रविवार, 9 मई 2010

अक्ल की कमाई


एक राजा के दरबार में दो थे चित्रकार, राजा ने एक दिन बुला भेजा दोनों को दरबार। राजा ने दिया आदेश दोनों उनका चित्र बनाएँ, हूबहू चित्र बनाने पर मुँह माँगा इनाम पाएँ। पर दोनों चित्रकारों के सामने मुसीबत थी खड़ी, राजा की एक आँख थी बचपन से बंद पड़ी। राजा थे एक आँख से काने, पर यह बात कोई कह दे तब उसे जानें।
दोनों चित्रकार में से एक था बहुत चतुर सुजान, उसे क्या करना है उसने मन में लिया ठान। दूसरा चित्रकार था हैरान, क्या करना चाहिए इसी सोच में डूबा था वह परेशान। उसने राजा का चित्र बनाना शुरु कर दिया, दो दिन में बनाकर भी दे दिया। चित्र देखकर राजा का गुस्सा भड़का, अपने आप को काना देखकर उसका दिमाग खड़का।
राजा ने कहा उड़ाया गया है उनका उपहास, इसलिए चित्रकार को दे दिया जाए कारावास।
अब आई दूसरे चित्रकार की बारी, उसने तो कर रखी थी पूरी तैयारी। वह चित्र को रेशमी कपड़े से ढँककर दरबार में लाया, सभी दरबारियों का दिल डर के मारे थर्राया। सभी ने सोचा, अब इस चित्रकार को भी मिलेगी सजा। ज्यों ही चित्रकार ने कपड़ा हटाया, अद्भुत चित्रकारी का नमूना नजर आया।
राजा के चेहरे के साथ थी दुनाली, एक आँख थी बंद तो दूसरी थी खुली। चित्र में राजा कर रहा था शिकार, चित्रकार की चतुराई का नहीं था कोई जवाब। चित्र देखकर राजा खुशी से गद्गद् हो उठा, उसने अपने गले का कीमती हार चित्रकार के हाथ में धरा। चित्रकार की चतुराई काम आई, इसे कहते हैं अक्ल की कमाई।

सिपाही की चतुराई

एक था सिपाही जो भूल गया था रास्ता, भूख से उसका बुरा हाल था। जंगल में दिखी उसे एक झोंपड़ी, उसने दरवाजे पर जाकर खटखटाई कुंडी। एक बुढ़िया बाहर निकली लाठी टेक, सिपाही ने कहा उसको लगी है भूख। बुढ़िया ने कहा उसके पास नहीं है कुछ भी सामान, कुछ भी बनाना होगा नहीं उसके लिए आसान। सिपाही ने कहा कोई बात नहीं मैं कुल्हाड़ी का हलवा बनाऊँगा, उसका स्वाद आपको भी चखाऊँगा।
सिपाही ने निकाली कुल्हाड़ी झोले में से, और जलते चूल्हे में लकड़ियाँ कर दी आगे। उसने माँगी एक पतीली, जो बुढ़िया ने बहुत बुरा मुँह बनाकर दी। सिपाही ने गुनगुनाते हुए पतीली को आग पर चढ़ाया, फिर कुल्हाड़ी डालकर थोड़ा सा हिलाया। पास में पड़े लोटे से पानी पतीली में उँडेला, फिर हिलाकर मुँह में ऊँगली डाली और फिर बुदबुदाया- 'वाह!'। सुनकर बुढ़िया चौंकी और चूल्हे के पास आकर बैठी। सिपाही ने कहा-'पर...अगर होता कुछ आटा तो बात बन जाती'
बुढ़िया उठी और आटा लाकर सिपाही को दिया, उसने फौरन आटा पतीली में डाल लिया। फिर एक बार कुल्हाड़ी को पतीली में हिलाया और बड़बड़ाया-'वाह-वाह! क्या बात है! पर..।' 'पर क्या? बुढ़िया बोली हिलाकर सिर। 'अगर इसमें पड़ जाती कुछ चीनी तो बात बन जाती नानी।' नानी संबोधन सुनकर बुढ़िया और पिघली, वह कोठरी से दो कटोरी चीनी लेकर निकली।
सिपाही ने डाल दी चीनी पतीली में और फिर हिलाई कुल्हाड़ी। 'हूँ..' उसने हुँकारा भरा, अब बना है कुल्हाड़ी का हलवा शानदार, लाओ कटोरी आपको भी परोसूँ चम्मच चार। बुढ़िया बहुत खुश थी हलवा खाकर, सिपाही की भूख भी मिटी पेट भरकर। बुढ़िया जान ही नहीं पाई, सिपाही ने हलवा खाने की क्या तरकीब थी अपनाई!

मीठा उपहार

शहंशाह अकबर ने एक बार सभी दरबारियों को भोज दिया, बीरबल पर उनका प्यार कुछ ज्यादा, उन्होंने विशेष आग्रह करके उन्हें खिलाया। अब बीरबल खा-खाकर हो गए परेशान, तो बोले अब नहीं है मेरे पेट में जगह श्रीमान। अब और नहीं खा सकूँगा, आपकी आज्ञा मान नहीं सकूँगा। तभी एक सेवक आम काटकर एक प्लेट में लाया, देखकर बीरबल का मन ललचाया।
बीरबल ने हाथ बढ़ाकर, आम की फाँकें उतार ली पेट में अंदर। बीरबल को आम खाता देखकर शहंशाह को गुस्सा आया, उन्होंने गरज कर बीरबल को बुलाया। बीरबल खड़े हो गए अकबर के सामने जाकर, फिर बोले हाथ जोड़कर-'जब बहुत भीड़ होती है रास्ते पर, और निकलने की नहीं होती जगह तिल भर। आपकी सवारी को होता है वहाँ से गुजरना, तो अपने आप सबको होता है आपको जगह देना।
उसी तरह महाराज, आम भी करता है सभी फलों पर राज। जिस तरह आप हैं शहंशाह, वैसे ही आम भी है शाहों का शाह, तो कैसे नहीं देगा पेट उसे पनाह? जवाब सुनकर अकबर मान गए बीरबल की बुद्धिमानी का लोहा, मँगवाया उन्होंने मीठे आमों का एक टोकरा। बहुमूल्य भेंट दी बीरबल को उस टोकरे के साथ, बीरबल बहुत खुश थे पाकर यह मीठा उपहार।

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