किसी भी त्योहार के नजदीक आते ही मुँह से बरबस निकल पड़ता है... अब त्योहारों में पहले जैसी धूम नहीं रही। आजकल व्यस्तताओं के चलते किसी के पास समय ही नहीं रहा कि त्योहारों का मजा ले सकें, परंतु क्या आप जानते हैं कि इतनी व्यस्तताओं के बीच भी जिंदगी के हर रंग को नजदीक से देखा जा रहा है? लोगों की विचारधारा बदल रही है एवं वे हर तरफ से जिंदगी में कुछ अपने लिए निकाल ही लेते हैं। देखिए रिश्तों की एक बानगी।
मेरे मकान के नीचे वाले हिस्से में जब किराएदार रहने आए तो सहज जिज्ञासा जगी उनके बारे में जानने की। वे नवविवाहित दंपति नौकरीपेशा थे। कुछ दिनों तक गौर किया तो पाया कि दोनों सबेरे काम निबटाकर चले जाते व शाम को लौटते तब भी अपने में ही मस्त रहते। मन में सोचा, इनकी भी क्या जिंदगी है, बेचारे! परंतु बहुत जल्दी मुझे अपने द्वारा तय की हुई धारणा बदलनी पड़ी।
पिछले दिनों जब एक साथ उनकी छुट्टी आई तो देखा बड़े सबेरे दोनों मिलकर घर की साफ-सफाई व दूसरे काम निबटाने में लगे हुए थे। कहीं कोई देय नहीं कि कौन सा कार्य किसने किया। ये सब देख अच्छा लग रहा था। अब तक वे मुझसे काफी कुछ बतियाने भी लगे थे सो स्वयं ही बोले- आज हम पूरा दिन शॉपिंग करेंगे फिर कोई मूवी देखकर बाहर ही खाना खाकर लौटेंगे। इसी तरह जब कोई त्योहार आता तो भले दो दिन के लिए ही सही वे अपने माता-पिता के पास चले जाते। इस तरह पाया कि वे जिंदगी की एकरसता से स्वयं को मुक्त रखे हुए थे।
इससे भी बड़ी हैरत मुझे मेरी एक परिचिता से मिलकर हुई। वे शहर से काफी दूरी पर बसी एक कॉलोनी में रहती हैं। चूँकि उनके पति साइंटिस्ट हैं सो वह पूरी कॉलोनी ही उनके सहयोगी व साथ काम करने वालों की है। मैने कहा तुम वार-त्योहार पर तो अकेली पड़ जाती होंगी?
'इस पर वे बोली अरे नहीं दीदी हम लोग हर त्योहार पर कुछ न कुछ खास करते हैं। सभी आपस में मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। लगता ही नहीं कि अपनों से दूर हैं।' उन्होंने बताया कि इस बार होली मिलन समारोह रखा था। इसमें हमने शहर के कवि व कवियित्रियों को आमंत्रित किया। साथ ही हमारे एक-दो सहयोगी भी बहुत अच्छी कविताएँ करते हैं, उनको भी शामिल किया।
अब जीवन का एक तिहाई भाग केवल कमाने में व्यर्थ नहीं जाता है जैसा कि पहले सोचा जाता था कि अभी कमा लें बाद में तो बैठकर खाना ही है। आज के युवाओं का जीवन जीने का मंत्र इससे जुड़ा है। वे जिस लगन से कमाना जानते हैं, उसी तरह जिंदगी के हर लम्हे को पूरी शिद्दत से जीना भी जानते हैं।
अपनी व्यस्तताओं से ये बड़ी चतुराई से अपने लिए कुछ पल संजो लेते हैं ताकि जिंदगी की एकरसना से बचा जा सकें। परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है सो इस नई सोच का भी स्वागत होना चाहिए। बात दिलों को जोड़े रखने की ही तो है, कटकर रहने की तो नहीं न...
जब रोए आपका लाड़ला
बच्चे को शोर से बचाने का पूरा प्रयास करें।
अधिक लाइट्स चालू हों तो कम करें या बंद करें।
यदि बच्चे के कपड़े असुविधाजनक हों तो उन्हें बदल डालें। अक्सर बहुत तंग कपड़े भी बच्चे को परेशान कर सकते हैं।
बच्चे को करवट सुलाकर पीठ थपथपाएँ।
हल्की मालिश करें, यह भी एक कारगर उपाय है।
कुछ दवाएँ भी कॉलिक कम करने के लिए दी जाती हैं पर उनकी प्रामाणिकता कम है। यदि आवश्यक लगे तो डॉक्टर की सलाह से ही दें।
इस सबके बावजूद यदि आपका बच्चा फिर भी रो रहा है तो डॉक्टर की सलाह लेना मत भूलिए।
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