बुधवार, 2 जून 2010

गली का खिलाड़ी ऐसे बना क्रिकेटर


दोस्तो, गर्मी की छुट्टियों में बहुत सारे दोस्त क्रिकेट खेल और देख रहे होंगे। इस खेल में बात ही कुछ ऐसी है कि आपको अपनी तरफ खींच लेती है। और सिर्फ यही खेल नहीं बल्कि हर खेल में ऐसी कोई न कोई बात जरूर होती है। जो खेलता है वही जानता है।

दोस्तो, स्कूल के क्रिकेट के कारण मुझे एक सपना मिला और बाद में मैंने उसे सच कर दिखाया। पढ़ाई, खेल या दूसरी विधाओं में रुचि आपकी अलग पहचान बनाने में मदद करती है। देखिए सचिन तेंडुलकर को। छोटे कद का यह चैंपियन पूरी दुनिया में जाना जाता है। मेरा यही मानना है कि आप अपने गुणों के कारण कहीं भी अलग पहचान बना सकते हैं।
दोस्तो, वैसे तो मेरे माता-पिता कर्नाटक के रहने वाले थे, पर मेरा जन्म मुंबई में हुआ। मेरे पिताजी डॉक्टर थे। हमारे घर में बच्चों को पढ़ाई की तरफ ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने को कहा जाता था। मैं जब बहुत छोटा था तब मैं गिल्ली-डंडा, कंचे और फुटबॉल-हॉकी खेलने में ही ज्यादा समय बिताता था। दोस्तों के साथ बाहर खेलकूद में ही मुझे ज्यादा मजा आता था।
दोस्तो, मुझे याद है कि बचपन में क्योंकि ज्यादातर खेलने का सामान मेरे ही पास था और किसी भी खेल में आउट हो जाने पर मैं खेल बंद कर देता था तो सारे दोस्त मेरी बात मानकर मुझे एक मौका और दे देते थे। क्रिकेट में भी जब मैं आउट हो जाता था तो बैट लेकर भाग जाता था। फिर मेरे दोस्त मुझे घर से मनाकर लाते थे कि अच्छा चलो एक बार बैटिंग और कर लेना। ये बातें तबकी हैं जब मैं बहुत छोटा था। फिर बड़ा होने पर मुझे मालूम हुआ कि हार-जीत खेल का हिस्सा है।
अभी भारतीय क्रिकेट टीम ट्वेंटी-२० वर्ल्ड कप में हारकर सुपर-एट से बाहर हो गई। भारतीय टीम से नाराजगी इसलिए है, क्योंकि वह अच्छा खेल दिखा सकती थी पर उन्होंने दूसरी टीमों को गंभीरता से नहीं लिया। खेल में हार-जीत चलती है पर अच्छा खेल दिखाने की कोशिश तो करनी ही चाहिए। जैसा कि पढ़ाई में होता है कि आप अपनी ओर से पढ़ाई अच्छी करो, मन लगाकर एक्जाम दो और फिर रिजल्ट जो भी आए। मेहनत जरूरी है। अगर मेहनत नहीं करोगे तो रिजल्ट अच्छा नहीं आएगा। कुछ चीजें किस्मत के हाथ होती हैं, पर ज्यादा फर्क तो मेहनत करने से ही पैदा होता है।
दोस्तो, मैंने क्रिकेट से पहले बहुत से खेलों में हाथ आजमाए। जब मैं बड़ा हो रहा था तब मैं टेनिस भी खेलता था। खेलों के प्रति रुचि जगाने में मेरे स्कूल डॉन बॉस्को का भी बड़ा योगदान रहा, क्योंकि यहाँ हमें तरह-तरह के खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। गिल्ली-डंडा और टेनिस से होते हुए सबसे आखिर में मेरी गाड़ी क्रिकेट पर आकर रुकी।
दोस्तो, अपने स्कूल की बात बताऊँ तो मैं अपनी क्लास में मैं सबसे पीछे की बेंच पर बैठता था। इसका एक कारण थी आखिरी बेंच के पास की खिड़की। इस खिड़की से मैं क्लास से बाहर क्या चल रहा है यह देख पाता था और जरूरत लगने पर चॉकलेट की पन्नाी या फलों के छिलके खिड़की से बाहर भी फेंक सकता था। हम क्लास में बैठे-बैठे चॉकलेट और दूसरी चीजें भी खाते थे। जब मैं स्कूल में था तो खाने बहुत-सी चीजें अपने दोस्तों के लिए ले जाता था ताकि हम अपनी चीजें एक-दूसरे के साथ बाँट सकें।
मुझे भारतीय क्रिकेट टीम के हार जाने पर आपकी तरह दुख होता है पर अच्छा क्रिकेट खेलने वाले की तारीफ करना कमेंटेटर के लिए जरूरी होता है। आपकी तरह मुझे भी अपने देश से बहुत प्यार है। जब मैं 9वीं में था, तब स्कूल की क्रिकेट टीम बनी और मेरे कोच देसाई सर ने मुझे क्रिकेट सीखने में खूब मदद की। उनकी वजह से ही मैं क्रिकेटर बन सका। हमारी स्कूल की टीम ने चैंपियनशिप भी जीती थी और वह पहली ट्रॉफी थी जिसने मुझे बहुत उत्साहित किया था। यह ट्रॉफी जीतने के बाद ही मैंने तय किया था कि अब मुझे एक अच्छा क्रिकेटर बनना है और देश के लिए क्रिकेट खेलनी है।
मेरा यह निर्णय आगे चलकर सही साबित हुआ और मैंने देश के लिए क्रिकेट खेला भी। तो बचपन के दिनों में हम जो सपने देखते हैं वे पूरे होते हैं बस उनके लिए हमें थोड़ी मेहनत करना पड़ती है। आप भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर ही रहे होंगे।
दोस्तो, क्रिकेट से संन्यास के बाद भी मुझे इस खेल से इतना लगाव हो गया है कि अब मैं कमेंट्री में भी खूब आनंद लेता हूँ। मुझे भारतीय क्रिकेट टीम के हार जाने पर आपकी तरह दुख होता है पर अच्छा क्रिकेट खेलने वाले की तारीफ करना कमेंटेटर के लिए जरूरी होता है। आपकी तरह मुझे भी अपने देश से बहुत प्यार है।

आपका दोस्त
रवि शास्त्री

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