शनिवार, 8 मई 2010

बच्चो, अच्छे बनो!




हर काम के लिए व्यक्ति के अंदर शक्ति का होना आवश्यक है। शक्ति दो प्रकार की होती है। शारीरिक तथा मानसिक। जो व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है उसके शरीर और मन दोनों में शक्ति होना आवश्यक है। शरीर की शक्ति आती है शरीर को स्वस्थ रखने से और शरीर को स्वस्थ रखने से और मन की शक्ति आती है सत्य के आचरण से। शरीर और मन दोनों की शक्तियाँ जब तक व्यक्ति में हों तभी तक वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली कहलाने का दावा कर सकता है। दोनों में से केवल एक ही शक्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।
कालू नाम का एक लड़का था। वह रोज नियमपूर्वक कसरत करता था, अच्छी तरह खाता-पीता था। अपने स्वास्थ्‍य का बहुत ही ध्यान रखता था, किंतु न तो वह पढ़ता-लिखता था, न ही ज्ञान-चर्चा करता था। बड़ा होने पर वह शरीर से हट्‍टा-कट्‍टा तो हुआ, परंतु मानसिक बल उसके पास कुछ नहीं था। लोगों को मारपीट की धमकी देकर ही उनसे रुपया-पैंसा ऐंठ लेता था और उसी से अपना काम चलाता था।

ऐसा करते-करते एक दिन वह डाकुओं के दल में जा मिला। पुलिस के डर से भयभीत वह हमेशा अपने आप को छिपाए-छिपाए रहता था। शरीर में इतना बल रखते हुए भी उसे एक दिन पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। क्या कालू को हम शक्तिशाली कह सकते हैं? नहीं, मानसिक बल न रहने के कारण उसका शारीरिक बल व्यर्थ ही नहीं गया, उसकी मृत्यु का कारण भी बना।

इसके विपरीत रामानुजम नाम का लड़का था। वह गणित में बहुत ही अधिक कुशल था। उसे केवल अपनी किताबों से ही प्रेम था। हिसाब बनाते-बनाते न उसे खाने-पीने की सुध रहती न अपने शरीर के आराम की। छोटी-सी उम्र में ही उसने बहुत कुछ जान लिया। यहाँ तक कि उसके एक अँगरेज प्रोफेसर उसे विश्वविख्यात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ले गए ताकि उसे गणित के अध्ययन में सुविधा हो। लेकिन निरंतर अवहेलना के कारण उसके शरीर का सारा बल जाता रहा था। उसे टीबी हो गई और 25 साल की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। वह संसार को बहुत कुछ दे सकता था, किंतु शरीर के बल के अभाव के कारण उसका जीवन एक प्रकार से व्यर्थ हो गया।

इन दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है‍ कि शारीरिक और मानसिक बल एक-दूसरे के बिना निरर्थक हैं। शरीर में बल प्राप्त करने के लिए उसकी देखभाल बहुत आवश्यक है। जब तक बच्चा छोटा रहता है, उसका स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उसके माता-पिता पर रहती है। बड़े होने पर अपने शरीर की देखभाल स्वयं करना बहुत आवश्यक है। आरंभ से ही ठीक आदतें डालनी चाहिए। समय से खानापीना, सोना, खेलना शरीर के स्वास्‍थ्‍य के लिए अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त भोजन को रुचि तथा प्रेम से करना भी बहुत आवश्यक है।

स्वाद वस्तु में नहीं जीभ में होता है। स्वस्थ आदमी जब क्ष‍ुधा के साथ भोजन पर बैठेगा तो परोसी हुई हर अच्छी वस्तु खाने की आदत डालना बहुत अच्छा रहता है। खाने-पीने की कुछ चीजें अवश्य ही हानिकारक हैं - जैसे सड़े-गले फल, सड़क पर बिकने वाली खुली भोजन सामग्री, बिना धुली गंदी चीजें, तंबाकू शराब इत्यादि। इन चीजों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से कसरत करना, टहलना भी स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। शरीर भगवान की एक अनमोल देन है। उसे भगवान का वरदान मानकर हमेशा स्वस्थ, साफ-सुथरा और सुंदर रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, तभी शरीर में बल रहता है और तभी व्यक्ति अपने जीवन के उद्‍देश्य की प्राप्ति के लिए पूरी तरह चेष्टा कर सकता है।

जो व्यक्ति शरीर की देखभाल नहीं करते, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं। शरीर की देखभाल का स्थान प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति की दिनचर्या में होना नितांत आवश्यक है।

स्वस्थ शरीर के बिना सफल जीवन की कामना करना व्यर्थ है। शरीर की शक्ति ही मन की विविध शक्तियों को कार्य रूप देने में सफल हो सकती है। स्वस्थ जीवन बल यही शरीर की एकमात्र शक्ति है, किंतु इसके विपरीत मन की शक्तियाँ ही कई प्रकार की होती हैं। उनके नाम हैं बुद्धि, दृढ़ता और कल्पना। ये शक्तियाँ सब व्यक्तियों में समान रूप से निहित नहीं होतीं, लेकिन न्यूनाधिक मात्रा में हर एक के पास विद्यमान रहती हैं। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति यदि चाहे तो इनका और अधिक विकास भी सहज ही कर सकता है।

यह सच है कि मन के स्वास्थ्य के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है और साथ ही शरीर के स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना भी आवश्यक है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मन सूक्ष्म है, उसकी देखभाल करना शरीर की देखभाल करने की अपेक्षा अधिक कठिन है। इसलिए पहले शरीर को स्वस्थ बनाकर ही मन के स्वास्थ्‍य पर ध्यान देना उचित है। स्वस्थ मन वह है जिसकी बुद्धि हमेशा अच्छी बातों की प्रेरणा देती है तथा निरंतर ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करती है। स्वस्थ मन की दृढ़ता व्यक्ति को उत्साहित रखती है और उसे अपने हर काम को पूरा करने में मदद देती है। स्वस्थ मन की कल्पना व्यक्ति को ऊँचा उठाने और अधिक अच्‍छा बनने में सतत सहायता करती है।

अस्वस्थ मन को बुद्धि बुरी दिशा की तरफ ले जाती है। अस्वस्थ मन में दृढ़ता होती ही नहीं और अस्वस्थ मन की कल्पना सदा भयावह होती है। बुद्धि दूसरों की बुराई सोचती है। दृढ़ता न रहने के कारण अस्वस्थ मन वाला व्यक्ति कोई भी काम नहीं कर पाता। उसकी कल्पना उसे असफलता तथा पतन की तस्वीरें ही उसके आगे प्रस्तुत करती है।

अब प्रश्न उठता है कि मन को स्वस्थ कैसे रखा जाए? मन को स्वस्थ रखने के लिए दो बातें बिल्कुल ही आवश्यक हैं। भगवान में दृढ़ विश्वास और सत्य का आचरण। भगवान में विश्वास न रहने पर व्यक्ति का जीवन अव्यवस्थित हो उठता है। उसे पता नहीं चलता कि वह जीवित ही क्यों है? ऐसे प्रश्न मन में उठकर उसे अशांत बना देते हैं और उसकी बुद्धि उद्‍भ्रांत-सी रहती है।

भगवान में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह जानता है कि भगवान ने उसे बनाया है, उसकी आत्मा भगवान का ही एक अंश है। भगवान ने उसे संसार में एक खास उद्‍देश्य से भेजा है - वह सुखी रहे, ज्ञान प्राप्त करे और अपने प्राप्त किए हुए ज्ञान को संसार को अच्छा करने में काम में लाए। ऐसा सोचने वाले व्यक्ति का मन सदा प्रसन्न, सदा शांत रहता है और अपने आप में वह शक्ति का अनुभव करता है। जो व्यक्ति यह जान लेता है कि वह एक उद्‍देश्य से संसार में आया है वह कभी भी बुरा आचरण नहीं करता है। सत्य को अपने जीवन की धुरी बनाकर वह हमेशा कठिन काम करता है।

अपना कर्तव्य भली-भाँति निभाता है और उसका मन सशक्त और प्रफुल्ल रहता है। मन में शक्ति रहने के कारण वह व्यक्ति समाज में सदा प्रतिष्ठित रहता है। दूसरे लोगों का श्रद्धा-पात्र रहता है।

मन को स्वस्थ रखने के लिए मन पर नियंत्रण रखना भी बहुत आवश्यक है। आज के संसार में बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो यह कहते हैं कि यदि भगवान ने हमें इच्छा, अभिलाषा, भावनाएँ, अनुभूतियाँ दी हैं तो हम उन्हें ‍छिपाकर क्यों रखें? मन जो कहे वही करना उचित है। ऐसा करने वाले लोग मन और प्रवृत्तियों के अंतर को स्पष्ट नहीं समझ सकते हैं। हम किसी के घर जाते हैं, वहाँ कोई बड़ी लुभावनी वस्तु यदि हमारे सामने आए तो क्या उसे हम उठा लेंगे? नहीं, प्रवृत्ति कहती है, 'वह हमारी हो जाए' लेकिन मन कहता है, नहीं, वह किसी और की है, हम उसे नहीं ले सकते। बीमार रहने पर कई बार हमारी जीभ, हमारा स्वाद चाहता है कि अमुक वस्तु खाएँ, लेकिन मन समझाता है, 'नहीं, यह ठीक नहीं। इसे खा लेने पर हम और अधिक बीमार हो जाएँगे।


साधो और माधो

एक छोटे से शहर में एक लालची नाई साधो रहता था। उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। परंतु एक ही सपना देखता था कि वह किसी भी तरह अमीर बन जाए। उसी शहर में माधो नाम का एक गरीब व्यक्ति भी रहता था। वह प्रतिदिन नियम से भगवान शिव की पूजा करता था। माधो सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं करता था बल्कि वह अच्छा आदमी था। दूसरों की मदद के लिए वह हमेशा तैयार रहता था। एक बार उसे पैसों की बहुत सख्त जरूरत पड़ी। कहीं से भी पैसों का इंतजाम नहीं हो सका। माधो बड़ा परेशान रहने लगा। परेशानी वाले दिनों में ही एक रात सपने में माधो को भगवान शिव दिखाई दिए।

भगवान ने कहा कि माधो हम तेरे जैसे सच्चे भक्त से बड़े खुश हैं, कहो क्या चाहिए? माधो बोला- प्रभु मैं आनंद मैं हूँ, बस इन दिनों धन की ही थोड़ी जरूरत है। भगवान ने कहा- बस इतनी सी बात। कल सुबह तुम स्नान करके किसी नाई से अपना मुंडन करवाकर अपने घर के पास की झाड़ियों के पीछे छिप जाना। उस समय एक मोटा डंडा अपने हाथ में जरूर रखना। तुम्हारे पास से जो भी पहला व्यक्ति निकले उसे डंडा मार देना और वह सोने के ढेर में बदल जाएगा। सोने को पाकर तुम धनवान हो जाओगे और तुम्हारी तकलीफें दूर हो जाएँगी।

अगले दिन सुबह जागकर माधो ने वैसा ही किया। वह नहाकर पड़ोस में रहने वाले साधो नाई के पास गया और उससे मुंडन करवाकर अपने घर के पीछे झाड़ियों में छिप गया। लेकिन उसे पता नहीं था कि साधो नाई एक पेड़ के पीछे छुपकर उसे देख रहा है। दरअसल माधो को इतनी सुबह-सुबह मुंडन कराने आया देखकर साधो को आश्चर्य हुआ था। इसी का पता लगाने के लिए वह पेड़ के पीछे छुपकर माधो को देख रहा था। इधर जैसे ही पहला व्यक्ति वहाँ से गुजरा, माधो ने उसे डंडा मारा और वह व्यक्ति सोने के ढेर में बदल गया। यह सारी घटना लालची साधो ने देख ली।

डंडे की चोट से पहलवान के सिर में टेमला पड़ गया। पहलवान ने साधो के हाथ में डंडा देखा और उसकी हड्‍डी-पसली एक कर दी। पिटाई ऐसी उड़ी कि अगले महीने भर तक साधो बिस्तर पर पड़ा रहा। अगले दिन साधो नाई ने खुद ही अपना सिर मूँड लिया और अपने घर के पास ही एक मोटा डंडा लेकर खड़ा हो गया और उधर से गुजरने वाले किसी व्यक्ति का इंतजार करने लगा। अचानक किसी के आने की आवाज सुनाई दी और साधो तैयार हो गया। ठीक समय पर उसने निकलने वाले आदमी को जोर से डंडा मारा। डंडे की चोट जिसे लगी वह गाँव का पहलवान रामलाल था। डंडे की चोट से पहलवान के सिर में टेमला पड़ गया। पहलवान ने साधो के हाथ में डंडा देखा और उसकी हड्‍डी-पसली एक कर दी। पिटाई ऐसी उड़ी कि अगले महीने भर तक साधो बिस्तर पर पड़ा रहा। इस तरह लालची साधो को उसकी लालच का फल मल गया।

चुन्‍नी का एक रुपया

दीपावली का दिन था। सभी लोग प्रसन्न थे। चुन्नी के छोटे से मोहल्ले में रहने वाले सभी लोग बाजार से कुछ न कुछ खरीददारी करके लौट रहे थे। चुन्नी उदास थी क्योंकि उसके पास खरीददारी करने के लिए पैसा नहीं था। पिछले दिनों से चुन्नी के घर की हालत जो ठीक नहीं थी। पड़ोस में रहने वाला कोई भी बाजार से कुछ खरीदकर लाता तो चुन्नी उससे पूछती कि बाजार में क्या-क्या मिल रहा है। किसी ने उसे बताया कि आज तो बाजार में रौनक है। सबकुछ मिल रहा है। लोग आवाजें लगा-लगाकर बुला रहे हैं और बहुत सस्ते में सामान मिल रहा है।

एक रुपया भी हो तो बहुत सी चीजें खरीदी जा सकती है। चुन्नी ने सोचा कि काश उसके पास भी एक रुपया होता। यह सोचकर वह उदास सी बैठ गई। मन ही मन वह बाजार के बारे में सोचती जा रही थी और पर उसके चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी थी क्योंकि घर की हालत उसे मालूम थी।

जब चुन्नी इस तरह से बैठी थी तभी उसके घर के सामने से एक अम्मा निकली। अम्मा का नाम था लक्ष्मी। नाम भी लक्ष्मी और दिखने में भी बिलकुल लक्ष्मीजी। सुंदर चेहरा और माथे पर गोल बिंदी। उन्होंने चुन्नी को देखा तो पूछा- अरे बेटी, आज तो दिवाली का दिन है। सभी लोग कितने खुश हैं और तुम उदास क्यों बैठी हो। चुन्नी ने कहा- कि मेरे पास पैसे नहीं है ना। आज बाजार में कितनी अच्छी-अच्छी चीजें मिल रही है पर मैं कुछ भी नहीं खरीद सकती हूँ।

लक्ष्मी अम्मा ने कहा- बस इतनी सी बात। कितने पैसे चाहिए तुम्हें? बस मुझे एक रुपिया चाहिए। चुन्नी ने कहा। बस एक रुपिया? हाँ, मैंने अभी सुना है कि एक रुपिए में तो बाजार से सबकुछ खरीदा जा सकता है। लक्ष्मी अम्मा ने अपने पल्लू से एक रु. का सिक्का छुड़ाया और चुन्नी के हाथ में रख दिया। जाते-जाते उन्होंने कहा कि लो इस एक रुपिए में तुम्हें बाजार में सारी चीजें मिल जाएँगी। अब चुन्नी खुश हो गई। उसके पास रुपिया था। और वह बाजार चली।

बाजार में सबसे पहले वह फूल वाले के पास गई। उसने पूछा फूल कैसे दिए हैं? फूल वाले ने कहा कि दो रुपये में टोकनी भर। चुन्नी ने कहा पर मेरे पास तो एक ही रुपिया है। मैंने तो सुना है कि आज बाजार में एक ही रुपिए में सबकुछ मिल रहा है। चुन्नी की बात सुनकर फूल वाले ने कहा तुम तो खुद ही फूल जैसी हो, तो तुम बिना कुछ दिए ही फूल ले सकती हो। चुन्नी ने फटाफट फूल चुन लिए और आगे बढ़ी।

रुपिया अब भी उसके पास था और उसे विश्वास था कि अभी भी बहुत सी चीजें खरीदी जा सकती है। फिर चुन्नी ने रांगोली वाले से रंगों के बारे में पूछा। रांगोली वाले ने कहा कि चार रंगों की पुड़िया दो रुपए की है। चुन्नी ने कहा कि उसके पास तो एक ही रुपिया है, रांगोली वाले कहा कि आज मेरी बिक्री अच्छी हुई है तो तुम कुछ रंग मेरी तरफ से रखो। भई चुन्नी तो खुश ही खुश। एक रुपिए में ही उसने दो चीजें खरीद ली और रुपिया अभी भी उसके हाथ में था।

इसके बाद वह दीपक बेचने वाली कुम्हारिन माई के पास पहुँची। कुम्हारिन माई अपनी दुकान समेट ही रही थी। चुन्नी ने कहा कि उसे चार दीपक चाहिए। कुम्हारिन के कहा कि उसका तो सब सामान बिक गया है। पर तभी कुम्हारिन ने अपने पड़ोस में बैठे शंकरया से पूछा- क्यों रे शंकरया तेरे पास चार दीए हैं क्या? शंकरया ने कहा ये लो माई। माई ने कहा कितने पैसे? शंकरया ने कहा माई तुझसे क्या पैसे लूँ।

माई ने चुन्नी को दीए दे दिए। चुन्नी ने पूछा-कितने पैसे दूँ? माई ने कहा दीए शंकरया के दीए हैं और जब उसे पैसे नहीं चाहिए तो मैं क्यों लूँ? तुम खुश रहो। चुन्नी को जो कुछ चाहि‍ए था सब मि‍ल गया। वह बाजार से लौट आई सचमुच एक रुपए में उसे सारी चीजें मि‍ल गई थी। और उसके हाथ में रुपया अभी भी जगमगा रहा था। चुन्‍नी ने शाम को घर के बाहर रंगोली बनाई। घर के द्वार पर फूलों का वंदनवार लगाया और दि‍ए जलाए। चुन्‍नी ने आँखें बंद कर लक्ष्‍मी जी को याद कि‍या तो उसे लक्ष्‍मी अम्‍मा का चेहरा ध्‍यान आया।

स्माइली बनी प्रिंसेस


रोजी और स्माइली एक ही गार्डन में रहती थीं। रोजी फूलों के राजा गुलाब की बेटी थी। स्माइली सूरजमुखी की बेटी थी। वैसे तो दोनों ही सुंदर और प्यारी दिखती थी। लेकिन रोजी अपने आपको कुछ ज्यादा ही सुंदर समझती थी। आखिर वह फूलों के राजा की बेटी थी, तो घमंड तो होना ही था। वह बड़ी ही कोमल और गुलाबी गुलाबी सी दिखती थी।

वह अपने आपको प्रिंसेस समझती थी। उधर उसकी सहेली स्माइली उसकी तरह गुलाबी तो नहीं थी, हाँ उसके होठों पर हमेशा खिली-खिली सी हँसती जरूर रहती थी। वह हमेशा हँसती रहती। उसे न तो अपने आप पर घमंड होता था, न ही उसे कभी गुस्सा आता था। इससे उसकी सुंदरता और बढ़ जाती थी। वह बस अपने में ही झूमती रहती। उसका खिला चेहरा देखकर रोजी को गुस्सा आता था। फिर वह सोचती, चाहे कुछ भी हो इस गार्डन की राजकुमारी तो मैं ही हूँ। पूरी दुनिया जानती है कि गुलाब जैसा कोई फूल नहीं। फिर मैं ही तो हुई न प्रिंसेस। यही सोचकर वह इतराती रहती थी।

एक दिन तो उसने हद ही कर दी। उसने स्माइली से कहा, 'चलो हम कुछ खेल खेलते हैं।' बस फिर क्या था। स्माइली तैयार हो गई। दोनों लुकाछिपी खेलने लगे। हवा का झोंका आता और रोजी पत्तों में छिप जाती, तो दूसरी बार स्माइली। स्माइली के पत्ते बड़े-बड़े थे, तो वह आसानी से छिप जाती थी। रोजी उसे ढूँढ नहीं पाती और उसे गुस्सा आता।

वह सोचती कि जरूर स्माइली उसे परेशान करने के लिए ऐसा कर रही है, वह उससे ज्यादा सुंदर है इसलिए। लेकिन स्माइली क्या करती। भगवान ने ही उसके पत्ते बड़े-बड़े बनाए थे तो उसमें उसका क्या दोष। हाँ, उसे मजा बहुत आ रहा था उस खेल में। जैसे ही हवा चलती, वह अपने पत्तों के बीच न जाने कहाँ गुम हो जाती और रोजी उसे ढूँढ़ती रह जाती। न मिलने पर वह गुस्से से लाल हो जाती। उसका गुलाबी चेहरा लाल होता देख स्माइली को हँसी आती और वह जोर-जोर से खिलखिलाकर हँस पड़ती। उसकी हँसी रोजी को ज्यादा देर तक बर्दाश्त ना हो सकी। उसने सोचा, 'मैं इससे ज्यादा सुंदर हूँ। मैं प्रिंसेस हूँ इसलिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। मैं अभी इसे मजा चखाती हूँ।' बस फिर क्या था। इस बार जैसे ही स्माइली पत्ते से बाहर आई, रोजी ने उसे अपने काँटों से जकड़ लिया। गुलाब के तने में तो काँटे होते ही हैं। फिर क्या था।

रोजी ने इसका ही फायदा उठाया। उसने अपने नुकीले काँटें स्माइली के चेहरे में चुभो दिए। स्माइली दर्द से कराह उठी। उसका चेहरा लहूलुहान हो गया था। बेचारी कुछ बोल नहीं पाई। वह कुछ कर भी नहीं सकती थी। फिर रोजी ने उसे छोड़ा और घमंड से हँसते हुए बोली, 'स्माइली क्या तुझे पता नहीं। मैं इस गार्डन की प्रिंसेस हूँ। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे हराने की। मैं कभी किसी से हार नहीं सकती। आखिर मैं इतनी सुंदर भी तो हूँ।'स्माइली बेचारी चुपचाप अपनी जगह पर खड़ी रही। घमंडी रोजी के आगे वह क्या कर पाती।

कुछ दिन बीते। उस गार्डन का जो मालिक था, उसके बेटे का बर्थडे आने वाला था। बर्थडे में बड़े-बड़े मेहमान भी आने वाले थे। इसलिए घर को सजाया जा रहा था। उस बगीचे के जितने भी फूल पौधे थे, सभी को सजावट में लगाया जा रहा था। रोजी खुश थी। वह सोच रही थी, 'अरे वाह कितना मजा आएगा। मैं तो फूलों के राजा की बेटी हूँ। सभी लोगों को अच्छी लगती हूँ। वहाँ पार्टी में मुझे कितना सम्मान मिलेगा। घर के गुलदस्ते में जब मुझे सजाया जाएगा, तो सभी आने वाले लोग मुझे ही देखेंगे। मुझे प्यार करेंगे। फिर तो मान और भी बढ़ जाएगा। ये सोचकर वह और भी घमंडी बन गई थी।

बर्थडे वाले दिन सुबह-सुबह कुछ लोग गार्डन में आए और फूलों को तोड़कर ले जाने लगे। रोजी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। मन ही मन वह खुशी से पागल हुई जा रही थी लेकिन ये क्या। जैसे ही उन लोगों ने उसे तोड़ना चाहा, उसके नुकीले काँटे उनकी उँगली में चुभ गए। उनके मुँह से चीख निकल पड़ी। उन लोगों में से एक ने कहा, 'अरे इस गुलाब के फूल में तो ढेर सारे काँटे हैं। इसे कैसे तोड़ेंगे और तोड़ भी लें, तो इसे रखेंगे कहाँ। इसके काँटे अगर बच्चे को चुभ गए तो। अगर किसी बच्चे ने इसे छू लिया, तो उसका बुरा हाल हो जाएगा। नहीं, नहीं, ये फूल ठीक नहीं रहेगा, चलो दूसरे फूल देखते हैं।' फिर वे आगे बढ़ गए।

उन्होंने रोजी को तोड़ा ही नहीं। ये देखकर रोजी तो गुस्से से पागल ही हो गई। वह क्या सोच रही थी और क्या हो गया। उसने सोचा, मैं इतनी सुंदर हूँ, फिर मुझे ये लोग पार्टी में सजाने के लिए क्यों नहीं ले गए?' उसका इतना बड़ा अपमान आज तक किसी ने नहीं किया था। लेकिन अभी वह कुछ कर नहीं सकती थी। अपमानित होकर उसके आँसू निकल आए थे।

दूसरी ओर फूल तोड़ने वाले लोग जब कुछ दूर आगे बढ़े तो देखा, स्माइली अब भी मीठी-मीठी स्माइल कर रही थी। सुबह की खिली खिली धूप में उसकी सुंदरता और बढ़ गई थी। उन लोगों ने सोचा, पार्टी की सजावट में ये सूरजमुखी का फूल बहुत काम आएगा। उन्होंने स्माइली को प्यार से देखा। उसे देख उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी। उन्होंने उसे बड़े प्यार से तोड़ा और अपने साथ ले जाने लगे। स्माइली तो खुशी से झूम ही उठी। उसने सोचा, चलो वह किसी के काम तो आई। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और ज्यादा फैल गई थी। लेकिन ये मुस्कुराहट रोजी की तरह घमंड वाली मुस्कुराहट नहीं थी। उसे इस तरह सम्मानित देखकर रोजी का घमंड चूर-चूर हो गया था। वह जोर-जोर से रोने लगी।

उसे रोते देख स्माइली ने उससे कहा, 'इस दुनिया में भगवान ने सबको कुछ अच्छाई के साथ कुछ बुराई भी दी है। इसलिए सभी बराबर हैं। तुम्हारी सुंदरता के साथ तुम्हारे काँटे भी हैं। इसलिए तुम भी सबकी तरह हो। कभी अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा नहीं समझना चाहिए। ना ही कभी अपने ऊपर घमंड करना चाहिए।'

रोजी यह सुनकर सोचने लगी, सचमुच आज प्रिंसेस वह नहीं बल्कि स्माइली बन चुकी है। हाँ, उस दिन स्माइली प्रिंसेस बन गई थी।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर !!

    मदर्स डे की बधाई . आज ममा लोगों का दिन है, सो कोई शरारत नहीं केवल प्यार और प्यार !!
    ____________________________
    पाखी की दुनिया में 'मम्मी मेरी सबसे प्यारी' !

    जवाब देंहटाएं