जन्मदिन : 16 अप्रैल पर विशेष
चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन दुनिया के महानतम अभिनेता थे। न सिर्फ अच्छे अभिनेता बल्कि एक अच्छे इंसान भी। 16 अप्रैल को उनका जन्मदिन है। ब्रिटेन में पैदा हुए और अमेरिका में जाकर दुनियाभर में मशहूर हुए चार्ल्स ने घोर गरीबी देखी। माँ-पिता को अलग होते देखा। भूख और बदलते रिश्तेदारों को देखा। घर के लगातार बदलते पते देखे। और फिर आखिरकार अपनी माँ को इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद यह महान कलाकार दुखी लोगों के होंठों पर हँसी खिलाने के लिए अभिनय करता रहा। चार्ली ने अपने दुखों की बात करते हुए भी कहा था - 'कि मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है क्योंकि तब कोई भी मेरे आँसू नहीं देख सकता है।'
मैं स्टेज पर कैसे पहुँचा...
मेरी माँ गायिका थी। लगातार गाने से मेरी माँ की आवाज अक्सर खराब हो जाया करती थी। फिर भी उन्हें थिएटर में काम करना पड़ता था। कभी तो उनकी आवाज बीच में ही अटक जाती। सिर्फ फुसफुसाहट ही बचती थी। इसी कारण उनका नाटक कैरियर समाप्त हो गया। माँ की आवाज बिगड़ने के कारण मुझे पाँच वर्ष की आयु मैं उनके साथ थिएटर जाना पड़ा। उन दिनों वे एक ऐसे नाटक में काम कर रही थीं जो रंगरूटों के मनोरंजन के लिए ही रखा गया था।
एक दिन मैं स्टेज के गलियारे में खड़ा था कि अचानक मेरे कानों में माँ की थरथराती काँपती और फिर खो जाती आवाजें आई। लोग हँसने लगे। फब्तियाँ कसने लगे। दर्शकों में ज्यादातर फौजी थे। स्टेज से उतरकर मेरी माँ उदासी और अवसाद लिए आई। तभी थिएटर के मैनेजर ने घबराहट में मुझे उसकी जगह स्टेज पर जाने की सलाह दी। बस तभी स्टेज पर मेरा आना हुआ।
फ्लड लाइट की चमक और सामने अनेक आँखों के मैंने गाना शुरू किया। इसी दौरान एक मजेदार वाकया हुआ। स्टेज पर सिक्के फेंके जाने लगे। मैंने प्रेक्षकों को सुनाते हुए हुए कहा कि मैं पैसे पहले उठाऊँगा, बाद में नाचूँगा, गाऊँगा। इस बात पर दर्शक खूब हँसे। तभी मैंने देखा कि मैनेजर एक रुमाल लेकर स्टेज पर आया और सिक्के बटोरने लगा।
मुझे लगा कि ये पैसे वह अपने पास रख लेगा। इस आशंका के कारण मैं उसके पीछे-पीछे गया। जब उसने पैसे माँ को दे दिए, तभी मैं स्टेज पर आकर गाने-नाचने लगा। दर्शकों से बातें भी करने लगा। मेरी इस अदा पर दर्शक खूब ठहाके लगाते रहे। मैंने माँ की नकल करते हुए उनके गीत गाना शुरू किए। जब मेरी माँ स्टेज पर मुझे लेने आई, तो उनके आगमन पर प्रेक्षकों ने जोरों से तालियाँ बजाई। मेरी माँ का स्टेज पर यह आखिरी कार्यक्रम था और मेरा पहला कदम।
मेरे दोस्त और हमसफर
सन १९१८ में चार्ली ने अपने नवनिर्मित स्टूडियो में पहली फिल्म बनाई- एक कुत्ते की जिंदगी। इस फिल्म में उन्होंने यह बताने की कोशिश की थी कि एक बेकार युवक की जिंदगी कुत्ते से भी बदतर होती है। फिल्म में एक कुत्ता था-मॅट। मॅट चार्ली से बहुत प्यार करता था। फिल्म पूरी करने के बाद चार्ली युद्ध कोष के लिए धन जुटाने "बॉण्ड-टूर" पर निकल गए। मॅट चार्ली को बहुत चाहता था तो उनके विरह में उसने खाना-पीना छोड़ दिया और प्राण त्याग दिए। उसे स्टूडियो में दफनाया गया। लौटने पर चार्ली ने उसकी छोटी सी समाधि बनवाई। मृत्यु-लेख की शिला पर लिखा गया- दिल टूटने से मौत।
चार्ली की फिल्म में यह कुत्ता अमर है। चार्ली को कुत्तों से बहुत प्यार था। एक बार चार्ली सड़क के एक कुत्ते की आँखों में कातरता देखकर द्रवित हो गए और उसे होटल में ले जाकर भरपेट भोजन कराया। शायद यही वजह थी कि चार्ली कुत्ते के मूक अभिनय में कमाल की दक्षता रखते थे, जिसकी झलकियाँ उनकी फिल्मों में दिखाई देती है।
मेरा अंदाज
अपनी खास घसीटवाँ चाल के बारे में चार्ली ने एक बार बताया था कि उन्होंने रुमी बिंक्स नाम आदमी को देखकर इसे अपनाया था। रुमी उनके चाचा के पब के बाहर कोचवानों के घोड़े संभालकर रखने का काम करता था, जिससे उसे टिप में एकाध पेनी मिल जाती थी। वह नाटा-सा आदमी था, लेकिन किसी विशालकाय आदमी की पतलून पहनता था। उसके पाँव फूले हुए थे, जिन्हें वह घसीटकर चलता था।
चार्ली को उसकी चाल देखकर बड़ा आनंद आया। जब उसने अपनी माँ को उसकी चाल की नकल करके दिखाई तो माँ ने कहा कि शरीर से लाचार लोगों की नकल नहीं करना चाहिए। लेकिन खुद चार्ली को उसकी नकल करते देखकर देर रात तक माँ हँसती रही। अभ्यास के साथ चार्ली ने यह चाल सीख ली जो उनकी पहचान बन गई।
गाँधीजी और चार्ली की मुलाकात
२३ सितम्बर १९३१ को जब गाँधीजी और चार्ली चैप्लिन संयोग से लंदन में थे तो दोनों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के वक्त गाँधीजी और चार्ली दोनों के प्रशंसकों का हुजूम रास्ते पर जमा हो गया था। बहुत भीड़ हो गई। ऐसा कहा जाता है कि इस संक्षिप्त मुलाकात में गाँधीजी ने चार्ली से कहा था कि असली आजादी तो तभी मिल सकती है जब हम गैर जरूरी चीजों से छूट सके। कहा जाता है कि इस मुलाकात के बाद ही चार्ली ने गाँधी जी के विचारों को जाना और समझा कि वे बढ़ते मशीनीकरण हैं। इस विषय पर बाद के वर्षों में चार्ली ने "मॉडर्न टाइम्स" मर्मस्पर्शी फिल्म बनाई थी जो उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में है।
मैं और मेरे काम
अपनी आत्मकथा में चार्ली ने अपने कामों के बारे में लिखा है - 'अब मैं बहुधंधी हो चला था, झाड़-फानूस की दुकान का नौकर होने से लेकर बिस्कुट, साबुन और मोमबत्ती तक बेचता था। एक डॉक्टर के यहाँ भी मैंने काम किया, जहाँ मुझे मरीजों के पेशाब के बर्तन धोने पड़ते थे। दस-दस फुट ऊँची खिड़कियाँ भी धोना होता था। एक दिन यह कहकर कि अभी मैं इस काम के लिए बहुत छोटा हूँ, मुझे हटा दिया गया।
मेरा स्कूल
मैं हैनवेस नामक स्कूल में दाखिल हुआ और लगभग एक वर्ष तक रहा। वहीं मैंने अपना नाम "चैप्लिन" लिखना सीखा और मुझे मेरे नाम से प्यार हो गया। स्कूल मेरे लिए ज्ञान का द्वार था। मुझे इतिहास, कविता और विज्ञान मुझे अच्छा लगता था मगर अंकगणित और उसका घटाना-जोड़ना बड़ा ही उबाऊ। इतिहास मुझे राजाओं की दास्तान, हत्या और युद्वों से भरी हुई लगी। भूगोल मुझे केवल नक्शों का अंबार और कविता यादों की पाठन विद्या ही लगे। कुल मिलाकर शिक्षा मुझे ज्ञान और तथ्यों की एक कतार लगी, जिससे मैं अचकचा गया।
चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन दुनिया के महानतम अभिनेता थे। न सिर्फ अच्छे अभिनेता बल्कि एक अच्छे इंसान भी। 16 अप्रैल को उनका जन्मदिन है। ब्रिटेन में पैदा हुए और अमेरिका में जाकर दुनियाभर में मशहूर हुए चार्ल्स ने घोर गरीबी देखी। माँ-पिता को अलग होते देखा। भूख और बदलते रिश्तेदारों को देखा। घर के लगातार बदलते पते देखे। और फिर आखिरकार अपनी माँ को इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद यह महान कलाकार दुखी लोगों के होंठों पर हँसी खिलाने के लिए अभिनय करता रहा। चार्ली ने अपने दुखों की बात करते हुए भी कहा था - 'कि मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है क्योंकि तब कोई भी मेरे आँसू नहीं देख सकता है।'
मैं स्टेज पर कैसे पहुँचा...
मेरी माँ गायिका थी। लगातार गाने से मेरी माँ की आवाज अक्सर खराब हो जाया करती थी। फिर भी उन्हें थिएटर में काम करना पड़ता था। कभी तो उनकी आवाज बीच में ही अटक जाती। सिर्फ फुसफुसाहट ही बचती थी। इसी कारण उनका नाटक कैरियर समाप्त हो गया। माँ की आवाज बिगड़ने के कारण मुझे पाँच वर्ष की आयु मैं उनके साथ थिएटर जाना पड़ा। उन दिनों वे एक ऐसे नाटक में काम कर रही थीं जो रंगरूटों के मनोरंजन के लिए ही रखा गया था।
एक दिन मैं स्टेज के गलियारे में खड़ा था कि अचानक मेरे कानों में माँ की थरथराती काँपती और फिर खो जाती आवाजें आई। लोग हँसने लगे। फब्तियाँ कसने लगे। दर्शकों में ज्यादातर फौजी थे। स्टेज से उतरकर मेरी माँ उदासी और अवसाद लिए आई। तभी थिएटर के मैनेजर ने घबराहट में मुझे उसकी जगह स्टेज पर जाने की सलाह दी। बस तभी स्टेज पर मेरा आना हुआ।
फ्लड लाइट की चमक और सामने अनेक आँखों के मैंने गाना शुरू किया। इसी दौरान एक मजेदार वाकया हुआ। स्टेज पर सिक्के फेंके जाने लगे। मैंने प्रेक्षकों को सुनाते हुए हुए कहा कि मैं पैसे पहले उठाऊँगा, बाद में नाचूँगा, गाऊँगा। इस बात पर दर्शक खूब हँसे। तभी मैंने देखा कि मैनेजर एक रुमाल लेकर स्टेज पर आया और सिक्के बटोरने लगा।
मुझे लगा कि ये पैसे वह अपने पास रख लेगा। इस आशंका के कारण मैं उसके पीछे-पीछे गया। जब उसने पैसे माँ को दे दिए, तभी मैं स्टेज पर आकर गाने-नाचने लगा। दर्शकों से बातें भी करने लगा। मेरी इस अदा पर दर्शक खूब ठहाके लगाते रहे। मैंने माँ की नकल करते हुए उनके गीत गाना शुरू किए। जब मेरी माँ स्टेज पर मुझे लेने आई, तो उनके आगमन पर प्रेक्षकों ने जोरों से तालियाँ बजाई। मेरी माँ का स्टेज पर यह आखिरी कार्यक्रम था और मेरा पहला कदम।
मेरे दोस्त और हमसफर
सन १९१८ में चार्ली ने अपने नवनिर्मित स्टूडियो में पहली फिल्म बनाई- एक कुत्ते की जिंदगी। इस फिल्म में उन्होंने यह बताने की कोशिश की थी कि एक बेकार युवक की जिंदगी कुत्ते से भी बदतर होती है। फिल्म में एक कुत्ता था-मॅट। मॅट चार्ली से बहुत प्यार करता था। फिल्म पूरी करने के बाद चार्ली युद्ध कोष के लिए धन जुटाने "बॉण्ड-टूर" पर निकल गए। मॅट चार्ली को बहुत चाहता था तो उनके विरह में उसने खाना-पीना छोड़ दिया और प्राण त्याग दिए। उसे स्टूडियो में दफनाया गया। लौटने पर चार्ली ने उसकी छोटी सी समाधि बनवाई। मृत्यु-लेख की शिला पर लिखा गया- दिल टूटने से मौत।
चार्ली की फिल्म में यह कुत्ता अमर है। चार्ली को कुत्तों से बहुत प्यार था। एक बार चार्ली सड़क के एक कुत्ते की आँखों में कातरता देखकर द्रवित हो गए और उसे होटल में ले जाकर भरपेट भोजन कराया। शायद यही वजह थी कि चार्ली कुत्ते के मूक अभिनय में कमाल की दक्षता रखते थे, जिसकी झलकियाँ उनकी फिल्मों में दिखाई देती है।
मेरा अंदाज
अपनी खास घसीटवाँ चाल के बारे में चार्ली ने एक बार बताया था कि उन्होंने रुमी बिंक्स नाम आदमी को देखकर इसे अपनाया था। रुमी उनके चाचा के पब के बाहर कोचवानों के घोड़े संभालकर रखने का काम करता था, जिससे उसे टिप में एकाध पेनी मिल जाती थी। वह नाटा-सा आदमी था, लेकिन किसी विशालकाय आदमी की पतलून पहनता था। उसके पाँव फूले हुए थे, जिन्हें वह घसीटकर चलता था।
चार्ली को उसकी चाल देखकर बड़ा आनंद आया। जब उसने अपनी माँ को उसकी चाल की नकल करके दिखाई तो माँ ने कहा कि शरीर से लाचार लोगों की नकल नहीं करना चाहिए। लेकिन खुद चार्ली को उसकी नकल करते देखकर देर रात तक माँ हँसती रही। अभ्यास के साथ चार्ली ने यह चाल सीख ली जो उनकी पहचान बन गई।
गाँधीजी और चार्ली की मुलाकात
२३ सितम्बर १९३१ को जब गाँधीजी और चार्ली चैप्लिन संयोग से लंदन में थे तो दोनों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के वक्त गाँधीजी और चार्ली दोनों के प्रशंसकों का हुजूम रास्ते पर जमा हो गया था। बहुत भीड़ हो गई। ऐसा कहा जाता है कि इस संक्षिप्त मुलाकात में गाँधीजी ने चार्ली से कहा था कि असली आजादी तो तभी मिल सकती है जब हम गैर जरूरी चीजों से छूट सके। कहा जाता है कि इस मुलाकात के बाद ही चार्ली ने गाँधी जी के विचारों को जाना और समझा कि वे बढ़ते मशीनीकरण हैं। इस विषय पर बाद के वर्षों में चार्ली ने "मॉडर्न टाइम्स" मर्मस्पर्शी फिल्म बनाई थी जो उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में है।
मैं और मेरे काम
अपनी आत्मकथा में चार्ली ने अपने कामों के बारे में लिखा है - 'अब मैं बहुधंधी हो चला था, झाड़-फानूस की दुकान का नौकर होने से लेकर बिस्कुट, साबुन और मोमबत्ती तक बेचता था। एक डॉक्टर के यहाँ भी मैंने काम किया, जहाँ मुझे मरीजों के पेशाब के बर्तन धोने पड़ते थे। दस-दस फुट ऊँची खिड़कियाँ भी धोना होता था। एक दिन यह कहकर कि अभी मैं इस काम के लिए बहुत छोटा हूँ, मुझे हटा दिया गया।
मेरा स्कूल
मैं हैनवेस नामक स्कूल में दाखिल हुआ और लगभग एक वर्ष तक रहा। वहीं मैंने अपना नाम "चैप्लिन" लिखना सीखा और मुझे मेरे नाम से प्यार हो गया। स्कूल मेरे लिए ज्ञान का द्वार था। मुझे इतिहास, कविता और विज्ञान मुझे अच्छा लगता था मगर अंकगणित और उसका घटाना-जोड़ना बड़ा ही उबाऊ। इतिहास मुझे राजाओं की दास्तान, हत्या और युद्वों से भरी हुई लगी। भूगोल मुझे केवल नक्शों का अंबार और कविता यादों की पाठन विद्या ही लगे। कुल मिलाकर शिक्षा मुझे ज्ञान और तथ्यों की एक कतार लगी, जिससे मैं अचकचा गया।
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