क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। यदि इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी माँग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा माँगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाने का काम करता है। माफ करने वाले व्यक्ति की हर कोई तारीफ करता है और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल जाती है।
कवियों ने क्षमा को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात, कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात' जैसी पंक्तियाँ यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए।
वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो।' वह लिखते हैं-
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं।
उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। क्षमा का मनुष्य के व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है। यदि आदमी गलती कर दे और उसके लिए माफी नहीं माँगे तो इसका मतलब यह हुआ कि उसके व्यक्तित्व में अहम संबंधी विकार है।
माफी माँगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं। लेकिन कुछ लोग जो जानबूझकर, बार-बार लगातार और मूर्खतावश या अहंकारवश गलती करते हैं, उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए। आज के जमाने में माफ करने वाला बेवकूफ समझा जाता है। अगर कोई आपके व्यक्तित्व को बार-बार अपमानित करने की कोशिश करें तो समय यह कहता है कि ऐसे व्यक्ति का त्याग करना ही मुनासिब है।
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