शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

प्रकृति और संस्कृति का मेल


मेट्रो शहरों की भागती-दौडती जिंदगी में जब दिल और दिमाग दोनों सुकून के पलों की तलाश में हो तो ऐसे में केंद्र शासित राज्य दादरा व नगर हवेली का नाम ध्यान में आता है। यह ऐसा ही नाम है जिसे हमनें सामान्य ज्ञान की किताबों से ही जाना-समझा। सिलवासा यहां का मुख्यालय है। दोनों तरफ से पेडों से घिरी हुई सडकें, क्षितिज तक फैली छोटी-छोटी पहाडियां, खिलखिलाती नदियां, सफेद चादर के समान जल-प्रपात, मखमली घास के मैदान.. छोटे से सिलवासा में पर्यटकों और प्रकृतिप्रेमियों के लिए बहुत कुछ समाया हुआ है। हर कदम पर कुछ नया, कुछ रोमांचक और थोडी ताजगी। सिलवासा पर प्रकृति किस तरह से मेहरबान हुई है, इस बात का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि यहां के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का चालीस फीसदी आरक्षित वनक्षेत्र है। ये जंगल जबर्दस्त जैव विविधता से भरपूर हैं और कई किस्म के पक्षियों व जानवरों का बसेरा हैं। जंगलों में ट्रैकिंग पर जाइए, कठफोडवे की ठक-ठक के बीच दुर्लभ वनस्पतियों व औषधियों की सुंगध से मन को ताजा कीजिए और तितलियों के साथ रेस लगाइए.. यकीन मानिए कि प्रकृति की गोद से उतरने का मन नहीं करेगा। आप सतमलिया वन्यजीव अभयारण्य में जाएंगे तो सांभर, नीलगाय व चीतल मानो फैशन परेड करते मिलेंगे। अगर आपका मन जंगल के राजा शेर (एशियाटिक लॉयन) के दीदार का हो तो वसोना में सफारी का आनंद भी लिया जा सकता है। सुरक्षित वाहनों में बैठकर आप 20 हेक्टेयर में फैले इस क्षेत्र में शेर से आंख मिलाने की जुर्रत भी कर पाएंगे। देश में शेरों की कम होती तादाद को देखते हुए यहां जूनागढ से शेर लाए गए थे।

संस्कृति के दस्तावेज

सिलवासा आए भी, लेकिन यहां के लोकनृत्यों और रीति-रिवाजों से अनजान रहे तो सिलावासा भ्रमण को पूरा नहीं माना जा सकता। यहां ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां के मूल निवासियों के रंगारंग लोकनृत्य, अनूठे रीति-रिवाज और अनूठे खान-पान का अनुभव लेना भी अपने आप में एक अनूठा अहसास है। यह अनुभव आपको सैकडों साल पहले के दौर में ले जाएगा। सिलवासा का ही जनजातीय संग्रहालय अपने अतीत की बढिया कहानी कहता है। कई स्मारकों की लकडियां व पत्थर दरअसल वहां के सांस्कृतिक इतिहास के दस्तावेज हैं। सिलवासा को वार्ली संस्कृति का घर भी माना जाता है। वार्ली भाषा दरअसल मराठी व गुजराती भाषाओं का एक मिश्रण है जिसे स्थानीय शैली में बोला जाता है।

एक समय था जब सिलवासा कई सदियों तक गोवा, दमन व दीव के साथ मिलकर पुर्तगालियों का उपनिवेश था। इसीलिए यहां भारतीय-पुर्तगाली संस्कृति की एक खास छाप देखने को मिलती है। इसी वजह से यहां बडी संख्या में रोमन कैथोलिक ईसाई भी हैं।

वॉटर स्पो‌र्ट्स का आकर्षण

द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक त्रयंबकेश्वर यहां से 90 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा श्री राम के वनवास से जुडे कुछ स्थानों को 140 किलोमीटर दूर नासिक में देखा जा सकता है। आप चाहें तो दिनभर में शिरडी (90 किलोमीटर) जाकर साई बाबा के दर्शन करके शाम को वापस सिलवासा लौट सकते हैं। सैर-सपाटे के शौकीन हैं तो नासिक के कई वाइनयार्ड और वाइनरीज आपको बेहद आकर्षक लगेंगे। वे भी सिलवासा से बेहद नजदीक हैं।

सिलवासा से पांच किलोमीटर दूर दादरा पार्क और 35 किलोमीटर दूर दुधनी झील है। दादरा पार्क दरअसल वनगंगा कहलाता है। साढे सात हेक्टेयर से भी बडे इलाके में फैले इस पार्क में एक द्वीप है जो जापानी शैली के पुलों से जुडा है। पेड, झरने, नावें, रेस्तरां व जॉगिंग ट्रैक पार्क को इतना खूबसूरत बना देती हैं कि हर साल चार लाख से ज्यादा सैलानी इसे देखने आते हैं। इसकी लोकप्रियता का यह आलम है कि बीसियों फिल्मी गाने यहां शूट किए जा चुके हैं।

दुधनी झील में कई तरह के वाटर स्पो‌र्ट्स का इंतजाम है। सिलवासा जाने वाले वहां जाने से कभी नहीं चूकते। दुधनी के रास्ते में ही बिंद्राबिन नाम से ऐतिहासिक शिव मंदिर भी है। यहां भी पर्यटकों की सुविधा को देखते हुए टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स तैयार कर दिया गया है। सिलवासा में प्रवेश से ठीक पहले ही पिपरिया में हिरवावन गार्डन है। यह बगीचा आदिवासियों की हरियाली की देवी हिरवा के नाम पर है। वाकई बगीचा उसी अनुरूप है भी। सिलवासा शहर में चर्च ऑफ ऑवर लेडी ऑफ पाइटी पुर्तगाली शिल्प का बढिया नमूना है। सिलवासा को लैंड ऑफ ऑल सीजंस भी कहा जाता है। जून से मानसून शुरू हो जाता है। वहां की हरियाली में मानसून का भी अलग मजा है, लेकिन आप चाहें तो गरमियां तेज होने से पहले भी वहां की सैर कर सकते हैं।

कब जाएं

सिलवासा जाने के लिए सभी मौसम बढिया हैं। पर खासतौर पर मानूसन में प्राकृतिक खूबसूरती को देखने के लिए जून महीने में भी जाया जा सकता है।

कैसे पहुंचें

सिलवासा पहुंचने के लिए पहले गुजरात के वापी पहुंचना होगा। वापी वडोदरा-मुंबई के मुख्य ट्रेन मार्ग पर स्थित है। मुंबई जाते हुए वापी वडोदरा से 200 और सूरत से 90 किलोमीटर दूर है। जबकि मुंबई से उत्तर की ओर आते हुए वापी 170 किलोमीटर दूर है। वापी से सिलवासा महज 10 किलोमीटर दूर है और वहां टैक्सी या बस आदि किसी भी साधन से पहुंचा जा सकता है।

कहां ठहरें

सिलवासा में कई रेंज के होटल मिल जाएंगे। बस स्टैंड के आसपास कई बजट होटल हैं। जो लोग गहरी जेब वाले हैं, उनके लिए दमनगंगा के किनारे व दादरा पार्क इलाके में कई आरामदेह रिजॉर्ट भी हैं। दरअसल दमनगंगा नदी ही दमन व सिलवासा को अलग करती है। दुधनी में कौंछा गांव में बेहद शानदार हिमईवन हेल्थ रिजॉर्ट भी है। पश्चिमी घाट के ठीक कदमों में स्थित यह जगह ट्रैकर्स की भी खास पसंद है।

अमन का दमन

दमन को देश के पश्चिमी तट पर सबसे आसानी से देखा जा सकता है। दमनगंगा नदी के अरब सागर से मिलन के ठीक मुहाने पर बसा हुआ है, दमन शहर। देश के विभिन्न लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के सामने दमन का नाम कभी-कभार ही कानों को सुनाई पडता है। पर अपनी खूबसूरती के चलते पर्यटकों के लिए यह जगह आकर्षण का केंद्र दिखाई देती है। दमन को अपनी ऐतिहासिक विरासत के कारण कई संस्कृतियों का मिलन-बिंदु भी माना जाता है, शहरी व आदिवासी, भारतीय व पुर्तगाली।

लहरों से धुलते किनारे

दमन में दो समुद्रतट हैं- देवका बीच और जामपोरे बीच। देवका बीच जहां चट्टानों से भरा है, वहीं जामपोरे तट एक आदर्श, सुंदर समुद्रतट है। यह समुद्र में तैरने के शौकीन लोगों के लिए भी बहुत बढिया जगह है। यहां एक एम्यूजमेंट पार्क तट पर बना हुआ है।

जुडवां किलों का शहर

दमन का बोम जीसस चर्च सन् 1500 के लगभग बनवाया गया था। 1603 में इसका पुनर्निर्माण हुआ। तब से यह लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह चर्च शिशु जीसस को समर्पित है। यहां छह संतों की प्रतिमाएं हैं। चर्च का शिल्प भी बेहद आकर्षक है।

पारगोला गार्डन उन पुर्तगाली सैनिकों की याद में बना हुआ है जिन्होंने दादरा व नगर हवेली की आजादी की लडाई में अपनी जान की बाजी लगा दी थी। इस स्मारक का ढांचा ग्रीक शिल्प को समर्पित है। ग्रीस की राजधानी एथेंस में पेंथेओन से यह काफी मिलता-जुलता है।

दमन के दो हिस्सों- मोटी दमन और नानी दमन में एक-एक किला भी है। इसीलिए दमन को जुडवां किलों का शहर भी कहा जाता है। मोटी दमन का यह किला किसी भी सैलानी को सहज ही आकर्षित कर लेता है। सन् 1559 में बना यह किला तीस हजार वर्ग फुट इलाके में फैला है। आपको यह जानकर अचंभा होगा कि आज भी कई पुर्तगाली परिवार चर्च में ही रह रहे हैं। यहां का लाइटहाउस, शानदार बगीचे, ऐतिहासिक स्मारक व प्राचीन गोथिक शैली के चर्च बरबस ध्यान खींच लेते हैं। नानी दमन में भी एक किला जो मोटी दमन की तरह काफी बडा तो नहीं है, लेकिन इसी के साथ यहां एक प्राचीन चर्च भी है। नानी दमन में नानी दमन जेट्टी भी है जहां मछुआरों की नौकाएं खडी होती हैं। यहां जेट्टी से काफी करीब गांधी पार्क भी है।

कब जाएं

दमन समुद्रतट पर है, लिहाजा यहां सर्दियों में सर्दी उतनी नहीं पडती जितनी उत्तर भारत के बाकी इलाकों में पडती है। उत्तर की ठंड और गोवा की भीड से बचना हो तो दमन बेहद आकर्षक विकल्प हो सकता है। यूं यहां पूरे साल में कभी भी जाया जा सकता है।

कैसे पहुंचें

दमन पहुंचने के लिए पहले गुजरात में वापी आना होगा। वडोदरा-मुंबई के मुख्य ट्रेन मार्ग पर वापी स्थित है। वापी मुंबई जाते हुए वडोदरा से 200 और सूरज से 90 किलोमीटर दूर है। जबकि मुंबई से उत्तर की ओर आते हुए वापी 170 किलोमीटर दूर है। वापी से दमन महज 10 किलोमीटर दूर है और वहां टैक्सी या बस इत्यादि किसी भी साधन से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से मुंबई यहां सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है।

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