने अपने कैमरे में कैद कर लिया था। ऐसे निस्वार्थ भाव से होती है दोस्ती।

आइए, इनसे दोस्ती करें

1 दोस्ती करें, फूलों से ताकि हमारी जीवन-बगिया महकती रहे।
2 दोस्ती करें, पँछियों से ताकि जिन्दगी चहकती रहे।
3 दोस्ती करें, रंगों से ताकि हमारी दुनिया रंगीन हो जाए।
4 दोस्ती करें, कलम से ताकि सुन्दर वाक्यों का सृजन होता रहे।

5 दोस्ती करें, पुस्तकों से ताकि शब्द-संसार में वृद्धि होती रहे।
6 दोस्ती करें,ईश्वर से ताकि संकट की घड़ी में वह हमारे काम आए।
7 दोस्ती करें, अपने आप से ताकि जीवन में कोई विश्वासघात ना कर सके।
8 दोस्ती करें, अपने माता-पिता से क्योंकि दुनिया में उनसे बढ़कर कोई शुभचिंतक नहीं।

9 दोस्ती करें, अपने गुरु से ताकि उनका मार्गदर्शन आपको भटकने ना दें।
10 दोस्ती करें, अपने हुनर से ताकि आप आत्मनिर्भर बन सकें।

फ्रेंडशिप डे

जब फ्रेंड को बनाना हो वेलेंटाइन
एक दिन दोस्त के नाम, दोस्तों के नाम। दोस्ती हर किसी से नहीं की जा सकती मगर जिससे होती है उससे तोड़ी नहीं जा सकती। दोस्तों की फीलिंग्स को समझने का और उसे अपनी फीलिंग्स समझाने बस यही दिन है बाकी दिन तो आप और उनकी शरारते हैं, मस्ती है और रूठना-मनाना है।

कई बार ऐसा भी तो होता है कि फ्रेंडशिप डे के दिन ही एक दूजे से लड़-झगड़ बैठें हो। इस दिन यूँ तो बिंदास जीना चाहिए मगर कुछ एटिकेट्स दोस्तों के साथ भी बरतना चाहिए। अगर आपकी दोस्त लड़की है और यह फ्रेंडशिप थोड़ी और आगे बढ़ाने के बारे में आप सोच रहे हैं तो बी केयरफुल। वैलेंटाइन डे तक की तैयारी आज ही करनी होगी।

न लेट न शो ऑफ
अगर आपने उसे कहीं मिलने बुलाया है तो उससे पहले पहुँच कर इंतजार करें। वह खुद चाहे भले ही घंटा भर देरी से पहुँचे। आप टाइम पर ही पहुँचें। यानी ना तो आप लेट हों, ना ही ऐसा शो ऑफ करें कि अपने पच्चीस काम छोड़कर आप वहाँ पहुँचे हैं। ओवर स्मार्ट बनने और खुद की तारीफों के पुल बाँधने वाले लड़के, लड़कियों को बिल्कुल पसंद नहीं आते। चाहे वह आपकी खूब अच्छी दोस्त हो लेकिन उसके आगे डिंगे ना हाँके और हल्की मजाक तो बिलकुल ना करें।

न कुर्ता न टाई
आप पर जो सूट करें, वही ड्रेस पहनें। इंफॉर्मल लुक के चक्कर में कुर्ता-पायजामा पहन कर ना चले जाएँ ना ही फैशन के चक्कर में फनी सा कुछ पहन लें। लड़कियों को स्मार्ट, रफ एंड टफ और कॉन्फिडेंट लड़के पसंद आते हैं। स्ट्रॉन्ग परफ्यूम से आपके बारे में इम्मेच्योर छवि बन सकती है। अगर दोस्ती नई-नई हो तो टाई का प्रयोग तो कतई ना करें। घर जाकर उसका हँस-हँस कर बुरा हाल हो जाएगा।
न शर्म न बेशर्म
ठीक है कि वह आपकी दोस्त है और आप उसे कुछ भी कह सकते हैं लेकिन अगर उसकी वेलेंटाइन बनने की संभावना बन रही है तो अपने घटिया और फूहड़ जोक्स पर कंट्रोल करें। बिल्कुल ही खुलकर बीहेव ना करें। लेकिन इसके विपरीत बहुत ज्यादा शर्माने से भी बात बिगड़ सकती है। अपनी दोस्त के साथ एकदम सहज रहें।

लड़कियों को झिझकने वाले या इधर-उधर की बातें करने वाले लड़के भी पसंद नहीं आते। इसलिए स्ट्रेट फॉरवर्ड रहें और शर्माएँ नहीं। हालाँकि प्रपोज तो आज आपको करना नहीं है बस फ्रेंडशिप ही पक्की करनी है तो प्लीज बिना मतलब शर्माएँ नहीं। आप अच्छी भली दोस्त भी गवाँ बैठेंगे।

नो टाइम लिमिट नो फालतु
फ्रेंडशिप डे का दिन है और आप बार-बार घड़ी देखें तो बनती बात बिगड़ सकती है। अगर इतनी ही जल्दी है तो मिलने का प्रोग्राम क्यों बनाया? कई बार दिल में कुछ और चल रहा होता है इसलिए भी घबराहट के मारे ऐसा कुछ हो सकता है। लेकिन आपको सलाह है कि घबराएँ नहीं। अपने आप पर नियंत्रण रखें। जल्दबाजी से वह आपके बारे में यह सोच सकती है कि आपको उसमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है।

अगर आपने तीन घंटे से ज्यादा साथ गुजार लिए हैं और कोई टॉपिक बात करने को नहीं बचा है तो फिर बिना मतलब उसे न रोकें। बस साथ बैठे रहने के लिए तो बिल्कुल नहीं। इससे यह खतरा है कि वह आपको फालतु समझ लेगीं।

फ्रेंडशिप डे पर अपने लिए वेलेंटाइन तलाश रहे हैं तो आज अपने हाव-भाव, गलत विचार आदि पर कड़ा नियंत्रण रखें। चाहे आप वेलेंटाइन के रूप में उसका सिलेक्शन ना बनें लेकिन एक सभ्य, शिष्ट दोस्त के रूप में वह आपको कभी नहीं खोना चाहेगी।

दोस्ती और उपहार का रिश्ता

यूँ सुलझाएँ उपहारों की उलझन को
दोस्ती एक एहसास है। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसके सामने सारे रिश्ते-नाते छोटे पड़ जाते हैं। वैसे तो हमारी जिंदगी में सभी की अहमियत होती है लेकिन दोस्त जितना ज्यादा अहम होता है उस जगह को शायद ही कोई ले सकता है। दोस्तों के साथ नोक-झोंक, हँसी-मजाक सबकुछ होता रहता है। एक दोस्त में हमें भाई-बहन सब दिख जाता है।

हम दोस्तों से अपना दुख-सुख सब शेयर कर लेते हैं। वो तमाम बातें भी हम उनसे शेयर करते हैं जिसके बारे में हम अपने परिवार वालों को भी नहीं बता पाते। अगर परिवारवाले गुस्सा होते हैं तो लगता है कि दोस्त है न उसके पास चले जाएँगे। वैसे तो हम दोस्तों के लिए अपनी जान तक देने को तैयार हो जाते हैं लेकिन जब दोस्तों को कुछ गिफ्ट देने के बारे में खयाल आता है तब हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है। एक अगस्त को फ्रेंडशिप डे है और आप अब तक सोच ही रहे हैं कि इस मौके पर आप उन्हें क्या गिफ्ट दें। तो अब चिंता छोड़िए, आपकी इस उलझन को हम सुलझाएँगे।
दोस्त के पसंद का गिफ्ट : वैसे तो आप अपने दोस्त की पसंद-नापसंद से वाकिफ होंगे इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपने दोस्त को उसके पसंद का ही गिफ्ट दें। इससे प्यार और ज्यादा बढ़ता है लेकिन अगर आप अभी भी उलझन में हैं तो आपके लिए बाजर में ढेरों बेहतर विकल्प हैं।

यादगार गिफ्ट : जिस दिन आप दोनों की दोस्ती हुई हो उस दिन की कोई तस्वीर या कोई वाकया याद हो उसे संजोकर दे सकते हैं। उसके साथ बिताए पल के सभी तस्वीरों को एक अलबम में संजोकर देना सही रहेगा। उसके फेवरेट गानों को एक सीडी में कंपोज करा के दे सकते हैं। आप अपने दोस्तों को सरप्राइज डिनर पार्टी भी दे सकते हैं। अगर आप जॉब कर रहे हैं तो छुट्टी लेकर गप्पे मारने का न्योता दे सकते हैं या फिर कहीं साथ घूमने या शॉपिंग करने का प्लान बना सकते हैं।

ग्रीटिंग कार्ड : बाजार में फ्रेंडशिप डे को लेकर कई तरह के ग्रीटिंग कार्ड उपलब्ध हैं। सभी गिफ्ट स्टोर में आपको बेहतरीन स्लोगन लिखे कार्ड मिल जाएँगे। इसके अलावा म्यूजिक वाले फ्रेंडशिप कार्ड भी इन स्टोरों में आपका इंतजार कर रहे हैं। इनकी कीमत बहुत ज्यादा नहीं बल्कि 30 रुपए से 200 रुपए के रेंज में आपको ये कार्ड मिल जाएँगे।

आप इनमें से कोई भी कार्ड अपने दोस्त को दे सकते हैं लेकिन इस फ्रेंडशिप डे को यादगार बनाने के लिए आप अपने हाथों से कार्ड बना कर दे जिसमें कोई पुरानी याद जुड़ी हुई हो, उसमें आप अपनी भावनाओं को भी लिख सकते हैं। जिससे आपके दोस्त की खुशी चौगुनी बढ़ जाएगी।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

भागवत-८-९

निष्काम भक्ति सीखाती है भागवत
आज इस बात की चर्चा की जाए कि भागवत का मूल विषय क्या है? भागवत का मूल है निष्काम भक्ति। भागवत में बार-बार आपको यह शब्द मिलता रहेगा। भागवत ने कहा है मेरा मूल विषय है निष्काम भक्ति। निष्काम भक्ति का अर्थ है आप कर रहे हैं फिर भी आप नहीं कर रहे हैं। जिसको अंग्रेजी में कहते हैं डूइंग है डूअर नहीं है। निष्कामता वहीं घटती है जिसमें आपके कर्म में से मैं चला जाए। आपके काम में से जिस दिन कर्ता बोध का अभाव हो जाए उस दिन निष्कामता घटती है।

बहुत लोगों को समझ में नहीं आता निष्कामता होती क्या है? मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। जिन लोगों ने बेटियां पैदा की हैं, बेटियां बड़ी की हैं, पाली हैं और विदा किया है। वो लोग जान सकते हैं निष्कामता क्या होती है। जब कोई अपनी बेटी को पालता है तो बेटे की तरह ही पालता है। लेकिन एक दिन वह बेटी बड़ी होती है और आदमी उसको विदा कर देता है। एक दिन उस बेटी का विवाह हो जाता है। उसका नाम, वंश, कुल, परंपरा सब एक क्षण में बदल जाता है।
ये भारतीय संस्कृति का ऐसा गौरव है कि जब स्त्री का विवाह होता है तो एक क्षण में उसका सबकुछ बदल जाता है। देहरी पार जाकर उसकी पहचान, उसका वंश, उसका कुल, उसके रिश्ते और सोलह श्रृंगार। आदमी जानता है मैं इस बेटी को बड़ा कर रहा हूं। एक दिन मेरा इस पर कोई अधिकार नहीं रहेगा। जिस दिन आपके कर्म में, कर्म के फल के प्रति बेटी के विदा करने जैसा भाव जाग जाए बस वहीं से निष्कामता का जन्म होता है। भागवत का मूल विषय यही है कि निष्काम भक्ति योग।

तीनों दुखों का नाश करते हैं श्रीकृष्ण
तापत्रय अर्थात आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तीन तरह के दु:ख होते हैं इंसान को। भागवत कितना सावधान ग्रंथ है। पापत्रयविनाशाये नहीं लिखा तापत्रयविनाशाय लिखा। पाप आता है चला जाता है। यदि आदमी पश्चाताप कर ले। लेकिन पाप का परिणाम क्या है ताप। पाप अपने पीछे ताप छोड़कर जाता है। आदमी को पता नहीं लगता इसी को संताप कहते हैं।

लिखा है आध्यात्मिक आदिदैविक, अदिभौतिक तीनों प्रकार के पापों को नाश करने वाले भगवान श्रीकृष्ण की हम वंदना करते हैं। अनेक लोगों को मन में यह प्रश्न उठता है कि वंदना करने से क्या लाभ है? वंदना करने से पाप जलते हैं। श्रीराधा व कृष्ण की वंदना करेंगे तो हमारे सारे पाप नष्ट होंगे। परंतु वंदना केवल शरीर से नहीं मन से भी करना पड़ेगी। अत: ईश्वर वंदनीय है। वंदना करने का अर्थ है अपनी क्रियाशक्ति को और बुद्धि शक्ति को श्रीभगवान को अर्पित करना।
वंदन करने से अभिमान का बोझ कम होता है। श्रीभागवत का आरंभ ही वंदना से किया गया है। और वंदना से समाप्ति की गई है। संत महात्मा कहते हैं कि ये जो 'श्रीकृष्ण' शब्द लिखा है इसमें जो ये 'श्री' है यह राधाजी का प्रतीक है। राधाजी को 'श्री' भी कहा गया है। विद्वानों का प्रश्न है और शोध का विषय भी है बड़ी चर्चा होती है इसकी लोग हमसे भी प्रश्न पूछते हैं कि भागवत में राधाजी की चर्चा नहीं आती? पूरे भागवत में राधाजी का नाम ही नहीं है। नायक कृष्ण और राधा का नाम नहीं। लोगों को बड़ा आश्चर्य होता है कि वेदव्यासजी ने क्या सोचकर राधाजी का नाम नहीं लिखा। जबकि राधा के बिना कुछ नहीं हो सकता।

क्या गणपति की बेटी हैं संतोषी माता?

भगवान गणपति को प्रथम पूज्य माना जाता है। संसार में भौतिक सफलता के लिए वे ही सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देवता है। अकेले भगवान गणपति की पूजन से हमें हर तरह की सिद्धि मिल सकती है। गणपति का पूजन करते हैं तो हमें बुद्धि, शक्ति, कार्यकुशलता, धन लाभ आदि चीजें मिलती हैं जो संसार में सबसे ज्यादा आवश्यक हैं। गणपति के परिवार में दो पत्नियां और दो बेटों का जिक्र मिलता है। लेकिन एक और सदस्य भी, वे हैं गणपति की पुत्री संतोषी माता। क्या वाकई भगवान गणोश की कोई पुत्री भी थी।

कई विद्वानों का मानना है कि संतोषी माता का अस्तित्व काल्पनिक है। पुराणों में कहीं भी संतोषी माता का जिक्र नहीं किया गया है, अगर कहीं कोई उल्लेख है तो वह भी बाद में शामिल किया जान पड़ता है। सवाल यह है कि अगर गणपति की कोई पुत्री नहीं थी तो फिर संतोषी माता कौन हैं? दरअसल इसके लिए हमें भगवान गणपति के पूरे परिवार को समझना होगा। भगवान गणपति बुद्धि, शक्ति और विद्या के दाता हैं, उनकी पत्नी हैं रिद्धि और सिद्धि। बल, बुद्धि और विद्या मिले तो हमें हर कार्य में सिद्धि मिलना आसान होती है, गणपति की पत्नी सिद्धि हमें कार्य में यही सिद्धि प्रदान करती हैं। रिद्धि का अर्थ है कुशलता को कायम रखना, मतलब सिद्धि से जो कुशलता हमें मिली है, उसे रिद्धि हमेशा सुरक्षित रखती है। मतलब गणपति की दोनों पत्नियां हमें जीवनभर के लिए कार्यकुशल बनाती हैं।
दो पुत्र योग और क्षेम हैं। योग हमें आर्थिक लाभ देता है और क्षेम उस लाभ को हमेशा संरक्षित रखता है। इस तरह अगर हमारे पास आजीवन धन, कुशलता, बुद्धि और बल रहे तो फिर हम संतोषपूर्ण जीवन जी सकते हैं। गणपति के आराधकों को जीवन में ऐसे ही संतुष्टि मिलती है। बस इसी संतोष को गणपति की तीसरी संतान संतोषी माता माना गया है क्योंकि यह हमें संतुष्टि देती है। कुछ विद्वान इसे काल्पनिक तो कुछ इसे दार्शनिक मानते हैं।

कौरव वंश का विनाश

धर्म के विरुद्ध आचरण करने के दुष्परिणामस्वरूप अन्त में दुर्योधन आदि मारे गये और कौरव वंश का विनाश हो गया। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति फेर दी।
एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा।
इस घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया।

...और राम के भय से कांप उठा समुद्र

रावण से युद्ध करने के लिए श्रीराम और उनकी वानर सेना समुद्र तट तक पहुंच गई थी। जहां श्रीराम के समक्ष समुद्र को पार करने की समस्या खड़ी हो गई। तब श्रीराम ने समुद्र से मार्ग लेने की अभिलाषा से कई पूजा-अनुष्ठान किए। परंतु समुद्र घमंड और अहंकार के मद में चूर था। बहुत सी पूजा आदि करने के बाद भी समुद्र द्वारा श्रीराम की सेना को रास्ता नहीं दिया गया। इससे श्रीराम अति क्रोधित हो गए और उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया। श्रीराम का यह स्वरूप देखकर समुद्र के अहंकार का नाश हो गया और समुद्र में रहने वाले जीवों के प्राणों पर आए संकट से कांप उठा। तब समुद्र मनुष्य वेश में आकर श्रीराम से क्षमा याचना करने लगा। भक्तवत्सल भगवान श्रीराम ने समुद्र को क्षमा करते हुए लंका तक पहुंचने के लिए मार्ग छोडऩे को कहा। तब समुद्र ने श्रीराम से कहा कि आपकी सेना में नल-नील दो भाई देव शिल्प विश्वकर्माजी का ही रूप है। साथ ही उन्हें ऋषियों का श्राप भी है कि वे जो वस्तु पानी में फेंकेंगे वह डूबेगी नहीं। अत: प्रभु आप मुझ पर नल-नील द्वारा पुल बंधवा दें और लंका तक पहुंच जाएं।

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

शिव की आराधना

जानें शिव व सावन के बारे में
सावन मास में शिव आराधना का विशेष फल मिलता है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में भी कई उल्लेख मिलते हैं। इस महीने में भक्त अलग-अलग माध्यमों से शिव भक्ति में डूब जाते हैं। सावन में प्रकृति की छटा भी देखते ही बनती है। रिमझिम बारिश, झूले और इनके साथ ही शिव की भक्ति, सावन के महीने को पूरी तरह धर्ममय बना देती है।

अपने पाठकों को शिव तथा सावन से संबंधित रोचक जानकारियां देने के उद्देश्य से हमने विशेष उत्सव पेज तैयार किया है, जिसमें आप पाएंगे- शिव से जुड़े तांत्रिक उपाय, ज्योतिष निदान, कथाएं, रोचक बातें, प्रमुख मंदिरों की जानकारी, विभिन्न अवतार, कावड़ यात्रा की जानकारी, नित्य पूजा करने की विधि, पूजन मंत्र, सावन का धार्मिक तथा मनोवैज्ञानिक पक्ष आदि।
शिव तथा सावन से जुड़ी यह सामग्री आपके जीवन में भक्ति, ऊर्जा तथा उत्साह का संचार करेंगी। यह सामग्री आप पाएंगे सिर्फ उत्सव पेज पर।

शिव पूजा के पीड़ानाशक ज्योतिष उपाय
शिव के प्रिय मास सावन में किया गया शिव पूजन, व्रत और उपवास बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में शिव का मतलब कल्याण करने वाला बताया गया है। इसलिए सावन माह का ज्योतिष विज्ञान में भी बहुत महत्व बताया गया है। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में सावन माह में शिव पूजा के द्वारा अनेक ग्रह दोष और उनकी पीड़ाओं से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। जिसमें हर राशि के व्यक्ति के लिए भगवान शिव की उपासना और पूजा के विशेष उपाय बताए गए हैं। जिनका शिव आराधना के समय पालन करने पर हर कोई मनचाहा फल पा सकता है। वैसे सभी राशि के लोग शिव पूजा किसी भी विधि से कर सकते हैं। लेकिन यहां बताए जा रहे शिव पूजा के विशेष उपाय ज्यादा प्रभावकारी माने जाते हैं।

सावन में हर राशि का व्यक्ति शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करे। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरुर चढ़ावें। इसके अलावा जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है।
मेष - इस राशि के व्यक्ति जल में गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर शिव को भोग लगाएं। लाल चंदन व कनेर के फूल चढ़ावें।
वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें।
मिथुन - इस राशि का व्यक्ति गन्ने के रस से शिव अभिषेक करे। अन्य पूजा सामग्री में मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें।
कर्क - इस राशि के शिवभक्त घी से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें। सिंह - सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। वह गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग शिव को लगाएं। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं।
कन्या - इस राशि के व्यक्ति गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिव को भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं।
तुला - इस राशि के जातक इत्र या सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें।
वृश्चिक - पंचामृत से शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं।
धनु - इस राशि के जातक दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करे। भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें।
मकर - नारियल के पानी से शिव का अभिषेक मकर राशि के जातकों को विशेष फल देता है। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान का चढ़ाएं।
कुंभ - इस राशि के व्यक्ति को तिल के तेल से अभिषेक करना चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है।
मीन - इस राशि के जातक दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। भात और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव का चढ़ाएं।

शिव के साथ करें पार्वती की आराधना
सावन के तीसरे दिन अर्थात श्रावण कृष्ण तृतीया तिथि विशेष फलदायी होती है क्योंकि यह तिथि माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन भगवान शंकर तथा माता पार्वती के मंदिर में जाकर उन्हें भोग लगाने तथा विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। 7 दिन तक लाल वस्त्र दान करने से भगवान शिव व पार्वती प्रसन्न होते हैं।

इस दिन कजली तीज व्रत भी किया जाता है। कजली तीज को हरियाली तीज, श्रावणी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को फूल-पत्तों से सजे झूले में झुलाया जाता है। चारों तरफ लोकगीतों की गूंज सुनाई देती है। कई जगह झूले बांधे जाते हैं और मेले लगाए जाते हैं। नवविवाहिताएं जब विवाह के बाद पहली बार श्रावण में पिता के घर आती है तो तीन बातों के तजने (त्यागने) का प्रण लेती है- पति से छल कपट, झूठ और दुव्र्यवहार और दूसरे की निंदा। मान्यता है कि विरहाग्रि में तप कर गौरी इसी दिन शिव से मिली थी।
इस दिन पार्वती की सवारी निकालने की भी परम्परा है। इसी तिथि को स्वर्णगौरी व्रत भी किया जाता है। व्रत में 16 सूत का धागा बना कर उसमें 16 गांठ लगा कर उसके बीच मिट्टी से गौरी की प्रतिमा बना कर स्थापित की जाती है तथा विधिविधान से पूजा की जाती है।

भगवान कृष्ण का महानिर्वाण

धर्म के विरुद्ध आचरण करने के दुष्परिणामस्वरूप अन्त में दुर्योधन आदि मारे गये और कौरव वंश का विनाश हो गया। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति फेर दी।
एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा।
इस घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया।

पाचों दरवाजों पर रखें कड़ा पहरा

जरा सी चूक हुई नहीं कि चोट लगना तय है। आघात, प्रहार और हमला हमेशा इस ताक में ही रहते हैं कि मौका मिले आरै टूट पड़ें। गहरी जिंदगी जीने के अनुभवी तो यहां तक कहते हैं कि, कमजोरी तो खुद ही आक्रमणों को न्योता देती है। कहने का मतलब यह कि कमजोरी अथवा निर्बलता में शत्रुओं के लिये एक प्रकार का आकर्षण होता है। यह मात्र अनुभवों की ही नहीं बल्कि पूर्णत: मनोवैज्ञानिक सत्य भी है।
ठोकरें खा-खाकर इंसान थोड़ा संभल कर चलना सीख ही जाता है। वह अपने जान-माल की हिफाजत के लिये सजग और चौकन्ना रहने लगता है। किन्तु इंसान की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि वह कम महत्व की वस्तु की तो देख-रेख कर लेता है किन्तु अनमोल चीजों को भूल जाता है। उसकी ऐसी ही भूल है अपने व्यक्तित्व की अनदेखी करना। मनुष्य को ईश्वर ने पांच इंद्रियां दी हैं जो सहायक बनकर काम आती हैं। ये पांचों इंद्रिया ही वे पांच दरवाजे हैं जिनसे होकर, व्यक्तित्व को नष्ट करने वाले शत्रु प्रवेश करते हैं। ये दरवाजे कुछ इस तरह हैं-

१. नेत्र- आखों से होकर ही ऐसे दृश्य आते हैं जो विकृति पैदा करते हैं।

२. कान- इनसे होकर ही वे शब्द घुसते हैं जो मस्तिष्क को अशांत करते हैं।

३. जीभ- इसकी रजामंदी से वे चीजें शरीर में चली जाती हैं जिनका जाना उचित नहीं था।

४. नाकिका- इसकी लापरवाही से ही व्यक्तित्व दुर्गंधों का आदि हो गया।

५. त्वचा- न छूने लायक के स्पर्श की अनुमति मन को देकर पवित्रता को नष्ट इसी से होकर किया गया।
अत: यदि कोई अपने व्यक्तित्व का घातक शत्रुओं से बचाना चाहे तो उसे इन पांचों दरवाजों पर कड़ा पहरा रखना होगा।
साभार भास्कर

दिमाग की कमाई

एक लड़के ने किसी गरीब किसान से एक गधा 1000 रुपए में खरीदा। लड़के ने गधे को अगले दिन ले जाने की बात कही और किसान ने हां कर दी। अगले दिन लड़का गधा लेने आया, परंतु गधा तो रात में मर चुका था।
गरीब किसान ने मॉफी मांगते हुए कहा: बेटा गधा तो रात को मर गया। अब जैसा तुम बताओ वैसा ही करते हैं।
लड़के ने कहा: ठीक है फिर मेरे 1000 रुपए लौटा दो।
किसान ने कहा- बेटा पैसे तो खर्च हो गए अब मेरे पास कुछ नहीं बचा।
लड़के ने कहा: ठीक है फिर मरा हुआ गधा ही ठेले पर रख दो।
किसान ने कहा: मरे हुए गधे का क्या करोगे?
लड़के ने कहा: मैं इस गधे को लॉटरी निकालकर बेच दूंगा और इससे पैसा कमा लूंगा।
किसान ने कहा: ऐसा कैसे हो सकता है? मरा गधा कौन खरीदेगा?
लड़के ने कहा: मैं बेच दुंगा, आप बस गधा ठेले पर चढ़ा दो।
लड़का मरा हुआ गधा लेकर बाजार के चौराहे पर चला गया और वहां जोर-जोर चिल्लाने लगा 100 रुपए दो और जिसकी लॉटरी निकल जाएगी एक गधा उसका हो जाएगा। लोगों ने सोचा 100 रुपए में गधा मिल जाएगा कोशिश कर लेते हैं शायद हमारी लॉटरी निकल जाए। यह सोच कर करीब 50 लोगों ने उस लड़के को 100-100 रुपए दे दिए। इस तरह उसके पास 5000 रुपए जमा हो गए। और उसने किसी एक व्यक्ति की लॉटरी निकाली दी। वह व्यक्ति गधा लेने आया तो लड़के ने उससे माफी मांगते हुए कहा गधा तो मर गया है आपके 100 रुपए वापस ले लीजिए। मरा गधा लेकर क्या करुंगा? यह सोचकर लॉटरी विजेता 100 रुपए लेकर चला गया।
इस तरह लड़के ने समझदारी से 4900 रुपए कमा लिए।

अंगद का पैर तक नहीं हिला सके...

श्रीराम वानर सेना के साथ समुद्र पार कर लंका पहुंच गए हैं। श्रीराम ने अंगद को अपना दूत बनाकर रावण को समझाने के लिए भेज दिया। अंगद लंका में प्रवेश करता है जहां सभी लंकावासी वानर को देख उन्हें हनुमान की याद आई और वे भयभीत हो जाते हैं। अंगद जब रावण के राज दरबार में पहुंच गया। तब वहां रावण और अंगद का वाक् युद्ध शुरू हुआ और बातों ही बातों में अंगद ने रावण को चुनौति दे दी कि उसका एक पैर हिला दोगे तो श्रीराम लंका से लौट जाएंगे। क्रोधित रावण के सभी महायौद्धा कई बार अंगद का पैर हिलाने की कोशिश करके हार गए। तब रावण पुत्र मेघनाद जो कि परलम शक्तिशाली था, जिसने इंद्र तक को जीत लिया था उसने अंगद का पैर हिलाने की नाकाम कोशिश की। यह देख रावण आग बबुला हो गया और खुद उठ खड़ा हुआ। रावण अंगद के पैर का पकडऩे ही वाला था तब अंगद बोला अरे मूर्ख मेरे चरण ना लग श्रीराम के चरणों में ध्यान लगा तो कल्याण हो जाएगा।

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

फूल-वृक्ष और समय की पाबंदी

- कमल का फूल सूर्योदय के साथ खिलता है और शाम होते-होते मुरझा-सा जाता है मानो वह पुनः बंद हो गया हो।
- सूरजमुखी के फूल का मुँह प्रातःकाल सूर्य की ओर होता है, दोपहर में ऊपर (सूर्य की ओर) तथा शाम को पश्चिम की ओर होता है। यह अपने आप में आश्चर्य की बात है।

- अफ्रीका के 'आइवरी कोस्ट' के जंगलों में एक ऐसा वृक्ष होता है जिसके पत्ते दिन में फैलते हैं और रात को सिकुड़ जाते हैं। रात को बंद पत्तों वाला यह वृक्ष एक फुटबॉल की तरह दिखाई देता है।
- अमेरिका में एक ऐसा वृक्ष भी पाया जाता है, जो हिलने पर मनुष्य के हँसने के समान आवाज करता है।
- भारत में छुई-मुई का पौधा भी एक आश्चर्यजनक पादक है। रात में इसे छूते ही इसकी पत्तियाँ सिमट जाती हैं। हाथ दूर करते ही इसकी पत्तियाँ पुनः खुल जाती हैं। ये पत्तियाँ इमली की पत्तियों जैसी होती हैं।
- एक ही समय में अलग-अलग जाति व प्रकार के 14 फूल देने वाला वृक्ष भी कितना आश्चर्यजनक लगता होगा। इन फूलों के रंग, आकार और प्रकार भी भिन्न-भिन्न होते हैं।

सावन में खिलते हैं मन के फूल


प्रकृति में निहित अपार सौंदर्य को अनेक साहित्यकारों ने विविध रूपों में व्यक्त किया है। प्रकृति के कण-कण में जीवन है, जीवन देने की क्षमता है और जीवन-दर्शन भी है। प्रकृति में ही पोषित-पल्लवित हो रहे हम मानव इसे कितना सुन पाते हैं, समझ पाते हैं और महसूस कर पाते हैं? इसका उत्तर नकारात्मक ही होगा। जबकि प्रकृति अपने विविध रूपों के माध्यम से हमसे निरन्तर संचार करती है।

प्रकृति से जुड़ी कई छोटी-छोटी बातें और अनुभव ऐसे होते हैं जिन्हें हम कभी तो आपस में बाँटना चाहते हैं और कभी लगता है किसी को बताएँ तो क्यों बताएँ? कोई सुनेगा तो आखिर क्यों सुनेगा? लेकिन मानव मन बहुत उतावला होता है, भोला और उत्साही होता है। दिन भर न जाने कितनी ही अर्थहीन बातें परस्पर बाँटता रहता है किन्तु वे सारी निरर्थक दिखाई देने वाली बातें अत्यन्त सार्थकता लिए होती हैं।
सार्थक इसलिए कि इनमें हँसी छुपी होती है, मुस्कान निहित रहती है और एक ऐसी किलकती-चहकती खुशी दबी होती है, जिसे अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों का विशाल भंडार भी नन्हीं-सी गठरी के समान लगने लगता है। बस, अनुभूत किया जा सकता है। प्रकृति कभी-कभी अनजाने ही जीवन का मूलमंत्र सिखा जाती है। जरूरत होती है प्रकृति के इन अनमोल नजारों को समझने और महससूने के लिए संवेदनशील मन की!
एक दिन सावन की साँवली संध्या में मैं अपने आँगन में बैठी अपनी सफलता-असफलता का हिसाब लगा रही थी। बार-बार असफलता का पीड़ादायक प्रतिशत सफलता के अनुपात में अधिक आ रहा था। दिल डूबता जा रहा था, निराश और कुंठा का स्याह घेरा बढ़ता ही जा रहा था। मैं इस घेरे से बचने का असफल प्रयास कर रही थी।

बहुत हाथ-पैर मारने के बाद भी हताशा के भँवर में फँसती चली जा रही थी। तभी नजदीक रखे गमले में खिले ताजातरीन सुकुमार गुलाब पर बस नजर भर पड़ी और यकायक जैसे विचारों की श्रृंखला परिवर्तित हो गई। चेहरे पर खिली एक सहज मुस्कान ने एक सकारात्मक उजाले से मुझे भर दिया। इस रोशनी ने कब और कैसे निराशा के अँधेरे को दूर कर दिया, पता ही नहीं चला।
सावन का मौसम सचमुच सलोना होता है। एक सुबह और किसी वजह से मैं रूआँसी हो रही थी। हारी हुई आकाश को ताक रही थी तभी सावन की रिमझिम बरसती सलोनी बूँद ने चेहरे पर गिरकर मुझे मुस्काने के लिए बाध्य कर दिया, इस बूँद ने जो पुलक मेरे अंतर में अंकुरित की, उसे शब्द देने के लिए संभवतः मैं हमेशा असमर्थ रहूँगी। कितनी सार्थक थी बारिश की वह पहली बूँद, जिसने चेहरे पर गिरते ही न सिर्फ मुझे गदगद् कर दिया बल्कि मैं भूल गई उस अवसाद को, उस पीड़ा को, जो कुछ देर पहले मुझे हैरान-परेशान कर रही थी।
प्रकृति कितना कुछ देती है हमें ! भोजन, वस्त्र और आवास ही नहीं बल्कि अनुभूतियों का सुकोमल संचार भी। प्रकृति की यह कृपालु दृष्टि हम पर न होती तो आज प्रकृति पर रचित साहित्य का समृद्ध भंडार हमें उपलब्ध न होता। न जाने कितने संवेदनशील कवियों के गहरे हृदय को इस प्रकृति ने स्पंदित किया है।
प्रकृति द्वारा प्रसारित खुशियों को अँगुलियों पर गिनाया जाना मुश्किल है। कभी मुट्ठी भर खनकती बयार ने दिल में पायलों को रूनझुना दिया तो कभी चुटकी भर कुनकुनी धूप ने उष्म मानवीय स्पर्श का अनुभव करा दिया। कभी बैखौफ-बेधड़क बरसते सावन ने मन के आँगन में स्नेहिल अनुभूतियों को तरंगित कर दिया तो कभी रिमझिम झरती मासूम फुहारों ने आत्मा के सुप्त तारों को झनझना दिया।
कभी साँवले, स्लेटी बादलों ने आसमान की परतों से निकलकर धूप के कालीन की नुकीली छोरों को मोड़ दिया तो कभी नन्हीं-सी कली के चटकने से अंतर्मन का सन्नाटा चिंहुक उठा। कभी गुड़हल के सूर्ख फूलों ने आँखों को चमक दी तो कभी नाजुक, नर्म हरी दूब ने आत्मा को ठंडक दी। कभी किसी छुटकी-सी चिरैया की चहचहाहट से कानों में मीठी घंटियाँ बज उठी तो कभी मेहँदी की शीतल खुशबू ने सपनों का सुहाना संसार रच दिया।

कृति में न सिर्फ ममत्व है बल्कि स्नेह, उत्साह, उदारता और आकर्षण भी शामिल है। प्रकृति की ये सौगातें, खुशियों के साथ-साथ कर्तव्य पथ पर बढ़ने की शिक्षा भी देती है। आकाश के गहरे नीले आँगन में झिलमिल करते सितारे, लगता है अनुशासित रहकर बस अविचल अपना काम करते रहने की शिक्षा दे रहे हैं।
भीगी चाँदनी में ओस की उस नन्हीं सी मधुरिम बूँद को देखा है, जिसे सिर्फ देखा जा सकता है, छुआ नहीं जा सकता? आपको नहीं लगता जैसे प्रकृति इस दृश्य के माध्यम से हमसे मुखातिब है और कह रही है कि कुँवारी कन्या ऐसी ही होती है जिसे बस सम्मान और स्नेह से देखा जाना चाहिए?

बहरहाल, सावन का हरियाला मौसम भारत में त्योहारों के आगमन का संकेत होता है। प्यार, रिश्ते, श्रृंगार और खुशियों का यह मौसम प्रकृति के करीब लाता है। प्रकृति में जहाँ उदित होते सूर्य में उमंग है, वहीं दमकते चन्द्रमा में विनम्रता और शीतलता है। कोंपल अंकुरण में बच्चों-सी मासूमियत है और उसके स्फुरण में जीवन दर्शन है।
नीड़ों में लौटते सांध्य पाखियों में आशियाने का महत्व है तो टिमटिमाते सितारों में एकता का संदेश है। पवित्र नदियों के कलकल प्रवाह से निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है तो किसी आकर्षक फूल से सदैव मुस्कराते रहने की शिक्षा मिलती है।
इस मौसम में हम महसूस कर सकते हैं कि कितने मीठे, सजीले, सुवासित और सुरीले भाव प्रकृति के आँचल में दमक रहे हैं। सावन का यह मौसम प्रकृति के माध्यम से उत्साह,खुशियाँ, अनुभूतियाँ, सीख और अनुशासन के फूल देने के लिए तत्पर हैं। बस, चाहिए एक खूबसूरत मन इन फूलों को समेटने के लिए।

जीवन के रंगमंच से

सावन को आने दो...
सावन के आते ही मौसम खुशनुमा हो जा‍ता है। एक तरफ धर्म और दूसरी तरफ रोमांस। यह मौसम जहाँ बरसात के भीगे-भीगे समाँ के कारण मन और भावनाओं को नशीला बना देता है वहीं इन दिनों धर्म का पवित्र वातावरण पूजा-पाठ के लिए प्रेरित करता है। दोनों ही दो अलग तरह की प्रवृत्तियाँ है लेकिन मौसम एक ही है। सावन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने का महीना कहा जाता है जबकि मौसम की ठंडक दो दिलों में प्यार घोलने का काम करती है।
यही वह मौसम है जब भाई-बहन का स्नेह भी आलोड़‍ित होता है रक्षाबंधन के रूप में, देशभक्ति का रस बरसता है 15 अगस्त के रूप में, नागपंचमी के रूप में जीव-जन्तुओं के प्रति संवेदनशीलता जगाता है यह मौसम, वहीं रमजान के पावन दिन भी इसी मौसम में पड़ते हैं।

बहरहाल, हम बात कर रहे थे धर्म और रोमांस की। यूँ तो सीधे-सीधे इन दोनों को एक दूजे का विरोधी माना जाता है। लेकिन सवाल महज नजरिए का है। इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखा जाए तो धर्म और रोमांस एक दूजे के पूरक सिद्ध हो सकते हैं। अगर धर्म को बुरा लगता है तो 'रोमांस' शब्द को हम प्रेम, प्यार, मोहब्बत जैसे पाकीज़ा संबोधन दे सकते हैं।
वास्तव में धर्म की क्रूरता की हद तक जिद, प्यार जैसे शब्द के स्पर्श मात्र से पिघल सकती है और प्यार जैसे शब्द के नाम पर उच्छ्रंखलता को अपनाने वाले अगर धर्म की मर्यादा, पवित्रता, शालीनता और सिद्धांतों को अपना लें तो प्यार की खोई सात्विकता लौट सकती है।
धर्म ने समय-समय पर जहाँ प्यार को गंभीरता दी है वहीं प्यार ने धर्म को कोमल और उल्लासमय बनाने में अपना 'शिष्ट' सहयोग दिया है। धर्म है क्या? धर्म साथ जीने, रहने और आगे बढ़ने के ऐसे अघोषित सिद्धांत हैं जिन्हें हम स्वेच्छा से अपनाते हैं। ऐसे सिद्धांत जिन्हें हम परंपरागत रूप से आत्मसात करते हैं। दुनिया का कोई धर्म मार-काट, हिंसा, बदला, हत्या (इज्जत के नाम पर) जैसी बातों का समर्थन नहीं करता। फिर प्यार जैसे नाजुक नर्म लफ्ज के प्रति हो रही 'ऑनर किलिंग' को धर्म कैसे माना जा सकता है?
मित्रों, सावन के पवित्र महीने में हम पूजा-पाठ, अनुष्ठान, विधि-विधान, दान-पुण्य, व्रत-उपवास सब करें। उम्र के नए साथी प्रेम-मोहब्बत की कसमें खाएँ। भीगे नशीले मौसम का जमकर मजा लें लेकिन एक वादा, सिर्फ एक वादा अपने आपसे करें कि जब धर्म करें तो किसी प्रेमी की हत्या का अधर्म ना करें और जो प्रेम करें वे अपनी भावनाओं को वासनाओं में परिवर्तित करने का अधर्म ना करें।
सावन का खूबसूरत मौसम आने ही वाला है, बस यही कहना है कि धर्म की पवित्रता और रिश्तों की सुंदरता के साथ सावन को आने दो, झूम कर आने दो। यह हम सबके लिए जरूरी है।

बारिश कैसे आती है

मेरे देश में बादलों का रास्ता
- दीपक व्यास
बारिश कैसे आती है यह जानने से पहले यह याद रखो कि "हवाएँ हमेशा उच्च वायुदाब से कम वायुदाब वाले इलाके की ओर चलती हैं।" अब बात फिर शुरू करते हैं। गर्मी के दिनों में भारत के उत्तरी मैदान और प्रायद्वीपीय पठार भीषण गर्मी से तपते हैं और यहाँ निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इसके उलट दक्षिण में हिन्द महासागर ठंडा रहता है। ऐसी भीषण गर्मी के कारण ही महासागर से नमी लेकर हवाएँ भारत के दक्षिणी तट से देश में प्रवेश में करती हैं।

१ जून के करीब केरल तट और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मानसून सक्रिय हो जाता है। हमारे देश में वर्षा ऋतु के अमूमन तीन या चार महीने माने गए हैं। दक्षिण में ज्यादा दिनों तक पानी बरसता है यानी वहाँ वर्षा ऋतु ज्यादा लंबी होती है जबकि जैसे-जैसे हम दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो वर्षा के दिन कम होते जाते हैं।

मानसून के पहले
कभी यूँ भी होता है कि मानसून से पहले ही देश के कुछ हिस्सों में बारिश हो जाती है। ऐसा इन जगहों पर बहुत ज्यादा निम्न दबाव और स्थानीय दशाओं के कारण होता है। मानसून जब आने वाला होता है तो तेज उमस होती है और हवाओं का चलना रुक जाता है। ऐसी स्थिति में अचानक मौसम बदलता है और घनघोर काले बादल आकर छा जाते हैं और बरसते हैं। इसे मौसम विज्ञानी "मानसून प्रस्फोट" कहते हैं।

भारत में मानसून की दो शाखाएँ
हमारे देश भारत में मानसून की दो शाखाएँ होती हैं। एक अरब सागर से उठने वाली और दूसरी बंगाल की खाड़ी से। जब अरब सागर से उठने वाली हवाएँ भारत के तटीय प्रदेशों पर पहुँचती हैं तो पश्चिमी घाट से टकराकर पश्चिमी तटीय भागों में तेज बारिश करती है। यही कारण है कि मुंबईClick here to see more news from this city जैसे तटीय शहरों में बहुत तेज और लगातार बारिश होती है। लेकिन इन घाटों को पार करने के बाद जब ये मानसूनी हवाएँ नीचे उतरती हैं तो इनका तापमान बढ़ जाता है और ये शुष्क होने लगती हैं। इस कारण प्रायद्वीपीय पठार के आंतरिक भाग बारिश से वंचित रह जाते हैं। इसलिए इन भागों को "रेनशेडो एरिया" (वृष्टिछाया प्रदेश) भी कहा गया है। यही वजह है कि तटीय शहर मंगलोर में वर्षा 280 सेंटीमीटर तक होती है जबकि बेंगलुरू में केवल 50 सेमी तक ही वर्षा होती है।

बंगाल की खाड़ी और मानसूनी हवाएँ
वैसे हमारे देश के अधिकांश भागों में वर्षा बंगाल की खाड़ी के उठने वाली हवाओं से होती है। यह दो शाखाओं में बँट जाती है। पहली शाखा गंगा के डेल्टा प्रदेश को पार कर मेघालय की गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों से टकराकर भारी बारिश करती है। ये पहाड़ियाँ एक त्रिकोण या कीप की आकृति बनाती हैं और इसलिए पानीदार हवाओं को ट्रेप कर लेती हैं। यही कारण है कि देश ही नहीं, विश्व में सबसे ज्यादा बारिश यहीं होती है।

चेरापूँजी (1012 सेमी) और मासिनराम (1221 सेमी) जैसे विश्व के सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र यहीं हैं। इसकी दूसरी शाखा सीधे हिमालय पर्वत की श्रेणियों से टकराती है तथा पश्चिम की ओर हिमालय पर्वत के साथ-साथ चलना शुरू कर देती है।

देश में मानसून आता है और वर्षा के दिन लाता है। 'मानसून' शब्द अरबी भाषा के 'मौसिम' से बना है जिसका अर्थ है ऋतु का बदलना। यह जैसे-जैसे पूर्व में उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ना शुरू करती है। हवाओं में नमी कम होती है, लेकिन पश्चिम की ओर जाने पर पटना और इलाहाबाद में 105 सेमी बारिश और दिल्ली तक मात्र 56 सेमी बारिश हो पाती है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के तटीय भाग बंगाल की खाड़ी के प्रभाव से ज्यादा वर्षा पा जाते हैं जबकि तमिलनाडु का कोरोमंडल तट बंगाल की खाड़ी के समानांतर होने से शुक्र रह जाता है। यहाँ लौटते हुए मानसून से नवंबर-दिसंबर में बारिश होती है।

राजस्थान में सूखा क्यों?
अरब सागर से उठने वाली मानसूनी हवाएँ नर्मदा और ताप्ती की घाटियों से होकर भारत के मध्य भाग में प्रवेश करती हैं और रुकावट न होने के कारण ये नागपुर के पठार तक ली जाती हैं। अरब सागर से उठने वाली मानसूनी हवाओं की एक शाखा राजस्थान की तरफ भी बढ़ती है। पर यहाँ जो अरावली पर्वत खड़ा है वह उत्तर से दक्षिण दिशा में खड़ा है इसलिए मानसूनी हवाएँ इस पर्वत के पास से गुजर जाती हैं और ऊपर हिमालय की पहाड़ियों से टकराकर बारिश करवाती हैं।
दोस्तो, अगर अरावली पर्वत उत्तर-दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व से पश्चिम दिशा में फैला होता तो अरब सागर से उठने वाली पानी भरी हवाओं को रोककर राजस्‍थान में बरसा देता। तब राजस्‍थान भी रेगिस्तानी इलाका न होकर हरा-भरा क्षेत्र होता।

यूँ रहें स्वस्थ

सेहत बनाती हैं सूरज की किरणें
सुबह की गुनगुनी धूप भला किसे नहीं सुहाती। लेकिन ये धूप सर्दियों में ही भाती है अन्य मौसम सें नहीं। अगर हर मौसम में कुछ देर धूप की सिंकाई ली जाए तो सेहत की दृष्टि से लाभदायक होता है। सुबह खुले बदन 20 मिनट तक सूर्य किरणों में बैठकर हर ऋतु में स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।

वैज्ञानिक तथ्य
भारतीय धर्म-दर्शन अनगिनत सदियों से सूर्य को जीवनदाता मानता आया है,किंतु अब वैज्ञानिक भी सूर्य की विलक्षण रोग-निवारक शक्तियों का लोहा मानने लगे हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ.डब्ल्यू.एम. फ्रेजर ने अपनी पुस्तक 'टेक्स्ट बुक ऑफ पब्लिक हेल्थ'में लिखा है कि सूर्य की किरणों में जीवाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति है।
सूर्य किरणों में विटामिन-डी पाया जाता है,जो मानव शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक है। इसी तरह फ्रांस के हृदय रोग विशेषज्ञ मार्सेल पोगोलो का तो यहाँ तक मानना था कि सूर्य और मानव हृदय का अटूट संबंध है। उनके अनुसार सौर-मंडल में तूफानों के आने के पहले पड़ने वाले दिल के दौरों की संख्या में तूफानों के आने के बाद चार गुना ज्यादा इजाफा हो जाता है।
रोगों में फायदेमंद
अमेरिकी डॉक्टर हानेश का मानना है कि शरीर में लौहतत्व की कमी,चर्मरोग,स्नायविक दुर्बलता, कमजोरी,थकान,कैंसर,तपेदिक और मांसपेशियों की रुग्णता का इलाज सूर्य किरणों के समुचित प्रयोग से किया जा सकता है,वहीं डॉ.चार्ल्स एफ.हैनेन और एडवर्ड सोनी ने अपनी रिसर्च से यह सिद्ध कर दिखाया है कि सूर्य किरणें बाहरी त्वचा पर ही अपना प्रभाव नहीं डालतीं,बल्कि वे शरीर के अंदरुनी अंगों में जाकर उन्हें स्वस्थ बनाने में कारगर भूमिका निभाती है।
सुझाव
* पसीना आने के बाद धूप में नहीं बैठना चाहिए।
* दोपहर बाद सूर्य किरणों में बैठने का उतना महत्व नहीं है।
* बारिश के मौसम की धूप बीमार कर सकती है। इस धूप से बचें।
* दोपहर के 12 बजे से 3 बजे तक की धूप सिर पर ना आने दें यह नुकसानदेह है।
* सुबह की कोमल धूप ही सेहत के लिए अच्छी होती है।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

तुलसी : गुणकारी औषधि


तुलसी भारतीय मूल की ऐसी औषधि है जिसका सांस्कृतिक महत्व है। यहाँ घर में इसके पौधे की उपस्थिति को दैवीय उपहार और सौभाग्यशाली समझा जाता है। भारत में पाई गई यह अब तक की सबसे महत्वपूर्ण और चमत्कारिक औषधि है।

तुलसी शरीर, मन और आत्मा की पीड़ा हरने वाली है। कहा जाता है कि तुलसी में दाह को कम करने, जीवाणुनाशक तथा मूत्रवर्धक गुण होते हैं, जो संक्रमण को दूर करने के साथ-साथ तनाव और अन्य बीमारियों के खिलाफ प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के मुताबिक तुलसी में बीमारियों को ठीक करने की जबर्दस्त क्षमता है।

यह सर्दी-जुकाम के प्रभाव को कम कर देती है और बुखार कम करने साथ मलेरिया, चिकन पॉक्स, मीजल्स, एन्फ्लूएंजा और अस्थमा जैसी बीमारियों को भी ठीक कर देती है। तुलसी खासतौर पर दिल की रक्त वाहिकाओं, लीवर, फेफड़े, उच्च रक्तचाप तथा रक्त शर्करा को भी कम करने में मददगार साबित होती है।
स्वस्थ और सफेद दाँत पाने के लिए तुलसी और नींबू के रस को मिलाकर दाँतों की मालिश करें। यही रस चेहरे की काँति बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कान का तेज दर्द होने पर इसकी बूँदें रात को सोते समय कान में टपका लें।

तुलसी की पत्तियों का एक गिलास रस दिल के लिए टॉनिक का काम करता है। इसे रोज सुबह पीना चाहिए।

आँखों के संक्रमण यानी कंजक्टिवाइटिस से निपटने के लिए एक कटोरी में तुलसी की दो-तीन पत्तियाँ रात को भिगो दें। सुबह इससे आँख धो लें।

कर्म

नाम नहीं काम बोलता है
फेमस आर्टिस्ट और फिटनेस एक्सपर्ट नवाज मोदी सिंघानिया का मानना है कि आपका काम ही आपके बारे में बताता है। बकौल नवाज, उनके फेमस लास्ट नेम सिंघानिया ने उनकी पापुलरिटी में कोई मदद नहीं की, बल्कि उनके काम से लोग उन्हें जानते हैं।

नवाज साफ़गोई से कहती हैं कि उन्होंने कभी भी कुछ सीखने में शर्म महसूस नहीं की, बल्कि किसी काम को पूरी लगन से सीखा। ढेर सारे सीनियर आर्टिस्ट्स ने उन्हें प्रभावित भी किया। नवाज बताती हैं कि विकास भट्टाचार्य, बोस कृष्णमाचारी, रामेश्वर बारूता और प्रशांत रॉय जैसे आर्टिस्टों के काम उन्हें बहुत पसंद है।

शादी के लगभग एक दशक बाद भी नवाज का मानना है कि उनके पति गौतम सिंघानिया (रेमंड्स) वास्तव में उनकी जिंदगी का आधा हिस्सा हैं। उनका कहना है कि गौतम काफ़ी सपोर्टिग हैं और पर्सनल व प्रोफेशनल, दोनों ही तौर पर सपोर्ट करते हैं। वे चाहते थे कि मैं घर में ही अपना स्टूडियो बना लूं, लेकिन मैंने अपनी बेटी के डर से ऐसा नहीं किया। मुझे डर था कि मेरी चार साल की बेटी रंगों के साथ खेलकर अफरा-तफरी मचा देगी।

उन्होंने बताया कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर के स्पेस से बाहर आना जरूरी था। नवाज एक अच्छी बात यह बताती हैं कि उनके पति गौतम बिजी शेडच्यूल होने के बावजूद उनके लिए हमेशा समय निकालते हैं और वे भी उन्हें अपने काम के साथ-साथ दूसरे करिकुलम के बारे में बताती रहती हैं। वो काफी आराम से उनकी बात को सुनते हैं और कभी-कभी अपने व्यू भी देते हैं। नवाज के अनुसार, उन्हें दुनिया भर में घूमने से काफी प्रेरणा मिलती है। वे कहती हैं, आप देख सकते हैं कि कितनी इंस्पाइरिंग और ख़ूबसूरत चीजें इस धरती पर हैं। कौन नहीं चाहेगा कि उन्हें किसी भी तरह कैनवास पर कैप्चर किया जाए। कलाकार- मन तो जरूर चाहेगा। फिलहाल, नवाज बेहतर तरीके से एक परफेक्ट वाइफ और प्रॉमिसिंग आर्टिस्ट के रोल बढ़िया ढंग से प्ले कर रही हैं।

गंगापुत्र भीष्म कौन थे पिछले जन्म में?


गंगापुत्र भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था अर्थात उनकी इच्छा के बिना यमराज भी उनके प्राण हरने में असमर्थ थे। वे बड़े पराक्रमी तथा भगवान परशुराम के शिष्य थे। भीष्म पिछले जन्म में कौन थे तथा उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया जिनके कारण उन्हें मृत्यु लोक में रहना पड़ा? इसका वर्णन महाभारत के आदिपर्व में मिलता है।
उसके अनुसार-गंगापुत्र भीष्म पिछले जन्म में द्यौ नामक वसु थे। एक बार जब वे अपनी पत्नी के साथ विहार करते-करते मेरु पर्वत पहुंचे तो वहां ऋषि वसिष्ठ के आश्रम पर सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली नंदिनी गौ को देखकर उन्होंने अपने भाइयों के साथ उसका अपहरण कर लिया। जब ऋषि वसिष्ठ को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने द्यौ सहित सभी भाइयों को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। जब द्यौ तथा उनके भाइयों को ऋषि के शाप के बारे में पता लगा तो वे नंदिनी को लेकर ऋषि के पास क्षमायाचना करने पहुंचे। ऋषि वसिष्ठ ने अन्य वसुओं को एक वर्ष में मनुष्य योनि से मुक्ति पाने का कहा लेकिन द्यौ को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए लंबे समय तक मृत्यु लोक में रहने का शाप दिया।
द्यौ ने ही भीष्म के रूप में भरत वंश में जन्म लिया तथा लंबे समय तक धरती पर रहते हुए अपने कर्मों का फल भोगा।

...और दूर हो गया गरूढ़ का भ्रम


राम-रावण के युद्ध के समय मेघनाद द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश में बंधक बना दिया गया। श्रीराम और लक्ष्मण को अचेत अवस्था में देखकर राम सेना और सभी देवता दुख और चिंता में डूब गए। इस समय नारदजी ने गरुड़ देव को श्रीराम और लक्ष्मण के नागपाश काटने के लिए भेजा और गरुड़ देव ने तुरंत ही वहां जाकर दोनों भाइयों को नागपाश से मुक्त करा दिया।

गरुड़ देव अपना कार्य पूर्ण करके जा रहे थे तभी उनके मन शंका उत्पन्न हुई कि क्या ये ही प्रभु श्री विष्णु के अवतार ही है जो साधारण मनुष्य की भांति नागपाश के बंदी होकर अचेत अवस्था को प्राप्त हो गए थे। यह सोचते हुए वे नारदजी के समक्ष पहुंचे और अपने मन की शंका उन्हें बताई। नारदजी ने उन्हें श्री हरि की माया के वश में जानकर उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज दिया। गरुड़ देव ने ब्रह्माजी से भी यही प्रश्न किया, इसके जवाब में ब्रह्मा ने उन्हें शिवजी के पास जाने की सलाह दी। अब गरुड़ देव भगवान शंकर के पास पहुंच गए। शिवजी ने भी गरुड़ को श्री हरि की माया के वश में जानकर उन्हें काकभुसुण्डी के पास भेजा और वहां रामायण का श्रवण करने को कहा। गरुड़ तुरंत ही काकभुसुण्डी के पास पहुंच गए जहां उन्होंने श्रीराम का जीवन चरित्र सुना जिससे उनका भ्रम दूर हो गया। अब उनकी समझ आ गया था कि श्रीराम नारायण ही है जो मानव रूप में जन्मे होने के कारण साधारण मनुष्य के स्वभाव की माया रच रहे हैं।

भागवत-7 : सबका उद्धार करती है भागवत


भागवत कहती है कि योगियों को जो आनंद समाधि में मिलता है, गृहस्थों को वही आनंद घर में बैठकर भागवत से मिल सकता है। ये भागवत की मौलिक घोषणा है।

भागवत ने बोला आपसे घर नहीं छूटता तो कोई बड़ा भारी काम करने की आवश्यकता नहीं। घर में रहें, संसार में रहें। घर में रहना कोई बुरा नहीं है। हां हमारे भीतर घर रहने लगे वहां से झंझट चालू होती है। भागवत इस अंतर को बताएगी कि क्या फर्क है संसार में रहने में और संसार अपने भीतर रहने में। इसलिए भागवत ने कहा है कुछ छोडऩे की आवश्यकता नहीं, मेरे साथ रहो। ऐसे कई प्रसंग आएंगे कि भागवत ये साबित कर देगी कि यहीं स्वर्ग है और यहीं नर्क है। ये तो हम ही लोग हैं जो इसको नर्क बनाए जा रहे हैं।
इस भागवत शास्त्र की रचना कलयुग के जीवों के उद्धार के लिए की गई है। श्रीमद्भागवत में एक नवीन मार्गदर्शन कराया गया है। घर में रहकर भी आप भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं, प्राप्त कर सकते हैं परंतु आपका प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय हो जाना चाहिए। गोपियों का प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय बन गया था।
भागवत में कहा है घर में रहो, अपने स्वभाव में रहो और संसार में फिर परमात्मा को प्राप्त कर सकते है। घर में रहें या बाहर अपनों से मिलें या परायों से। लेकिन जरा मुस्कुराइए...

रविवार, 25 जुलाई 2010

भागवत-6 : भगवान का पहला स्वरूप है सत्य


सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे। तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम:।।
ये पहला श्लोक है भागवत का। प्रथम श्लोक का प्रथम शब्द है सच्चिदानंदरूपाय। भागवत आरंभ हो रहा है और भागवत ने घोषणा की सत, चित और आनंद। भगवान के तीन रूप हैं सच्चिदानंद रूपाय सत, चित और आनंद। भगवान के रूप को प्रकट किया। भगवान तक पहुंचने के तीन मार्ग है सत, चित और आनंद। इन तीन रास्तों से आप भगवान तक पहुंच सकते हैं।
आप देखना चाहें भगवान का स्वरूप क्या है तो भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट नहीं होंगे। भगवान का पहला स्वरूप है सत्य।

जिस दिन आपके जीवन में सत्य घटने लगे आप समझ लीजिए आपकी परमात्मा से निकटता हो गई। सत भगवान का पहला स्वरूप है फिर कहते हैं चित स्वयं के भीतर के प्रकाश को आत्मप्रबोध को प्राप्त करिए। फिर है आनंद। देखिए सत और चित तो सब में होता है पर आपमें जो है उसे प्रकट होना पड़ता है। वैसे तो आनंद हमारा मूल स्वभाव है पर हमको आनंद निकालना पड़ता है मनुष्य का मूल स्वभाव है आनंद फिर भी इसके लिए प्रयास करना पड़ता है।
सत, चित, आनंद के माध्यम से भागवत में प्रवेश करें। यहां भागवत एक और सुंदर बात कहती है भागवत की एक बड़ी प्यारी शर्त है कि मुझे पाने के लिए, मुझ तक पहुंचने के लिए या मुझे अपने जीवन में उतारने के लिए कुछ भी छोडऩा आवश्यक नहीं है। ये भागवत की बड़ी मौलिक घोषणा है। इसीलिए ये ग्रंथ बड़ा महान है। भागवत कहती है मेरे लिए कुछ छोडऩा मत आप।
संसार छोडऩे की जरूरत नहीं है। कई लोग घरबार छोड़कर, दुनियादारी छोड़कर पहाड़ पर चले गए, तीर्थ पर चले गए, एकांत में चले गए तो भागवत कहती है उससे कुछ होना नहीं है। मामला प्रवृत्ति का है। प्रवृत्ति अगर भीतर बैठी हुई है तो भीतर रहे या जंगल में रहें बराबर परिणाम मिलना है।

ऐसे हुई कौरवों की उत्पत्ति


धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे। उनमें दुर्योधन सबसे ज्येष्ठ था। दुर्योधन का जन्म कैसे हुआ तथा उसके शेष भाइयों का नाम क्या था? महाभारत के आदिपर्व में इस संदर्भ में विस्तृत उल्लेख मिलता है।

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दो वर्ष तक गर्भवती रही लेकिन संतान का जन्म न हुआ। भयभीत होकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान मांस-पिण्ड निकला। यह बात जब महर्षि व्यास को पता चली तो उन्होंने गांधारी से कहा कि एक सौ एक कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो तथा इस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़को।
जल छिड़कने पर उस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। व्यासजी की आज्ञानुसार गांधारी ने प्रत्येक कुण्ड में मांस पिण्ड के टुकड़े डाल दिए। समय आने पर उन्हीं मांस-पिण्डों से पहले दुर्योधन और बाद में शेष पुत्र व एक पुत्री का जन्म हुआ।
धृतराष्ट्र के शेष पुत्रों के नाम युयुस्तु, दु:शासन, दुस्सह, दुश्शल, जलसंध, सम, सह, विंद, अनुविंद, दुद्र्धर्ष, सुबाहु, दुष्प्रधर्षण, दुर्मर्षण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, कर्ण, विविंशति, विकर्ण, शल, सत्व, सुलोचन, चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, दुर्मद, दुर्विगाह, विवत्सु, विकटानन, ऊर्णानाभ, सुनाभ, नंद, उपनंद, चित्रबाण, चित्रवर्मा, सुवर्मा, दुर्विमोचन, आयोबाहु, महाबाहु, चित्रांग, चित्रकुण्डल, भीमवेग, भीमबल, बलाकी, बलवद्र्धन, उग्रायुध, सुषेण, कुण्डधार, महोदर, चित्रायुध, निषंगी, पाशी, वृन्दारक, दृढ़वर्मा, दृढ़क्षत्र, सोमकीर्ति, अनूदर, दृढ़संध, जरासंध, सत्यसंध, सद:सुवाक, उग्रश्रवा, उग्रसेन, सेनानी, दुष्पराजय, अपराजित, कुण्डशायी, विशालाक्ष, दुराधर, दृढ़हस्त, सुहस्त, बातवेग, सुवर्चा, आदित्यकेतु, बह्वाशी, नागदत्त, अग्रयायी, कवची, क्रथन, कुण्डी, उग्र, भीमरथ, वीरबाहु, अलोलुप, अभय, रौद्रकर्मा, दृढऱथाश्रय, अनाधृष्य, कुण्डभेदी, विरावी, प्रमथ, प्रमाथी, दीर्घरोमा, दीर्घबाहु, महाबाहु, व्यूढोरस्क, कनकध्वज, कुण्डाशी और विरजा। धृतराष्ट्र की पुत्री का नाम दुश्शला था।

पिता की आज्ञा से माता का मस्तक तक काट दिया


त्रेता युग में विष्णु के अवतार परशुराम हुए। परशुराम को माता-पिता भक्त के रूप में जाना जाता है। उनके पिता का ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं।
एक दिन ऋषि जमदग्नि ने रेणुका से पूजा के जल लाने के लिए कहा। रेणुका जल लेने नदी की ओर चल दीं। नदी पर रेणुका ने देखा कोई देवता अप्सराओं के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था, उन्हें देखकर रेणुका का मन भी उस देव पुरुष की ओर आकर्षित होने लगा। ऐसे ही बहुत समय बीत गया और ऋषि की तपस्या का समय निकल गया। रेणुका जब काम वासना से बाहर आई तब उसे पति द्वारा जल मंगाने की बात याद आई। रेणुका जल्द ही जल लेकर पति के समीप जा पहुंची। ऋषि त्रिकाल दर्शी थे उन्हें तुरंत ही समझ आ गया कि रेणुका किसी परपुरुष के प्रति कामवासना में डूब गई थीं। ऋषि ने क्रोधित होकर अपने पुत्रों से रेणुका का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दे दिया। परंतु किसी भी पुत्र ने माता रेणुका के विरुद्ध पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। तब ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को आदेश दिया कि वह माता सहित सभी भाइयों को तुरंत मार डाले। परशुराम ने अक्षरश: पिता की आज्ञा पालन किया और अपने फरसे से माता सहित सभी भाइयों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इससे पिता जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम को वर मांगने की आज्ञा दी। परशुराम जानते थे कि जमदग्नि मृत व्यक्ति को जीवित करने की विद्या जानते है अत: उन्होंने पुन: माता और भाइयों को जीवित करने का वर मांग लिया और उनकी स्मृति से यह बात भी भुलवा दी कि परशुराम ने उन्हें मार डाला था।
उसी काल में एक क्षत्रिय राजा था सहस्रार्जुन जिसने कामधेनु गाय के लालच में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। पिता के वध से क्रोधित हो परशुराम ने सत्रह बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया।

मन का लेखा


रात को बहू ने उठकर ससुर साहब के लिए खाना परोसा, और सुबह-सुबह बहू को घर के संवाद पुल पर लिखा मिला - ‘जीती रहो बहू, तुम्हारी फिक्र ने दिल जीत लिया।’

मां को सुबह थका-थका पाया, तो बेटा ऑफिस जाते-जाते लिख गया - ‘मां, दिन में थोड़ा आराम कर लीजिएगा।’ पहले जिस संवाद पुल बने बोर्ड के पास बहू और बेटा खड़े मुस्कुरा रहे थे, वहीं आज मां की आंखें छलक रहीं थीं।

रोज़ाना की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कई ऐसे मौके आते हैं, जब हम अपनों से अपनापन जता नहीं पाते, कह नहीं पाते। नतीजतन वह बातें मन की कंदराओं में ही दम तोड़ देती हैं। बोर्ड पर लिख देना कि ‘अपना ध्यान रखना, मुझे चिंता रहती है’ या ‘मम्मीजी आप खाना खाकर आराम कर लीजिए’ या फिर ‘थैंक्स पापाजी, आपने मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा दिया’ वगैरह-वगैरह रिश्तों की आत्मीयता को दोगुना कर सकता है।

हमेशा अच्छा कहने और अच्छा कहने का मौका ढूंढ लेने की भी आदत पड़ जाती है। शिकायतें भी बस सामान्य तौर पर कह ली जाती हैं। छोटे भाई ने बड़े के लिए लिखा ही था- ‘क्या दादा, आ जाते मेरे मैच पर, तो मेरा हौसला बढ़ता।’

सुबह दादा ने उसे तुरंत मना भी लिया। हम हमेशा चाहते हैं कि कोई हमारा ध्यान रखे, उसे हमारी चिंता हो और कई बार, हम जताना भी चाहते हैं कि हम उनकी कितनी चिंता करते हैं, लेकिन जता नहीं पाते। इन दोनों ही परिस्थितियों में लिखकर व्यक्त कर देना, मन की उधेड़बुन से निकलने का आसान रास्ता बन जाता है। मन की अनकही, को कहने का माध्यम आप घर में ही पा सकती हैं।

सरगम



रात्रि का अंतिम प्रहर। वह बैठी है। उसके जागने का इंतजार करती हुई। हर बार उसका हाथ उसकी तरफ़ उठता फिर वापस हो जाता। इसी मुद्रा में सुबह का एक और प्रहर बीत गया। अंतत: उसका धैर्य जाता रहा।
उठ बेटा।

उसने बच्ची की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा। नींद आ रही है। कहकर बच्ची कुनमुनाई और उसने अपनी नींद भरी आंखें बंद कर लीं। कब तक सोएगी? उसकी आवाज में हल्की झुंझलाहट थी।

बस थोड़ी देर और। बच्ची ने चादर से चेहरा ढंक लिया और पेट के बल लेट गई। चादर में लिपटी उसकी देह रूई की तरह लग रही थी। पतली, छोटी..कोमल सी। ढीठ हो गई है तू तो। चार दिन थोड़ा कम सो लेगी तो क्या हो जाएगा? मास्टर जी आने वाले हैं थोड़ा-बहुत तो याद कर ले। तैयार हो जा। इतना बड़ा कॉम्पिटीशन है।

रीना ने कुछ सुने सुनाए शब्दों को रट लिया था। वह कोशिश करती थी कि उन तमाम शब्दों को उसी तरह बोला जाए। पिछली कुछ रातों ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी थी, ऐसे मनोभाव जीवन का पहला अनुभव था। स्वयं को लेकर वह कभी भी महत्वाकांक्षी नहीं रही थी। न ही उसने कभी ऐसे ऊंचे सपने देखे थे पर शायद हृदय में वही बीज स्वरूप सुसुप्त अवस्था में रहे होंगे। तभी तो वह वृक्ष रूप में बच्ची को देख रही थी।

जब से बच्ची, जिसे सब प्यार से ओमी कहते हैं- का चयन एक संगीत प्रतियोगिता के लिए हुआ था, तब से घर का पूरा माहौल ही बदल गया था। ख़बर जो ख़ुशियां लेकर आई थी। ख़ुशियां जो भविष्य के सपनों को बढ़ाती जा रही थी..अमरबेल की तरह..। लग रहा था स्वप्नों का अंतहीन संसार रच-बस गया है चारों तरफ़।

ख़ुशियां, सपनों और उल्लास की बारिश होने लगी थी। रीना के मन में न जताते हुए भी स्वयं को विशिष्ट होने का एहसास भरने लगा था। रीना ने ओमी के साथ-साथ स्वयं पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया था। जितने पैसे जोड़कर, छुपाकर, यहां वहां जमा करके रखे थे सब निकाल लिए थे..। अच्छी साड़ियां, चूड़ियां, बिंदी, गले की मालाएं। टी.वी पर माता-पिता को दिखाते हैं, तो जाहिर है उसे अच्छा दिखना चाहिए। घर को व्यवस्थित, सुंदर और सजाने की जरूरत न थी। घर के नाम पर एक छोटी सी झुग्गी है, जिसमें जरूरत भर की चीजों हैं।

रीना ने अब तक जो देखा था, उससे वह समझ गई थी कि झुग्गी जैसी है वैसी ही रहने दी जाए, क्योंकि घर की स्थिति देखकर ही तो लोगों का मन बदलता है। दया और करुणा के भाव पैदा होते हैं..। लोग भावनात्मक ढंग से जुड़ते हैं..फिर जाति, प्रांत और भाष पर आते हैं और इन्ही के नाम पर आंसुओं की धारें बहती हैं।

वोटों की बरसात होती है। रीना को तो कुछ सूझता ही नहीं है.. वह तो रात-दिन आने वाले समय को जीती रहती है।

सपने..उसकी आंखों में दीपों की तरह जलने लगे..। ओमी को टीवी पर गाते देखना..ऑडियंस की वाहवाही, वंस मोर, वंस मोर की आवाज, जजों की वाहवाही..दुनिया भर से प्रशंसा मिलना..और हर बार अगले दौर में पहुंचना..सोच-सोचकर वह रोमांचित हो उठती..। उसकी आंखों से नींद उड़ जाती। मन तितलियों की तरह उड़ने लगता। सब कुछ बदल जाएगा। दुनिया भर से लोग कैसे-कैसे मदद करते हैं। ओमी ने एक बार ठीक से गा दिया और अपना प्रभाव जमा लिया, तो आगे भी मौक़ा मिलता रहेगा।

रीना इस समय एक ऐसी मां की भूमिका निभाना चाहती थी, जो अपनी बेटी के लिए हर क़दम उठाने के लिए तैयार थी। जो सब कुछ करने का माद्दा रखती थी..। वह दुनिया को बताना चाहती थी कि..उसके पास साधन नहीं हैं, सुविधाएं नहीं हैं..पैसा नहीं है तालीम देने के लिए। हां सपने हैं.., हौसले हैं..और है संगीत से लगाव..। वह ऐसे ही बोलेगी। ऐसे ही..। रीना मन ही मन एक- एक शब्द रटती, दोहराती फिर..। मन ही मन मुस्कराती..। बस ये लड़की कुछ गड़बड़ न करे। इसे ठीक ठाक रहना चाहिए।

अभी दस मिनट भी नहीं हुए होंगे कि वह सोचते-सोचते फिर ओमी के पास आ गई, उठ मेरी रानी, उठ ना, देख कितना व़क्त निकल गया। तू भाग्यशाली है कि हजारों बच्चों के बीच तेरा सिलेक्शन हुआ। ओमी ने पलकें खोलीं..। अपनी मां को एकटक देखती रही..। मां ने कितने अंग्रेजी के शब्द रट लिए हैं। मां का बोलने का अंदाज बदल गया था। जब तू पैदा हुई थी, तो मुझे सपना आया था। रीना उसे काल्पनिक कहानी सुनाने लगी। कैसा सपना? ओमी जिज्ञासु भाव से देखने लगी।

देवी मां का सपना। सुंदर देवी मां। ओमी उसकी गोद में ढुलक गई। उसके बालों में से गंध आ रही थी। जुओं और डैंड्रफ ने नाक में दम कर रखा था। दोनों हाथों की उंगलियों से वह सिर खुजलाए जा रही थी। लगातार बालों में उसकी उंगलियां घूम रही थीं। तेरे बाल कटवाने हैं, शाम को। वहां बालों में उंगली तक न लगाना, समझी। पर पहले मास्टर जी से सीख ले। आज कोई ग़लती मत करना। ख़ूब ध्यान से सुनना..। समझी..। मैं क्या करूं.. भूल जाती हूं। ओमी ने भोलेपन से कहा। वहां जाकर, कैमरों के सामने..गुरुओं के सामने घबराना नहीं..?

मुझसे नहीं गाया गया तो? ओमी ने मुंह बनाकर कहा। वह ख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थी। क्यों नहीं गाया जाएगा..? ठीक से याद करने की आदत डाल। इस बार रीना झुंझला पड़ी।

देख..दो चार राउंडों से निकल गई न तो कितनी चीजों का ढेर लग जाएगा। कपड़े, गिफ्ट। तरह-तरह के सामान। कितने लोग पहचानने लगते हैं। देखती नहीं है, जब गाने वाले बच्चे अपने घर आते हैं तो हजारों लोग उनके साथ होते हैं। उनका कैसा स्वागत किया जाता है। बड़े-बड़े लोग मिलते हैं उनसे। नेता, मंत्री लोग तक मिलते हैं।

ऐसे
मिल सकती है तू। किसी नेता या हीरो से। सबके घर ले जाते हैं। सोच ले..हमारे शहर में भी तेरी फेरी लगेगी।
वे तेरे स्कूल जाएंगे..तेरी सहेलियों को दिखाएंगे। हमारा घर दिखाया जाएगा। मौक़ा भी आना था, जब वह उन देखे गए दृश्यों का स्वयं भी हिस्सा बनने जा रही थी। क्या ईश्वर ऐसे भी मेहरबान होता है। रीना मन ही मन प्रार्थना करती, हे भगवान। इस लड़की को सद्बुद्घि देना। ये ठीक रहे। ठीक से गा दे।

उसने कितने मंदिरों में कितना कुछ चढ़ाने का संकल्प ले लिया था। कितनी जगह जाकर मनौतियां पूरी करने की क़समें खा ली थीं। सीखने-सिखाने, रटने-रटाने की कला में वह ओमी को पारंगत कर देना चाहती थी। वह ओमी को समझाती, दुलारती, याद करवाती, सिखाती। ख़ूब बाते करना.. शरमाना नहीं..।

छोटे-छोटे बच्चे कैसी पटर-पटर बाते करते हैं। सबके पांव छूना और बताना कि तू क्या कर रही है? कहां रहती है? तेरे माता-पिता क्या करते हैं? रीना उसे एक एक शब्द रटा देना चाहती थी। वह जीवन में आए इस मौक़े को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी।

ओमी ने अपनी मां के इस रूप को पहली बार देखा था, इसलिए वह आश्चर्य में डूबी, उसकी एक-एक बात को ध्यान से सुनती। समझने की कोशिश करती। उसकी मां इतनी होशियार है और इतनी ख़ुश हो सकती है, यह भी ओमी ने पहली बार देखा था।

स्कूल। ओमी ने याद दिलाया। मैं तेरी टीचर से बात कर लूंगी। जब तू टीवी पर गाएगी, तो तेरी टीचर भी तो ख़ुश होगी। कुछ न कहेगी वह। यह तो स्कूल के लिए गर्व की बात है। परीक्षा। उसने छमाही परीक्षा की याद दिलाई, जो अगले ह़फ्ते से थी। अब बड़ी परीक्षा की चिंता हो रही है।

रीना ने डपटते हुए कहा, बाद में दे देना- कुछ दिनों की तो बात है। छुट्टी के लिए आवेदन लगवा देंगे। ओमी को समझ में नहीं आ रहा था कि जो मां पहले स्कूल भेजने के लिए सुबह से पीछे पड़ी रहती थी, वही अब स्कूल और पढ़ाई के नाम पर उसे यूं झिड़क रही है, और छूट दे रही है। मेरा क्या... नहीं जाना स्कूल। वह मन ही मन ख़ुश हो उठी।

फिर कुछ दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला। ओमी को तो होश ही नहीं रहा..कि वे सबसे कठिन जानलेवा शरीर तोडू, थका देने वाले दिन थे। अभ्यास के दिन, अभ्यास के नाम पर सुबह से लेकर रात तक रीना ओमी के साथ लगी रहती। कभी उसे टॉफियां दी जातीं, तो कभी गुड़िया, तो कोई नई चीजें, तो कभी याद करवाने के लिए तमाचा जड़ दिया जाता उसके गालों पर..। उसका खेलना-कूदना..मुहल्ले में निकलना सब बंद था।

गले को ख़राब करने वाली सारी चीजें प्रतिबंधित थीं। ओमी डरी-सहमी और स्तब्ध सी देखती रह जाती कि आख़िर उसे क्यों और किस बात की सजा दी जा रही है? वह सोते-सोते बड़बड़ाती..खाते-खाते उसके हाथ रुक जाते..बैठे-बैठे वह ऊंघने लगती..या गाते-गाते एकाएक सहम जाती। वह जितना याद कर सकती है, करती है, जितना गा सकती है, गाती है।

देख बेटा, थोड़ा और मेहनत कर ले। हमारा भाग्य बदल जाएगा। हम सब इस नरक से निकल जाएंगे। पैसे मिलेंगे, तो मैं बहुत अच्छे स्कूल में तुझे डलवा दूंगी। तेरे नाम खाता खोलकर पैसा जमा कर दूंगी, जो तेरे ही काम आएगा।..और..तू आगे गाती रही, तो सोच फिल्मों में भी गाने का मौक़ा मिलेगा। तूने देखा न गुरु लोग बच्चों को गवाते हैं या नहीं? फिर वह भावुक हो उठती..मेरी तो क़िस्मत फूटी थी, जो मैं बचपन से लेकर आज तक दूसरों के घरों में बर्तन-कपड़े का काम कर रही हूं।

...पर तू तो कुछ बन सकती है। नाम कमा सकती है। पैसे भी। रीना अपने चंद आंसू पोंछती..। शब्दों में अपनी पीड़ा..चिंता..प्यार और करुणा घोलती। ओमी को पुचकारती, थपकाती, समझाती और उसे इतनी ख़ूबसूरत, समृद्घ और रंगीन भविष्य की तस्वीरें दिखाती, जिनमें ओमी किसी राजकुमारी की तरह नजर आती। उसका बचपन किसी सपने की तरह बढ़ने लगता।

कब वे तमाम दिन निकल गए..पता ही नहीं चला। ओमी जितना जिस तरह से गा सकती थी गाया, जितना सीख सकती थी सीखा.. जितना अभिनय कर सकती थी किया..उन तमाम बच्चों, ऑडियंस के बीच और निर्णायकों के बीच, वह स्वयं को जिस तरह से प्रस्तुत कर सकती थी किया.. नतीजा.. वो तो आना ही था.. ओमी पहले ही दौर में बाहर हो गई। मां पर जैसे वज्रपात हो गया।

आंसुओं की धार उसके गालों को भिगोती जा रही थी, जिसे सारी दुनिया देख रही थी, सिवाय ओमी के। ओमी चुप थी। न उससे रोते बनता था, न हंसते। न कुछ कहते हुए। गीत संगीत, स्वर.. सब उसका साथ छोड़ चुके थे।

एक खूबसूरत भविष्य अपनी चकाचौंध दिखाकर अदृश्य हो गया था.. यह दुनिया उसकी अपनी नहीं थी.. इस दुनिया से उसका आंतरिक रिश्ता नहीं बना था, इसलिए उसके टूटने का असर भी उस पर नहीं पड़ा था। हां, रीना ने उस दुनिया में प्रवेश कर लिया था और वह दुनिया उसके भीतर.. बहुत भीतर जाकर बैठ गई थी। लौटने के बाद, ओमी कुछ इस तरह लौटी जैसे वह किसी प्रतियोगिता से बाहर होकर नहीं कोई, अपराध करके आई हो।

हर बात में मां का ताना मारना, इतना सिखाया था। इतना समझाया था। अरे, ठीक से चार लाइनें गा लेती, तो क़िस्मत बदल जाती। अब तू मर। यहीं पर सड़। कुछ नहीं कर सकती तू जीवन में। वे भी तो बच्चे थे। तुझसे भी छोटे, पर देखे उनको। अरे क्या कमी रखी थी, दो दो गुरुओं से सिखाया था। तेरे भेजे को क्या हो गया था। मुंह में दही जम गया है क्या? हे भगवान। अब मैं क्या करूं। कहां से क़र्ज चुकाऊं। पूरे दस हजार रुपए का क़र्ज चढ़ गया है तेरी शिक्षा-दीक्षा में।

रीना माथे पर हाथ रखकर कल्पना शुरू कर देती। लगता जैसे ओमी नहीं प्रतियोगिता से वह निकाली गई हो। और यह ओमी की असफलता नहीं उसकी असफलता है। छिन्न-भिन्न सपनों ने भविष्य को दु:स्वप्न में बदल दिया था, जो उसका नहीं था, पर जिसे वह पाना चाहती थी, जिसे अपना बना चुकी थी।

घर से बाहर निकलते हुए, काम पर जाते हुए लोगों से बात करते हुए वह स्वयं को शर्मिदा महसूस करती और उसका असर हुआ कि ओमी को भी उसी छाया ने घेर लिया था। घर से लेकर गाली तक, गली के बच्चों से लेकर स्कूल तक में एक असफल.. सबसे पहले आउट होने वाली कंटेस्टेंट के रूप में कुछ- कुछ उपहास की, कुछ कुछ बेवकूफ़ सी, कुछ-कुछ अलग-थलग सी नजर आती। इस बात का एहसास उसे हर पल करवाया जाता। और कुछ दिनों बाद तो यह एहसास इतना गहरा मारक और इतना दर्दनाक हो गया कि ओमी ने अंतत: बिस्तर पकड़ लिया और उसकी मां रीना को क़र्ज ने।
साभार भास्कर

ये कैसी एकता

‘अनेकता में एकता’
प्रेम चोपड़ा
आख़िर मैं यह क्या कह रहा हूं? मैं भी हैरान हूं, क्योंकि बचपन से घुट्टी बनाकर पिलाई गई पंक्ति तो ठीक उल्टी है- अनेकता में एकता! यह हमारे हिंदुस्तान का कभी मूल-मंत्र था, जबकि आज की स्थिति एकदम विपरीत है।

मुझे मालूम नहीं कि पहली बार ‘अनेकता में एकता’ का नारा किसने बुलंद किया था, मगर विश्वास के साथ कह रहा हूं कि यदि वह श़ख्स आज जिंदा होता, तो उसे अपने कहे पर बड़ी शर्मिदगी होती..
संभव है कि सार्वजनिक मंच से वह अपने इस कथन पर खेद भी प्रकट करता! दरअसल, जिस दौर में यह बात कही गई होगी, तब के हिसाब से बिल्कुल ठीक थी। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई होते हुए भी पहले हम हिंदुस्तानी थे, पर अब तो मराठी-गुजराती-मद्रासी-पंजाबी में विभाजित हो गए हैं। जाहिर है कि आज के संदर्भ में मैं भी सही हूं, क्योंकि ‘काले-गोरे का भेद नहीं हर दिल से हमारा नाता है..’- क्या गर्व से कोई कहते सुनाई देता है?

राजनेता अब देश की नहीं, अपने-अपने क्षेत्र की बातें करते हैं.. अपनी जाति का नेतृत्व करते हैं। मुझे लगता है कि मेरे प्यारे देश को किसी की बुरी नजर लग गई है। सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद पहले हमें पाकिस्तान से लड़ना पड़ा। इसके बाद हिंदू-चीनी का नारा लगाकर चीन ने हमारे साथ छल किया। हालांकि उस पराजय से उबर कर हमने जल्दी ही प्रगति की राह पकड़ ली, मगर पाकिस्तान ने छद्म युद्ध जारी रखा। बेशक, सन 1971 में फिर उसकी हार हुई, मगर उस अपमान की आग में हमारा पड़ोसी मुल्क आज भी सुलग रहा है। वह आए दिन हमारे यहां कुछ न कुछ करवा देता है।

यही नहीं, अभी तक हमारे दिल-ओ-दिमाग़ से आतंकवाद का हौवा ख़त्म भी नहीं हुआ था कि देश में नक्सलवाद ने अपनी जड़ें जमा लीं। ऐसा नहीं कि हम नक्सलियों की कमर नहीं तोड़ सकते। हमारी सेना इतनी सक्षम है कि वह चंद घंटों में उनका वजूद मिटा दे, पर बीच में आम जनता आ जाती है। जाहिर है, हम दस नक्सलवादियों के बदले एक भी बेक़सूर इंसान को मरते देखना नहीं चाहते, सो हमारी इसी भावना के साथ खेल रहे हैं वे। सेना या अर्धसैनिक बल जब भी अपने अभियान में तेजी लाते हैं, नक्सली उन्हें ढाल बना लेते हैं।

वैसे भ्रष्टाचार तो वह नासूर है, जो हमारे देश को दीमक की तरह खोखला किए जा रहा है। न्यूज चैनल पर कुछ दिनों से रोजाना ख़बर आती है कि दूध में मिलावट, घी में मिलावट.. और तो और, पानी में भी मिलावट! हमें सब्जियां न खाने के लिए आगाह किया जा रहा है, क्योंकि फल-सब्जियों को इंजेक्शन के सहारे बड़ा और हरा किया जाता है.. केले-आम को पकाने के लिए जिस रसायन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, मात्रा में अधिकता के कारण वही इन फलों के लिए जहर बन चुका रहता है। ऐसे में हम क्या खाएं- क्या पिएं? हे ईश्वर! हमारे हिंदुस्तान को फिर से सोने की चिड़िया बना दो।

हम फिर से ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई, आपस में हम भाई-भाई..’ कह सकें। लेकिन यह कैसे होगा, हमसे मत पूछिएगा! पता होता तो हम आपको जिम्मेदारी क्यों सौंपते? हमारे जीवन से खिलवाड़ करने वालों को सजा भी आप ही दो, क्योंकि वोटर से ज्यादा आज के नेताओं को फाइनेंसर की चिंता सताती है.. और हर पांच साल बाद इन नेताओं को हमारी अदालत में लाने की जुगत यही भ्रष्टाचारी करते हैं न!

अहसास

दिशा मिले तो दशा बदले सौम्या सी
सुपर चोर बंटी पिछले दिनों जब जेल से छूटकर आया, तो उसके घरवालों ने उसे क़बूल नहीं किया। अहम बात यह कि इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह, जिसने काफ़ी मश़क्क़त के बाद इस माहिर चोर को गिऱफ्तार किया था, उसी ने बंटी को पनाह दी।

इसके बाद उसकी जिंदगी पर ‘ओए लक्की, लक्की ओए’ नाम से हिट फिल्म बन चुकी है। अब बंटी को ‘एडर डिटेक्शन एंड प्रोटेक्शन प्राइवेट लिमिटेड’ में जासूस की नौकरी मिल गई है और इन दिनों वह दिल लगाकर इस एजेंसी के चेयरमैन संजीव देसवाल से जासूसी के गुर सीख रहा है।

बहरहाल, बंटी जैसे शातिर चोर से जो पुलिस घबराई रहती थी, उसी पुलिस ने एडर डिटेक्शन एंड प्रोटेक्शन प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन देसवाल से कहकर उसे नौकरी लगवाई। बस, अब बंटी को साबित करना है कि उस पर दांव लगाकर पुलिस अफ़सरों ने ग़लती नहीं की है।

सरकारी तौर पर जेलों को सुधार गृह के रूप में प्रचारित किया जाता है, सरकारी दावे के मुताबिक़ क़ैदियों के सुधार के लिए जेलों में कार्यक्रम भी चलाए जाते रहे हैं। बावजूद इसके, रिहा क़ैदियों की जिंदगी की राह बदल गई हो ऐसा कम ही दिखता है। बल्कि कई बार तो यह भी होता है कि जेल जाने से उसकी अपराध करने की झिझक खत्म हो जाती है, जिसके चलते वह जेल को ही अपना दूसरा घर मानने लगता है और जुर्म की राह पर निकल पड़ता है।

कश्मीर टाइम्स के पत्रकार इ़फ्तिखार गिलानी की एक किताब है- जेल में कटे वे दिन। जिन्होंने यह किताब पढ़ी है, उन्हें पता है कि जेल की जिंदगी क्या होती है। कुछ सरकारी अधिकारियों के कोप के चलते निर्देष होने के बावजूद इ़फ्तिखार को 2000 में तिहाड़ जेल में कई महीने गुजारने पड़े थे।

जेल के नाम से उन लोगों की रूह नहीं कांपती, जिन्हें आज की भाषा में प्रोफेशनल अपराधी कहा जाता है। लेकिन सामान्य इंसान और छोटे-मोटे अपराधियों को तो डर लगता ही है। ख़ैर, यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस राह पर चलने वाले ज्यादातर कैदी या तो जवान होते हैं या फिर जवानी की दहलीज पर क़दम रख रहे होते हैं।

राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट भी इसी की तस्दीक करती है। 31 दिसंबर 2007 तक जेलों में बंद क़ैदियों की संख्या पर आधारित यह रिपोर्ट पिछले साल जुलाई 2009 में प्रकाशित हुई थी। इसके मुताबिक़ देशभर की जेलों में 3 लाख 76 हजार 396 क़ैदी बंद हैं। जिनमें से 18 से 30 साल की उम्र वाले क़ैदियों की संख्या 1 लाख 60 हजार 627 है। जबकि 16 से 18 साल की उम्र के क़ैदियों की संख्या 378 है।

ऐसा नहीं कि छोटी उम्र वाले अपराध नहीं कर रहे, लेकिन हमारा कानून 16 साल से छोटी उम्र वालों को जेल की बजाय बाल सुधार गृह में रखने की अनुमति देता है। अकेले दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही 1500 से कुछ ज्यादा क़ैदी जवान हैं।
सामाजिक जीवन में आ रहे बदलाव और अपराध के बढ़ती ख़बरों से साफ़ है कि यह संख्या बढ़ चुकी होगी। वैसे भी ये आंकड़े क़रीब ढाई साल पहले तक के हैं।

इन आंकड़ों से साफ़ है कि भारत में ज्यादातर क़ैदी जवान हैं। जाहिर है, इनकी जिंदगी में बदलाव लाए जाने की जरूरत है। सरकारी स्तर पर ऐसे प्रयास किए भी जा रहे हैं। यूं तो हर तरह की जेलों में क़ैदियों से काम कराया जाता है। जिन्हें सुधार प्रयास ही कहा जाता है।

राज्य सरकारों ने जेलों में बोर्सटल स्कूल खोले हैं, जहां क़ैदियों को उनका भावी जीवन सुधारने की ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन इनकी क्षमता क़ैदियों की संख्या के लिहाज से नाकाफ़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़ इन स्कूलों की क्षमता महज 1602 क़ैदियों को ही ट्रेंड करने की है। और ऐसे स्कूल सिर्फ़ आंध्र प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, कर्नाटक. महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु में ही प्रभावी तरीक़े से चलाए जा रहे हैं। लेकिन बोर्सटल स्कूलों का सबसे ज्यादा फ़ायदा जहां पंजाब में 489 क़ैदियों को मिल रहा है, वहीं हिमाचल में सिर्फ़ 15 क़ैदी ही इसका लाभ पा रहे हैं। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या सभी युवा क़ैदियों से इस तरह के प्रशिक्षणों के जरिए अपराध जगत छोड़कर अच्छे आचरण और समाज की मुख्य धारा में शरीक होने की उम्मीद की जा सकती है?

पूर्व जेल अधीक्षक, भोपाल पुरुषोत्तम सोमकुंवर के अनुसार युवा अपराधियों में आमतौर पर बदले की प्रवृत्ति रहती है। ऐसे में उनकी मनोवृत्ति बदलने के लिए जेलों में एजुकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है और हिंसात्मक विचार ख़त्म करने के लिए उन्हें मनोवैज्ञानिक और व्यक्तित्व विकास कोर्स भी कराए जाते हैं। कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।

सोमकुंवर कहते हैं कि मुझे लगता है और त्वरित नतीजे हासिल करने जेलों के अंदर स्कूल खोलने चाहिए। हालांकि 10-15 सालों की तुलना में युवा अपराधियों की संख्या में 15-20 फ़ीसदी इजाफ़ा हुआ है। बहरहाल, जेल में अच्छे चाल-चलन और व्यवहार के मद्देनजर क़ैदियों को कुछ कम कठोर जेलों में रखने का राज्य सरकारों ने इंतजाम किया है, जिन्हें खुली जेल कहा जाता है। लेकिन क़ैदियों की संख्या के मुक़ाबले ये भी कम हैं। देशभर में सिर्फ़ 28 खुली जेल हैं, जिनमें कुल 3076 क़ैदी ही रखे गए हैं।

वैसे जेलों में सुधार की मांग तो अरसे से उठती रही है, लेकिन किरण बेदी ने तिहाड़ जेल की महानिदेशक बनने के बाद इस दिशा में सार्थक पहल की। उनके कारण ही वहां पढ़ाई और योग की कक्षाएं शुरू हुईं और क़ैदियों के हुनर को बढ़ावा देने प्रयास हुए। हालांकि तिहाड़ में वैसी गर्मजोशी अब नहीं दिखती, लेकिन अब भी यहां काम हो रहे हैं। जैसे- नौजवान क़ैदियों को अंग्रेजी सिखाई जाती है। जिसके शिक्षक विदेशी क़ैदी ही हैं। आजकल वहां क़रीब 400 युवा क़ैदी अंग्रेजी सीख रहे हैं।

ऐसी हों कोशिशें

दिल से साहित्यकार, यूपी कैडर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विभूति नारायण राय की कोशिशों से गोवा की पणजी जेल में बंद सुधीर शर्मा की जिंदगी ही बदल गई। सुधीर शर्मा ड्रग्स रखने के जुर्म में दस साल की सजा काट रहा था, अब लेखक बन चुका है। उसके लेख और संस्मरण हिंदी पत्रिकाओं में ससम्मान स्थान बना रहे हैं। विभूति नारायण राय इन दिनों महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्व विद्यालय वर्धा के कुलपति हैं।

जेल में फूड पार्लर

छह साल पहले आंध्र प्रदेश की राजामुंदरी जेल में पांच साल की सजा काटने वाले पेशे से बावर्ची रहे, जाकिर हुसैन ने सजा के दौरान ही जेल में फूड पार्लर खोलने की मंजूरी मांगी और जेल प्रशासन ने उसकी बात मानी। उसके पार्लर की शुरुआत इडली-सांभर, चाय-डोसे से हुई और देखते ही देखते काम फैल गया। हालांकि जाकिर जेल से बाहर है, लेकिन पार्लर के चलते अब भी उसका जेल से नाता बना हुआ है।

ग़ुमनाम नहीं रहा नगेंद्र

नगेंद्र सिंह परिहार और उनके परिजनों पर पत्नी की हत्या का आरोप था। 20 अप्रैल 2001 को उन्हें मप्र के शहडोल स्थित अपने निवास से गिऱफ्तार किया गया था। उन्होंने जेल में नौ साल बतौर क़ैदी काटे। पिछले महीने जबलपुर हाईकोर्ट ने उन्हें आरोप से बरी किया और वे जेल से रिहा हुए। लेकिन इससे पहले क्योंकि नगेंद्र का सपना कवि बनने का था सो जेल आने पर उन्होंने इस काम में मशगूल होने में देर नहीं की। और सेंट्रल जेल रीवा से रिहा होने तक वे सात उपन्यास, सौ से ज्यादा कविताएं, ढेर सारी लघु कथाएं व नाटक लिख चुके थे।

इतना ही नहीं, जेल में बिताए नौ सालों में उन्होंने समाज शास्त्र, हिंदी और अंग्रेजी में मास्टर डिग्रियां लीं और कंप्यूटर स्किल और प्रयाग संगीत समिति से म्यूजिक का दो वर्षीय डिप्लोमा लिया। नगेंद्र परिहार कहते हैं मुझे शब्दों की ताक़त पर यक़ीन है।

मैंने जेल में जो पहली कविता लिखी है उसका नाम- ‘गुमनाम नहीं मरूंगा मैं’ था। मुझे पता था कि वे मेरे शरीर को ग़ुलाम बना सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को नहीं। जेल में परिहार को सीनियर जेलर सुरेंद्र सिंह मिले थे। सिंह का कहना था, परिहार के रिहा होने पर ख़ुशी हुई। वह निर्देष था, उसकी पत्नी ने आत्महत्या की थी। मैंने अपनी 27 साल की सर्विस में ऐसा कैदी नहीं देखा।

जोक्स

आंखों में धूल कैसे झोंकी जाती है?

ठगत फिरें ठग हर जगह,
सब कुछ ठगें समूल।
फूल दिखाकर झोंकते,
यह आंखों में धूल।

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लुटेरे बनकर साथी धोखा करते हैं,
तो आंखें में धूल झोंकना ही हुआ।
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चुनाव जीतकर पांच साल तक फिर दर्शन न होना, नेता द्वारा जनता की आंखें में धूल झोंकना जैसा ही है।

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हमारे देश के नेता इस सवाल का जवाब बेहतर दे सकते हैं।

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जैसे करने का कुछ और बताने का कुछ और ही अर्थ हो जाता है।

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चतुर कौए के घोंसले में अपने अंडे रखकर अवसरवादी कोयल यह बताती है कि आंखों में धूल ऐसे झोंकी जाती है।

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आंखों में धूल ऐसे झोंकी जाती है, पीठ में छुरी जैसे भोंकी जाती है।

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जब विकास के आंदोलन में सड़क जाम और ट्रेनें रोकी जाती हैं। जनता की आंखों में भैया ऐसे धूल झोंकी जाती है।

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जब सामने वाले की आंखें लापरवाही के कारण खुली होती हैं और उन पर विवेक का चश्मा नहीं चढ़ा होता है।

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जब कोई व्यक्ति अधिक कमाई के लालच में आकर अपनी पूंजी गंवा देता है तो उनकी आंखों में धूल भर जाती है।

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किसी की आंख बचाकर कोई वस्तु चुरा लेना। जैसा स्वर्णकार आभूषण निर्माण करते समय ग्राहक के साथ करते हैं।

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विश्वास की आंच और भरोसे की ईंटों से बने चूल्हे पर विष की हांडी को चढ़ते देखा है? फर्जी चिट फंड वाली कंपनियां इस बात की पुख्ता मिसाल हैं।

शनिवार, 24 जुलाई 2010

ज्यादा देर तक बैठना मौत को बुलावा

अगर आप बहुत देर तक कुर्सी पर एक जैसे बैठ कर काम कर रहे हैं, तो आप अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि बहुत देर तक एक जैसे बैठने के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

डेली एक्सप्रेस की खबर में कहा गया है कि जो लोग दिन भर का ज्यादातर समय एक ही कुर्सी पर बैठे-बैठे काम में बिताते हैं, उनके कम उम्र में ही मरने की आशंका ज्यादा होती है, भले ही वे कितना भी व्यायाम करें।

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के शोध में कहा गया है कि जो महिलाएं एक दिन में छह घंटे से ज्यादा का समय बैठे-बैठे बिताती हैं, उनमें उन महिलाओं की अपेक्षा जल्दी मरने की आशंका 37 फीसदी ज्यादा होती है, जो तीन घंटे से भी कम समय एक ही स्थान पर बैठी रहती हैं। पुरूषों में यह आशंका लगभग 18 फीसदी होती है।

शोध के मुताबिक इस आशंका में इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि दिन के बाकी समय में वे महिलाएं और पुरूष कितना व्यायाम कर रहे हैं। मुख्य शोधकर्ता डॉ. अल्फा पटेल ने कहा कि जो लोग अपना ज्यादातर समय बैठ कर काम करने में बिताते हैं, उन्हें बार-बार थोड़ा-थोड़ा चलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

भागवत-4-5 : भागवत के नायक हैं श्रीकृष्ण


महाभारत जैसा महान ग्रंथ लिखने के बाद व्यासजी एक दिन बैठे तो उनके भीतर उदासी जाग गई। उसी समय नारदजी आए। उन्होंने पूछा व्यासजी क्या बात है इतना बड़ा सृजन करने के बाद आपके चेहरे पर उदासी क्यों है?सृजन के बाद तो आनंद होना चाहिए। व्यासजी ने नारदजी से बोला मेरा भी यही प्रश्न है आपसे।

मैंने महाभारत जैसा महान ग्रंथ लिखा, मैं थका हुआ क्यों हूं, उदास क्यों हूं। नारदजी ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया और वह हमारे बड़ा काम का है। नारदजी ने कहा व्यासजी ये तो होना ही था क्योंकि आपने जो रचना की है उसके नायक पांडव हैं और खलनायक कौरव हैं।आपकी रचना के केंद्र में मनुष्य है, विवाद है, षडयंत्र हैं।
आप कोई ऐसा साहित्य रचिए जिसके केंद्र में भगवान हों। तब आपको शांति मिलेगी। हमें समझने की बात ये है कि जीवन की जिस भी गतिविधि के केंद्र में भगवान नहीं होगा, वहां अशांति होगी। इसीलिए भगवान को केंद्र में रखिए और सारे काम करिए। बात व्यासजी को समझ में आ गई। तब उन्होंने भागवत की रचना की जिसके नायक भगवान श्रीकृष्ण हैं। तब जाकर उनको शांति मिली।
इसीलिए भागवत का पाठ किया जाता है जिसे सुनने के बाद मनुष्य को शांति मिलती है। लोग कहते हैं महाभारत घर में नहीं रखना चाहिए।महाभारत नहीं रखते। क्योंकि उपद्रव होता है। लोग रामायण रखते हैं घर में, लेकिन रामायण जैसा आचरण नहीं करते। अगर आप महाभारत पढऩा चाहें तो अवश्य पढि़ए, घर में रखिए यह वही ग्रंथ है जो व्यासजी ने लिखा है।
व्यासजी ने बड़ी सुंदर रचना भागवत के रूप में की है। केंद्र में भगवान को रखा और केंद्र में भगवान को रखने के बाद महात्म्य का आरंभ कर रहे हैं। केन्द्र में भगवान हों और व्यक्तित्व में प्रसन्नता हो इसलिए हमेशा मुस्कुराइए।
आनंद चाहिए तो सच्चिदानंद का ध्यान करें
भागवत माहात्म्य में श्लोक वर्णित है
सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे। तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम:।।
अर्थात जो जगत की उत्पत्ति और विनाश के लिए है तथा जो तीनों प्रकार के ताप के नाशकर्ता हैं ऐसे सच्चिदानंद स्वरूप भगवान कृष्ण को हम सब वंदन करते हैं। सत यानी सत्य, परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग है। चित्त, जो स्वयं प्रकाश है। आनंद-आत्मबोध। शास्त्रों में परमात्मा के तीन स्वरूप कहे गए हैं सत, चित और आनंद। सत प्रकट रूप से सर्वत्र है। जड़ वस्तुओं में सत तथा चित है किंतु आनंद नहीं।

जीव में सत और चित प्रकटता है पर आनंद अप्रकट रहता है अर्थात अप्रकट रूप से विराजमान अवश्य है। वह अव्यक्त रूप से है। वैसे आनंद अपने अन्दर ही है। फिर भी मनुष्य आनंद को बाहर खोजता है। इस आनंद को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें यही भागवत शास्त्र हमें बताता है। आनंद के अनेक प्रकार तैतरीय उपनिषद् में बताए गए हैं परंतु इनमें से दो मुख्य हैं पहला साधनजन्य आनंद और दूसरा है स्वयंसिद्ध आनंद।
जिसका ज्ञान नित्य टिकता है उसे ही आनंद मिलता है वही आनंदमय होता है। जीव को यदि आनंद रूप होना हो तो उसे सच्चिदानंद के आश्रय होना पड़ेगा । भागवत कहती है मेरे लिए कुछ भी नहीं छोडऩा है। वेद, त्याग का उपदेश करते हैं, शास्त्र कहते हैं काम छोड़ो, क्रोध छोड़ो, परंतु मनुष्य कुछ नहीं छोड़ सकता । संसार में फंसे जीव उपनिषदों के ज्ञान को पचा नहीं सकते । इन सब बातों का विचार करके भगवान व्यासजी ने श्रीमद्भागवत शास्त्र की रचना की है।

सर्वश्रेष्ठ गुरुभक्त एकलव्य


एक भील बालक जिसका नाम एकलव्य था। उसे धनुष-बाण चलाना बहुत प्रिय था। वह धनुर्विद्या सीखना चाहता था। इसीलिए वह गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचा। परंतु जब द्रोणाचार्य को मालूम हुआ कि यह बालक भील है तब उन्होंने उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया।
एकलव्य निराश होकर वहां से लौट आया परंतु उसने हार नहीं मानी और गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसके आगे अभ्यास करने लगा।
एक दिन गुरु द्रोण और पांडव जंगल से गुजर रहे थे। उनके साथ उनका एक कुत्ता भी था। कुत्ता भौंकते हुए आगे-आगे चल रहा था। कुत्ता भौंकते हुए थोड़ी आगे चला गया और जब वह वापस आया तो उसका मुंह बाणों से भरा हुआ था। यह देखकर गुरु आश्चर्यचकित रह गए कि बाण इतनी कुशलता से मारे गए थे कि कुत्ते मुंह से रक्त की बूंद भी नहीं निकली।
द्रोणाचार्य ने सभी शिष्यों को उस कुशल धनुर्धर की खोज करने की आज्ञा दी। जल्द ही उस धनुर्धर को खोज लिया गया। धनुर्धर वही भील बालक एकलव्य था, उसने बताया कि गुरु द्रोणाचार्य द्वारा धनुर्विद्या सीखाने से इंकार करने के बाद मैंने इनकी मूर्ति बनाकर उसी से प्रेरणा पाई है। द्रोणाचार्य चूंकि अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे, इसलिए अर्जुन को भी पीछे छोडऩे वाले एकलव्य से उन्होंने गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने बिना विचार किए अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर दे दिया।
आज भी एकलव्य की गुरुभक्ति से बढ़कर ओर कोई उदाहरण दिखाई नहीं देता।

क्यों मानते हैं अतिथि को भगवान ?


क्या कारण है कि गृहस्थ जीवन को सन्यास से भी अधिक श्रेष्ठ व कठिन माना गया है? एक गृहस्थ व्यक्ति की जिंदगी में अनायास ही सारी तप साधना शामिल है। इसीलिये तो गृहस्थ इंसान बगैर घर-परिवार छोड़े ही जीवन के असली मकसद यानि कि पूर्णता को प्राप्त कर सकता है। जिंदगी के जिस मकसद को पाने की खातिर कोई साधक घर-परिवार ही नहीं पूरा संसार ही छोड़कर सन्यासी बन जाता है। आखिर इतनी अनमोल उपलब्धि दुनियादारी में डूबा हुआ सामान्य व्यक्ति कैसे प्राप्त कर लेता है?
सारा रहस्य गृहस्थ इंसान के कर्तव्यों में छुपा है। इंसानी जिंदगी को जिन चार अनिवार्य और अति महत्वपूर्ण भागों में बांटा गया है, उनमें से दूसरा है- गृहस्थ आश्रम। गृहस्थ में रहकर कुछ कर्तव्यों को करना अनिवार्य बताया गया है।

किसी विवाहित या परिवार वाले गृहस्थ इंसान के लिये जिन कार्यों करना निहायत ही जरूरी है वे इस प्रकार हैं-
जीव ऋण: यानि घर आए अतिथि, याचक तथा पशु-पक्षियों का उचित सेवा- सत्कार करना ।
देव ऋण: यानि यज्ञ आदि कार्यों द्वारा देवताओं को प्रशन्न एवं पुष्ट करना।
शास्त्र ऋण: जिन शास्त्रों या ग्रंथों से हमने ज्ञान-विज्ञान सीखकर जीवन को श्रेष्ठ बनाया है, उनका सम्मान, हिफाजत एवं प्रचार प्रसार करना।
पितृ ऋण: यानि कि अपने पूर्वजों और पित्रों की सुख-शांति के लिये शास्त्रोक्त तरीके से श्राद्ध-कर्म का करना।
ग्राम ऋण: यानि कि जिस गांव समाज और देश में पल-बढ़कर हम बड़े हुए हैं, उसकी भलाई की खातिर अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करना।
ऊपर दी गई जानकारी से स्पष्ट हे कि अतिथि को भगवान मानकर सेवा करना इंसान को उस ऋण से छुटकारा दिलाता है जिससे मुक्ति पाकर ही गृहस्थ जीवन सफल हो सकता है।

...इसलिए मनाते हैं गुरु पूर्णिमा


25 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। यह वो अवसर है, जिसकी प्रतीक्षा दुनिया के सभी अध्यात्म प्रेमी और आत्मज्ञान के साधक बेसब्री से करते हैं। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि यानि कि पूर्णिमा ही गुरु पूर्णिमा के रूप जगत प्रसिद्ध है। इसी दिन से संन्यासी चातुर्मास प्रारंभ करते हैं। वे एक स्थान पर रुक जाते हैं, धर्म की शिक्षा देने के लिए। यही दिन वेदों का विभाजन करने वाले महर्षि वेद व्यास का जन्मदिन भी है और कालगणना की महत्वपूर्ण इकाई मन्वंतर का आदि दिन भी।

गुरु पूर्ण है, इसीलिए पूर्णिमा ही गुरु की तिथि है। इस संदेश के साथ कि गुरु के बगैर जीवन में गुरुता संभव नहीं है। गुरु का अर्थ है ज्ञान, गुरु का अर्थ है बड़ा। हम बड़े कैसे बनें, यह भी गुरु के मार्गदर्शन से ही संभव है। वरना मार्ग भटकने का अंदेशा है। मार्ग न भटकें इसीलिए गुरु का दर्शन और मार्गदर्शन आवश्यक है। गुरु से कुछ लिया है तो देना भी होगा। गुरु चूंकि गुरु है, इसलिए वे लेंगे तो कुछ नहीं पर हम आभार तो व्यक्त कर ही सकते हैं। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ के समापन के साथ आभार का पर्व है। गुरु के प्रति आभार का और आशीर्वाद प्राप्त करने का। ताकि हम जीवन में कुछ बन सके। गुरु की कृपा से,आषाढ़ के अंतिम दिन।