रविवार, 25 अप्रैल 2010

इमली का भूत


अबे जा बे। तूने भूत देखा और भूत ने तुझे छोड़ दिया। चंद्रशेखर उर्फ चंदू ने गुल्लू से कहा। हमीद ने भी चंदू की तरफदारी की। हाँ सही तो है। इमली वाले भूत को देखने के बाद तो अच्छे अच्छों की हवा निकल जाती है। हमीद बोला महीने भर पहले अम्मी ने अब्बा को घनश्याम का किस्सा बताया था। गुल्लू ने बीच में टोका- कौन घनश्याम? अरे वही जिसकी पान की दुकान है। वह रात को कहीं से आ रहा था। वह भी भूत-वूत में विश्वास नहीं करता था। और जब वह इमली के पास से गुजर रहा था तो किसी ने उससे माचिस माँगी। घनश्याम ने जेब से माचिस निकालकर देनी चाही तो माचिस माँगने वाला आदमी बहुत ही लंबा था इतना लंबा कि इमली के पेड़ से भी लंबा।

हाँ और उसी दिन से घनश्याम बीमार पड़ा है। उसे डर लग रहा है। भैया यह भूत बड़ा खतरनाक होता है। जो उसको देख ले फिर उसे नींद नहीं आती। चंदू गुल्लू की तरफ इशारा करके बोला- और ये कह रहा है कि इसने भूत को देखा। और इसे कुछ नहीं हुआ। अब इमली वाला भूत इसका चचा लगता है जो इसे ऐसे ही छोड़ दिया। गुल्लू बोला- अरे मैं सच कह रहा हूँ।

भगवान की कसम हमीद मैंने इमली वाले भूत को देखा। हमीद-अबे झूठ मत बोल यार, तेरे कसम खाने से भगवान कहाँ मरने वाले हैं। वो तो अमर है। चंदू ने बीच में बात पकड़ी- अच्छा तो यह बता कि भूत कैसा दिख रहा था। अरे वही सफेद कपड़े पहने हुए था और क्या। तूने भूत कितनी बजे देखा? रात के १२ बज रहे होंगे और क्या। तो तूने भूत कहाँ से देखा हमीद ने पूछा। गुल्लू ने कहा- अपनी घर की छत से। पर तेरी छत से तो इमली दूर है। गुल्लू- इसलिए तो मैंने भूत को देखा पर भूत मुझे नहीं देख सका। चंदू बोला- यार मेरी बड़ी इच्छा है कि एक बार तेरी छत से इस भूत को देखूँ। मैंने आज तक भूत नहीं देखा।

और फिर तेरी छत से भूत देखने में तो डर की भी कोई बात नहीं है। हम भूत को देख लेंगे और वह हमें नहीं देख पाएगा। तो ठीक है यह बहुत अच्छा रहेगा। तो फिर कल हम तेरे घर की छत पर ही सोएँगे। गुल्लू- ठीक है मैं मम्मी से पूछ लूँगा। अगर उन्होंने हाँ कर दी तो फिर हम जल्दी ही मेरी छत से भूत को देखेंगे। तो ठीक है चंदू और हमीद ने एक साथ कहा।

दूसरे दिन सुबह तीनों मिले। तीनों की भूत के बारे में बातचीत शुरू हो गई। गुल्लू ने कहा- भूत से मुलाकात से पहले उसके बारे में और बातें जान लें तो कैसा रहेगा? मोहल्ले में एक जमना चाचा ही थे जिनके पास इमली वाले भूत के बहुत सारे किस्से थे। जमना चाचा के पास तो भूतों के किस्सों का खजाना था। तीनों जमना चाचा के पास पहुँचे। चंदू ने पूछा क्यों चाचा, आपने देखा है क्या इमली वाला भूत? अरे हाँ, क्यों नहीं देखा। भई और सब डरते होंगे उससे, अपन बिलकुल नहीं डरते। और वह अपना क्या बिगाड़ेगा। अपन को हनुमान चालीसा पूरी याद है। जैसे ही भूत आए बस हनुमान चालीसा बोलना शुरू कर दो। सुनते ही भूत की हवा निकल जाती है। हमसे तो उलटा भूत डरता है।

चाचा भूत दूसरों को परेशान क्यों करता है? गुल्लू ने पूछा। जमना चाचा ने कहा- तुमसे किसने कहा कि भूत दूसरों को परेशान करता है। भूत सिर्फ उन्हीं को परेशान करता है जो देर रात तक इधर-उधर भटकते रहते हैं। अब दिन में भला किसी को भूत दिखा है क्या? हमीद बोला आप ठीक कह रहे हैं। अम्मी भी कहती है कि रात को जल्दी घर आ जाना चाहिए। इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए। शायद वे इसीलिए कहती हैं। अब से उनकी बात का ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा। चलो अब मुझे बहुत काम है और इमली वाले भूत की बाकी बातें फिर कभी बताऊँगा, यह कहकर जमना चाचा अपने काम में लग गए। बच्चों को इस बातचीत में यह मंत्र मिला कि हनुमान चालीसा याद कर लेने से भूत की भी हवा निकाली जा सकती है।

भूत से मिलने का तीनों का इरादा अभी बदला नहीं था बल्कि अब तो उनके पास भूत से बचने के लिए हनुमान चालीसा जैसा रक्षा कवच भी था। चंदू ने हनुमान चालीसा याद कर लिया। वह रटने में वैसे भी माहिर था। गुल्लू और हमीद सिर्फ गणित के सवाल ही रट पाते और ऐन मौके पर रटे हुए में गड़बड़ की आशंका रहती थी। तो हनुमान चालीसा रटने का काम चंदू ने किया। दो दिन इस तरह निकल गए और भूत के बारे में और तरह-तरह की जानकारियाँ तीनों ने इकट्ठा कर ली। जैसे भूत को आगरे का पेठा बहुत पसंद है। इसके पीछे एक पूरी घटना थी।

एक बार मिश्रीलाल हलवाई आगरा से एक टोकनी पेठा लेकर आ रहा था। रात को आने में देर हो गई और वह इमली के यहाँ से गुजरा। घर पहुँचा तो टोकनी खाली थी। मिश्रीलाल हलवाई का कहना था कि हो न हो इमली वाले भूत ने ही पेठे निकाल लिए। तभी तो उन्हें खबर तक नहीं हुई। तीनों को यह बात सुनकर खूब हँसी भी आई कि भूत को भी आगरे का पेठा पसंद है।

दो दिनों बाद गुल्लू ने बताया कि आज रात को वे तीनों छत पर इकट्ठा सो सकते हैं। मम्मी से मैंने पूछ लिया है। तीनों खुश हो गए। भूत से मिलने का मौका आ गया था। भूत देखने की उत्सुकता लिए तीनों उस रात छत पर इकट्ठा हुए। पहले कुछ देर इधर-उधर की बातें की। भूत दिखते ही चुपचाप हो जाना है। भूत की तरफ अँगुली नहीं दिखाना है वरना हमारा चेहरा उसकी आँखों में छप जाएगा। इस तरह की सतर्कता बरतने वाली बातों को ध्यान में रखा गया।

रात को गाँव की जेल में पहरेदार ने १२ बजे के घंटे बजाए तो तीनों सावधान हो गए। चुपके से एक चादर ओढ़कर तीनों छत की मुंडेर के करीब आए और इमली की तरफ देखने लगे। इमली के पेड़ पर कुछ कुछ सफेद रंग का कपड़ा दिख रहा है। गुल्लू ने चंदू का हाथ दबाते हुए कहा देखो वो रहा भूत। चंदू और हमीद के हाथ-पैर काँपने लगे। चंदू ने धीमे स्वर में हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया।

गुल्लू ने धीरे से कहा देखा मैं न कहता था कि छत से इमली वाला भूत दिखता है। हमीद ने कहा धीरे बोलो कहीं उसने सुन लिया तो हम तीनों की खैर नहीं। सन्नाटा छा गया। भूत तो जहाँ था वहीं था सरकने का नाम नहीं ले रहा था। तीनों चाह रहे थे कि भूत का चेहरा या उसका कोई करतब भी दिखे पर ऐसा कुछ भी नहीं हो पा रहा था। तीनों चाह रहे थे कि भूत का चेहरा या उसका कोई करतब भी दिखे पर ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था।

आधे घंटे तक भूत और ये तीनों एक ही जगह जमे रहे। भूत देखकर तीनों की नींद तो उड़ ही चुकी थी और अब नींद आना भी नहीं थी। तीनों ने एक-दूसरे के हाथ कसकर थाम लिए। तभी पीछे से आवाज आई क्या देख रहे हो? तीनों को जैसे करंट लगा हो। तीनों ने पीछे मुड़कर देखा तो गुल्लू के पापा खड़े थे। गुल्लू ने कहा - पापा इमली पर भूत है। पापा ने कहा - क्या कह रहे हो? कैसा भूत? गुल्लू के पापा के आने से तीनों में थोड़ी हिम्मत आ गई थी। अब तीनों ने इमली की तरफ इशारा करते हुए कहा वह देखिए वह रहा।

गुल्लू के पापा ने इमली की तरफ देखा। इमली थोड़ी दूर थी और इसलिए साफ नजर नहीं आ रहा था। कुछ-कुछ सफेद जरूर नजर आ रहा था। गुल्लू के पापा ने गुल्लू से कहा कि नीचे से टार्च तो ले आओ। गुल्लू जाकर टार्च ले आया। गुल्लू के पापा ने इमली पर टार्चस से रोशनी की तो देखा कि एक बड़ी से सफेद पन्नी इमली की टहनियों में अटकी है और उससे ऐसा लग रहा है मानो इमली पर सफेद कुर्ता पहने कोई बैठा हो। पापा ने तीनों बच्चों से कहा देखो यह तो सिर्फ एक पॉलिथीन है।

फिर उन्होंने तीनों बच्चों से कहा कि असल में भूत होता ही नहीं है।

चंदू ने कहा पर अंकल घनश्याम पान वाले ने तो भूत देखा। गुल्लू के पापा ने कहा कि जिस तरह तुमने पॉलिथीन को भूत समझ लिया उसने भी ऐसे ही बनने वाली किसी आकृति से डरकर वहम पाल लिया होगा। आज तक किसी ने भी भूत नहीं देखा। सब इधर-उधर की बातें करते रहते हैं। वैसे भी भूत सिर्फ बुरा काम करने वालों को दिखता है, अच्छे बच्चों को भूत कभी नहीं डराता। इन सारी बातों में डेढ़ बज गया और फिर गुल्लू के पापा ने कहा कि अब तीनों सो जाओ। और छत पर भूत से डर तो नहीं लगेगा? तीनों ने एक साथ कहा - जब भूत ही नहीं है तो डर कैसा। उसके बाद तीनों ने जबभी किसी से भूत की बातें सुनी तो मन ही मन खूब हँसे।

बैलून मानव
उस दिन गरमी बहुत थी। रात के ग्यारह बजे थे। लाइट नहीं थी। सन्नी और हनी अपने कमरे में खिड़की के पास बैठे बातें कर रहे थे।
'धड़ाम,' तभी खिड़की के सामने जोरदार धमाका हुआ। दोनों चौंक गए। धमाके की रोशनी से दोनों की आँखें चौंधिया गईं। जब धुंध हटा तो दोनों ने देखा खिड़की के सामने ही बैलून जैसा कोई यान खड़ा था। धीरे-धीरे बैलून का आकार बढ़ता ही जा रहा था।
यह क्या चीज है, कहते हुए हनी खिड़की के पास आ गया। पीछे-पीछे हैप्पी भी था।
मुझे तो यह किसी एलियंस का यान लगता है।
तभी उस बैलून से घर्रघर्र की आवाज आने लगी। उस बैलून का दरवाजा खुला और करीब 4-5 अजीब से जंतु बाहर निकलकर हवा में तैरने लगे। सबकी नावें बैलून जैसी थीं। सिर और हाथ पैर भी बैलून जैसे ही थे। वे अजीबअजीब सी आवाजें निकाल रहे थे।
यह क्या कह रहे हैं। सन्नी फुसफुसाया।
पता नहीं पर इनके इरादे ठीक नहीं लग रहे।' हनी बोला।
अभी सन्नी और हनी बैलून के अंदर पहुँचे। अंदर एक पूरी प्रयोगशाला बनी थी। 2-3 कंप्यूटर लगे थे। कई रंग की बत्तियाँ जल-बुझ रही थीं।
दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। तभी हनी को कंप्यूटर के पास कुछ ईयरफोन्स नजर आए।
इससे गाने सुनने में बहुत मजा आएगा।'
कहकर हनी ने एक ईयरफोन अपने कान से लगा लिया। ईयरफोन से कुछ आवाजें आ रही थीं।
तो अब हमें क्या करना चाहिए।' एक आवाज आई।
दूसरी आवाज थी, हमें सबसे पहले यहाँ की हवा को कम करना है, ताकि यहाँ कोई भी ठीक से साँस न ले सके।'
'लेकिन इससे तो यहाँ के जीवजंतु मर जाएँगे। यहाँ की जिंदगी ही खाक हो जाएगी।' पहली आवाज थी।
दूसरे ने कहा, 'हम यही तो चाहते हैं। जब तक यहाँ के सभी प्राणी खत्म नहीं हो जाएँगे। हम यहाँ अपनी प्रयोगशाला नहीं बना सकते।'
फिर एक सरसराहट के साथ आवाज आनी बंद हो गई।
इसका मतलब यह लोग हमारे शहर में कुछ गड़बड़ी करना चाहते हैं।' ईयरफोन से सुनी हुई सारी बात बताकर हनी ने सनी से कहा, हमें इसका पता लगाना होगा।'
फिर दोनों अपने बेड पर आ गए। हनी ने अभी भी ईयरफोन अपने कान से लगा रखा था। थोड़ी देर में उन्हें नींद आ गई। दोनों सो गए।
सुबह जब नींद खुली तो दोनों हैरान थे, क्योंकि खिड़की के सामने बैलून यान की जगह कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। हालाँकि ईयरफोन अभी भी हनी के कान से लगा था। दोनों यान वाली जगह पर आ गए। पर वहाँ कुछ भी नहीं था। दोनों एक दूसरे को देखने लगे।
कल रात बेशक वे चले गए हों लेकिन वे आएँगे जरूर।' सन्नी बोला।
अच्छा ऐसा क्यों, हनी ने उत्सुकता जाहिर की।
क्योंकि वे लोग जिस मकसद से यहाँ आए थे वह एक रात में पूरा होने वाला नहीं है।
सन्नी मुस्कुराते हुए बोला, 'और फिर तुमने तो उनका ईयरफोन भी चुरा लिया है। इसलिए आज रात तो इंतजार करना ही पड़ेगा।'
रात होते ही दोनों कमरे की बत्ती बंद कर दोनों खिड़की के पास आकर बैठ गए। जैसे ही 11 बजा जोरों का धमाका हुआ। बैलून यान उतरा और बैलून मानव बाहर निकलकर हवा में तैरते हुए गायब हो गए।
हनी और सन्नी भागते हुए बाहर आए और उनकी प्रयोगशाला में घुस गए। प्रयोगशाला में कई तरह के सूट्‍स पड़े थे। दोनों ने एक सूट पहना और एक कंप्यूटर के सामने बैठ गए। एक बटन दबाया तो स्क्रीन पर कई बैलून मानव दिखाई देने लगे।
हैलो, उधर से आवाज आई, अपना कोड नंबर बताओ।
कोड नंबर? सन्नी घबरा गया।
लेकिन मेरा कोड नंबर लेकर तुम क्या करोगे? हनी ने पूछा।
अचानक उधर से आवाज आनी बंद हो गई। अभी सन्नी और हनी कुछ समझ पाते तभी बैलून मानव वापस आ गए। प्रयोगशाला के अंदर आते ही वे लैपटॉप पर कुछ करने लगे।
'अब क्या होगा।' हनी फुसफुसाया।

'कुछ नहीं होगा क्योंकि हमने जो सूट पहन रखा है, वे अदृश्य कर देने वाले हैं।' सन्नी बोला, लेकिन उनके लैपटॉप पर देखो उन्होंने अपने ग्रह से एक मिसाइल पृथ्वी की ओर मोड़ रखा है।'
तभी उनके ईयरफोन में एक बैलून की आवाज आई, 'एक्स, मुझे लगता है हमारे इर्दगिर्द कोई है। लेकिन
मैंने मिसाइल में टारगेट फिट कर दिया है। एक बटन दबाते ही पृथ्वी की सारी हवा हमारे मिसाल में सिमट जाएगी और पृथ्‍वी के सारे जीवजंतु मारे जाएँगे। हा.. हा.. हा
तुमने कुछ सुना सन्नी, हनी फुसफुसाया, 'अब हमें कुछ करना पड़ेगा।
तभी सन्नी की नजर एक लाल बटन पर पड़ी। उसने हनी को कुछ इशारा किया। हनी ने वह लाल बटन दबा दिया। मैसेज आया, क्या इस प्रयोगशाला को खत्म करना है।
सन्नी ने 'यस' का बटन दबा दिया।
कितने समय के बाद, दोबारा मैसेज आया।
दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और 10 मिनट सेट करके ओके कर दिया। फिर दोनों बाहर निकल आए।
दोनों अभी अपने कमरे में पहुँचे थे कि बैलून यान में जोरदार धमाका हुआ। प्रयोगशाला के परखच्चे उड़ गए थे।
सारे बैलून मानव इधरउधर छिटके पड़े थे।
धीरे-धीरे वे मोम की तरह पिघल रहे थे। सन्नी और हनी भागकर एक बैलून मानव के पास गए।
सन्नी ने पूछा, तुम लोग कौन हो? कहाँ से आए हो?'
एक बैलून मानव ने बताया, हम दूसरे ग्रह के प्राणी हैं। हम पूरी पृथ्वी की हवा को समाप्त कर पृथ्वी के प्राणियों को मार डालना चाहते थे, ताकि यहाँ अपने ग्रह के प्राणियों को ला सकें। इसके लिए हम लोगों ने सबसे पहले तुम्हारे शहर को चुना। यहीं अपने यान से संचालित करके एक मिसाइल भी तुम्हारी पृथ्वी पर छोड़ने वाला था। लेकिन तुम दोनों ने कहते-कहते उस बैलून मानव का शरीर भी मोम की तरह पिघल गया।
'हा..हा.. हमने पूरी पृथ्वी को तबाह होने से बचा लिया,' हनी जोर से ठहाका लगाकर हँसने लगा।
तभी मम्मी-पापा कमरे में आए।
मम्मी ने हनी को हिलाते हुए कहा, अरे हनी बेटा, नींद में ठहाके क्यों लगा रहे हो। उठो, सुबह हो गई। तुम तो हर समय सपना ही देखते रहते हो।'
हनी आँखें मलता हुआ खिड़की के पास गया। पर सामने कुछ भी नहीं था।
इसका मतलब मैंने फिर से कोई सपना देखा है।' बड़बड़ाता हुआ हनी बाथरूम में घुस गया।

पप्पूप्रकाश के नए दोस्त
पप्पू का नए शहर के नए स्कूल में आज पहला दिन था। वह थोड़ा उदास था। बाकी बच्चे तो खुशी-खुशी स्कूल जा रहे थे क्योंकि उन्हें अपने दोस्त मिलने वाले थे पर पप्पू को खुशी नहीं थी। पप्पू के पापा ने उसकी आगे की पढ़ाई के लिए अपना ट्रांसफर शहर में करवा लिया था।

उसके पापा चाहते थे कि पप्पू शहर के अच्छे स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बने। ट्रांसफर से पप्पू खुश नहीं था क्यों‍कि गाँव से शहर आने में उसके सारे दोस्त गाँव में ही छूट गए। गाँव में पप्पू और उसके दोस्तों की पूरी टीम हुआ करती थी। गाँव में जुलाई की बारिश में जब स्कूल शुरू होता तो पप्पू बहुत खुश होता था। स्कूल में पप्पू अपने दोस्तों के साथ पढ़ता और फिर शाम को सभी इकट्‍ठा स्कूल के मैदान पर फुटबॉल खेलते। क्या खूब मजे के दिन थे पर ये मजे के दिन अब हवा हो गए थे।

शहर का सेंट पॉल स्कूल तो एकदम ही नई जगह थी। यहाँ वो मजा कहाँ था। इसी बात से पप्पूप्रकाश पटेल उर्फ पप्पू उदास था। पहले दिन स्कूल की बस आई। पप्पू ने बैग उठाया और बस में चढ़ गया। स्कूल गया तो पूरा दिन अकेला बैठा रहा। क्लास में दूसरे स्टूडेंट आपस में बातचीत कर रहे थे और पप्पू अकेला बैठा उनकी बातों को सुन रहा था। वह किससे बात करे? गाँव के स्कूल का यह होनहार स्टूडेंट यहाँ आकर गुमसुम हो गया था।

एक सप्ताह बीतने तक उसकी स्कूल में किसी से दोस्ती नहीं हुई। पप्पू ने भी किसी से दोस्ती करने की कोई पहल नहीं की। क्लास के दूसरे स्टूडेंट आपस में बातचीत कर रहे थे और पप्पू अकेला बैठा उनकी बातों को सुन रहा था। वह किससे बात करे? गाँव के स्कूल का यह होनहार स्टूडेंट यहाँ आकर गुमसुम हो गया था। एक सप्ताह बीतने तक उसकी स्कूल में किसी से दोस्ती नहीं हुई।

पप्पू ने भी किसी से दोस्ती करने की कोई पहल नहीं की। क्लास के दूसरे स्टूडेंट अपने पुराने दोस्तों के साथ बातचीत में व्यस्त रहे तो नए स्टूडेंट की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। पप्पू की तरह नए स्टूडेंट तो क्लास में और भी थे पर उन्होंने दोस्त बना लिए थे।

पप्पू की समझ में नहीं आता था कि दोस्ती किससे करे। मन नहीं लगने से पढ़ाई में भी वह पिछड़ता जा रहा था। फिर गाँव के हिन्दी मीडियम स्कूल से शहर के अँगरेजी मीडियम स्कूल में आने पर कोर्स भी बढ़ गया था। भट्‍ट सर ने क्लास में पहला टेस्ट लिया और रिजल्ट आया तो पप्पूप्रकाश को 10 में से 1 ही नंबर मिला। यह क्लास में सबसे कम था। बस फिर क्या था भट्‍ट सर ने पप्पूप्रकाश को खूब डाँट पिलाई।

उस दिन घर जाते-जाते पप्पू रूआँसा हो गया। कहाँ तो पप्पू गाँव के स्कूल में सबसे होनहार छात्र के तौर पर देखा जाता था। टीचर्स का चहेता और कहाँ आज क्लास के सामने इस तरह टीचर की डाँट।

पप्पू घर आया तो पापा ने पप्पू को अपने पास बुलाया और पूछा - क्या बात है पप्पू, तुम इन दिनों पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं लगा रहे हो। आज भट्‍ट सर ने फोन करके बताया कि टेस्ट में तुम्हें बहुत ही कम नंबर आए हैं। क्या बात है बेटा? तुम कुछ परेशान भी लग रहे हो? पापा के पूछते ही पप्पू ने बताया कि नए स्कूल में उसका बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा है। उसे तो गाँव के स्कूल वापस जाना है।

पापा ने कहा - बेटा, मैं जानता हूँ कि तुम्हें अपने दोस्तों की याद आती होगी पर तुम्हें डॉक्टर भी तो बनना है। इसलिए तो तुम्हारा एडमिशन यहाँ करवाया है। पप्पू ने कहा - पर नया स्कूल मुझे अच्छा नहीं लगता। पापा ने कहा - बेटा कुछ दिन और देखो फिर धीरे-धीरे यहाँ भी दोस्त बन जाएँगे।

अगले दिन पप्पू स्कूल पहुँचा। इस दिन क्लास में कोई लिस्ट तैयार की जा रही थी। पप्पू ने सुना कि इंटरस्कूल फुटबॉल कॉम्पीटिशन हो रही है और उसके लिए टीम में नाम लिखे जा रहे हैं। तुम भी अपना नाम लिखवा दो आशुतोष ने पप्पू से कहा पर पप्पू ने कोई उत्साह नहीं दिखाया।

स्कूल की टीम तो बन गई बस एकस्ट्रा खिलाड़ी की कमी थी तो आशुतोष ने कहा कि पप्पूप्रकाश का नाम लिख लो। इस तरह न चाहते हुए भी पप्पूप्रकाश टीम में अतिरिक्त खिलाड़ी हो गए। इसी बीच भट्‍ट सर क्लास में आए और उन्होंने दो सप्ताह बाद अगले टेस्ट की तारीख बता दी थी और पप्पू दोबारा उनकी डाँट नहीं सुनना चाहता था तो उसने पढ़ाई को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।

वह दिन भी आ पहुँचा जब इंटरस्कूल फुटबॉल काम्पीटिशन शुरू होनी थी। स्कूल का मैदान बड़ा था इसलिए मेजबानी सेंटपॉल स्कूल को मिली थी। सेंट पॉल स्कूल का पहला मैच स्टार पब्लिक स्कूल की टीम से था। पप्पूप्रकाश टीम के एक्स्ट्रा खिलाड़ी के तौर पर सामान संभाले बैठे थे। पप्पू की इस काम्पीटिशन में कोई दिलचस्पी नहीं थी।पर चूँकि आशुतोष ने ना‍म लिखवा दिया था तो उसने नाम कटवाना ठीक नहीं समझा। सोमवार के दिन हो रहे इस उद्‍घाटन मैच में दोनों ही टीमों का हौसला बढ़ाने के‍ लिए समर्थक मैदान के बाहर जमा थे। पहले मैच में विजयन के 2 गोल की मदद से मेजबान टीम ने स्टार विजयन पब्लिक स्कूल को आसानी से हरा दिया।

विजयन मैच का हीरो बन गया था। क्लास के सारे स्टूडेंट विजयन विजयन के नारे लगा रहे थे। विजयन को देखकर पप्पू को लगा कि अगर वह भी टीम में खेलता तो विजयन से बढ़िया प्रदर्शन कर सकता था। स्पर्धा आगे बढ़ी। सेंट पॉल स्कूल को अपना अगला मैच शुक्रवार को सेंट्रल स्कूल की टीम से खेलना था। सेंट्रल स्कूल की टीम मजबूत थी। इसलिए रणनीति बनने लगी। पप्पू प्रकाश चुपचाप सुनता रहा।

इसके बाद शुक्रवार भी आ पहुँचा जिसका सभी को इंतजार था। सेंट्रल स्कूल की टीम में अच्छे खिलाड़ी थे जो स्टेट लेवल तक फुटबॉल खेल चुके थे और यह मुकाबला जीतना सेंट पॉल स्कूल के‍ लिए सुई में धागा पिरोने जैसा था। मुकाबला शुरू हुआ। पहले हॉफ के 11 वें मिनट में सेंट्रल स्कूल के डेनियल ने शानदार गोल करके अपनी टीम को बढ़त दिलाई। इसके बाद सेंट पॉल स्कूल के खिलाड़ियों ने बहुत कोशिश की पर वे यह गोल उतार नहीं सके। रैफरी ने पहला हॉफ पूरा होते ही सीटी बजाई। सेंट्रल स्कूल के समर्थक अपनी टीम के प्रदर्शन से बहुत खुश थे और सेंट पॉल स्कूल के खेमे में चुप्पी थी। समर्थक भी निराश थे।

थोड़ी देर बाद दूसरा हॉफ शुरू हुआ। दूसरे हॉफ में विजयन पर ज्यादा जिम्मेदारी थी। लिहाजा शुरुआत में ही गोल करने की कोशिश में दूसरी टीम के खिलाड़ी से टककर हुई और विजयन गिर पड़ा। उसके पैर में चोट लग गई। सेंट पॉल स्कूल के कैंप में खामोशी छा गई।

स्टार खिलाड़ी चोटिल हो गया, अब तो मैच जीतना असंभव हो गया। विजयन की जगह लेने के लिए पप्पू को मैदान में उतरना पड़ा। पप्पू को भी इसकी उम्मीद नहीं थी। पर अब तो टीम को उसकी जरूरत थी। पप्पू ने तुरंत मैदान संभाल लिया। सेंट पॉल स्कूल के खिलाड़ियों में कुछ चर्चा हुई और पप्पू को फारवर्ड पोजीशन पर खेलने को कहा गया। थोड़ी देर में पप्पू ने गजब के फुटवर्क से सभी को हैरान कर दिया।

स्कूल में किसी को यह नहीं मालूम था कि पप्पू गाँव में फुटबॉल टीम में शानदार खिलाड़ी था। दूसरे हॉफ के 15वें मिनट में पप्पूप्रकाश ने आशुतोष के पास को बहुत तेजी के साथ गोल में दे मारा और यह हुआ गोल। पप्पू..पप्पू टीम समर्थकों ने नारे लगाए। इस चिअरअप ने पप्पू में अचानक बदलाव ला दिया। सेंट पॉल स्कूल के खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। अब गेम बराबरी पर आ गया था। पूरी टीम पप्पूप्रकाश के इस तरह के खेल से चमत्कृत थी। पप्पू को विपक्षी टीम ने भी कम आँका था। पप्पू ने ताली बजाकर सभी खिलाड़ियों को इकट्‍ठा किया और गेम प्लान बनाया।

पप्पू को लगा कि उसे गाँव वाले दोस्तों की तरह दोस्त मिल गए हैं। खेल फिर शुरू हुआ और इस बार रणनीति के तहत पप्पू ने आशुतोष को पास दिया और खुद दौड़कर डेविड को कवर किया। इसके बाद बॉल जब डेविड के पास आई तो पप्पू ने उसे छकाते हुए बॉल को निकाल लिया और गोल की तरफ लेकर चला।

विपक्षी टीम के गोल के नजदीक जोसेफ ने बॉल को ऊँचा उछाल दिया। इस पर पप्पू ने हैडर मारा और यह हुआ गोल। इस बार तो टीम के सभी खिलाड़ियों ने पप्पू को घेर लिया। क्लास में अकेला रहने वाला पप्पू हीरो बन गया। अब पूरी क्लास पप्पू को पहचानने लग गई थी। हर तरफ से आवाज आ रही थी पप्पू... पप्पू..। पप्पू भी अपने प्रदर्शन से खुश था। अचानक टीम में और स्कूल में पप्पू के कई दोस्त हो गए। और इसके बाद सेंट पॉल स्कूल ने यह मैच 2-1 से जीत लिया। पप्पू को टीम के साथी कंधे पर बिठाकर मैदान से लाए। पप्पूप्रकाश हीरो बन गए। स्पर्धा में पप्पूप्रकाश के जादुई प्रदर्शन के दम पर सेंट पॉल स्कूल चैंपियन बना और मैन ऑफ द सीरिज पप्पूप्रकाश घोषित किए गए।

पप्पूप्रकाश इसके बाद क्लास तो क्या स्कूल में ही जाना-पहचाना नाम हो गए। अब हर तरफ उनके दोस्त ही दोस्त थे। क्लास में तो पप्पूप्रकाश ने 10 में 7 नंबर पाए, जो क्लास में दूसरे सबसे ज्यादा थे। अब पप्पूप्रकाश को नए दोस्त मिल गए थे और उसका मन भी स्कूल में लग गया था।

मोहन प्रेम बिना नहीं मिलते
मोहन प्रेम बिना नहीं मिलते,
चाहे कर लो कोटि उपाय।
मिले न यमुना, सरस्वती में,
मिले न गंग नहाय।।
प्रेम-नगर में मोहन ढूँढ़ो,
अपनी झलक दिखाय।
मोहन प्रेम ...

गुरुजी ने भजन समाप्त किया और आवाज लगाई बेटा भोला - 'मैं पंडिताई करने चार-पाँच दिन के लिए पास के गाँव में जा रहा हूँ, तब तक तुम अपने 'बाल-गोपाल' का ध्यान रखना, अपने साथ उन्हें भी नहला देना और जो कुछ अपने लिए बनाओ, उसका भोग उन्हें भी लगा देना।'

भोला ने कहा - 'जी गुरुजी! भोला को ऐसा समझाकर गुरुजी दूसरे गाँव में पंडिताई करने चले गए। दूसरे दिन सुबह जब भोला, गुरुजी की गायों को चराने के लिए जंगल ले जाने लगा तो उसे याद आया कि गुरुजी ने कहा था - 'बाल-गोपाल को भी नहलाना और भोग लगाना।' उसने सोचा गायों को जंगल में छोड़कर गोपाल को नहलाने और भोजन कराना इतनी दूर फिर से कौन आएगा? फिर बाल-गोपाल भी यहाँ अकेले रह जाएँगे, चलो उन्हें भी साथ‍ लिए चलते हैं।

ऐसा सोचकर भोला ने एक पोटली में चार गक्कड़ (मोटी रोटी) का आटा स्वयं के लिए तथा दो गक्कड़ का आटा बाल-गोपाल के लिए लिया, साथ में थोड़ा सा गुड़ रखकर फिर उसी पोटली में बाल-गोपाल की मनोहर छवि वाली पीतल की मूर्ति भी रख ली और गौएं लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा।

भोला दस-बारह वर्ष का, नाम के अनुरूप भोला-भाला ग्रामीण बालक था। पंडितजी गाँव के मंदिर में पूजन करते और भोला उनकी गौएं चराता, मस्त रहता, यही उसका काम था। जंगल में पहुँचकर भोला ने पास ही बहने वाली नदी के किनारे गायों को चरने के लिए छोड़ दिया।

फिर पोटली से 'बाल-गोपाल' की मूर्ति को निकालकर बोला - जब तक मैं गौएं चराता हूँ तब तक तुम अच्छी तरह नदी में स्नान कर लो। जब मैं भोजन तैयार कर लूँगा, तब तुम्हें भी आवाज लगा दूँगा, आकर भोजन कर लेना।'

ऐसा कहकर भोला ने 'बाल-गोपाल' की मूर्ति को नदी के किनारे रख दिया और गौएं चराने में मस्त हो गया। दोपहर होने पर भोला ने जल्दी से नदी में दो-तीन डुबकी लगाई और अंगीठी जलाकर गक्कड़ बनाने में जुट गया। भोजन तैयार कर उसने एक पत्तल पर दो गक्कड़ तथा थोड़ा सा गुड़, 'बाल-गोपाल' के खाने के लिए रख दिया तथा चार गक्कड़ और थोड़ा सा गुड़ अपने लिए एक पत्तल पर रख लिया और फिर आवाज लगाई - 'बाल-गोपाल जल्दी आओ, बहुत नहा लिया, भोजन तैयार है।' मगर बाल-गोपाल नहीं आए, भोला ने फिर आवाज लगाई - 'भैया गोपाल... जल्दी आओ... मुझे बहुत जोर की भूख लग रही है।'

कई बार बुलाने पर भी जब बाल-गोपाल भोजन करने नहीं आए, तब भोला को गुस्सा आ गया, उसे जोर की भूख लगी थी और बाल-गोपाल आवाज लगाने पर भी भोजन करने के लिए नहीं आ रहे थे। इस बार भोला ने थोड़े गुस्से में आवाज लगाई - 'गोपाल आते हो या मैं डंडा लेकर आऊँ।' मगर गोपाल तब भी नहीं आए। अब तो भोला का भोला-सा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

वह डंडा लेकर जैसे ही नदी किनारे की ओर बढ़ा, बाल-गोपाल झट नदी से बाहर निकलते हुए बोले - भैया भोला, मारना नहीं, मैं आ गया, दरअसल मैं तैरते-तैरते नदी में काफी दूर तक निकल गया था। वापस लौटने में देर हो गई।' भोला का गुस्सा शांत हो गया,उसने कहा - 'ठीक है, अब कल से नदी में दूर तक नहीं जाना, बीच में पानी काफी गहरा है।'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें